World Alzheimer’s Day: क्या होगा अगर याद्दाश्त खुद ही फीकी पड़ने लगे और खो जाये. अल्जाइमर रोग में यही होता है. जर्मनी के डॉक्टर अलोइस अल्जाइमर ने बीसवीं शताब्दी के शुरुआती दौर में इस रोग का पता लगाया था, इसलिए उन्हीं के नाम पर इसे अल्जाइमर्स डिजीज कहा जाता है. यह न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग है. अंग्रेजी शब्द न्यूरो का आशय है तंत्रिका. डीजेनेरेटिव का आशय है, ऐसी बीमारी जिसमें शरीर या इसका कोई एक भाग धीमे-धीमे अपना कार्य करना बंद कर देता है. स्पष्ट है कि न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियां शरीर की तंत्रिकाओं के नष्ट होने या उनके मृत होने से उत्पन्न होती हैं. वैसे तो न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों के अनेक प्रकार हैं, लेकिन मौजूदा संदर्भ में अल्जाइमर व मोटर न्यूरॉन डिजीजेज विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं.
मनोभ्रंश का ही एक प्रकार है अल्जाइमरअल्जाइमर, डिमेंशिया (मनोभ्रंश) का एक प्रमुख प्रकार है. डिमेंशिया मस्तिष्क संबंधी विकारों का एक समूह है, जिसमें व्यक्ति की याद्दाश्त, सोच, भाषा और उसका कौशल क्षीण होने लगता है और उसके व्यक्तित्व एवं व्यवहार में नकारात्मक बदलाव आने लगते हैं. डिमेंशिया के लगभग 60 प्रतिशत मामले अल्जाइमर से संबंधित हैं. आमतौर पर साठ साल की उम्र के बाद यह बीमारी लोगों को अपनी गिरफ्त में लेती है. गौरतलब है कि अल्जाइमर की समस्या रातोरात नहीं होती. कई सालों के बाद यह रोग गंभीर रूप धारण करता है. समय रहते इस रोग का पता चलने पर पीड़ित व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) 8 से 10 साल से अधिक हो सकती है, हालांकि इसके अपवाद भी संभव हैं.
क्या हैं इसके होने के कारणबढ़ती उम्र खासकर वृद्धावस्था (आमतौर पर 60 वर्ष से अधिक) में मस्तिष्क की कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) के मृत होने और इनमें असामान्य रूप से प्रोटीन के संचित होने को अल्जाइमर का कारण माना जाता है, लेकिन इस रोग के कारणों पर अभी तक शोध जारी है. कुछ हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि किसी दुर्घटना में जिन लोगों के मस्तिष्क में घातक चोट लगती है और जो कुछ समय के लिए कोमा में चले जाते हैं, उनमें कोमा से बाहर आने के बाद कालांतर में इस रोग के होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं. कुछ मामलों में विशेषज्ञ इस मर्ज का एक कारण वंशानुगत (जेनेटिक) भी मानते हैं.
Lumpy Skin Disease: लंपी रोग दुधारू पशुओं के लिए बना संकट, जानें इसके लक्षण और बचाव के उपायएजिंग प्रोसेस नहीं है अल्जाइमरउम्र बढ़ने (आमतौर पर 60 वर्ष के बाद) के साथ मस्तिष्क और शरीर की कार्यक्षमता निरंतर कम होती जाती है, जिसे ‘एजिंग प्रोसेस’ कहा जाता है. इस दौरान व्यक्ति की याददाश्त कम होने लगती है, लेकिन उसे बोलते समय सही शब्द का चयन करने और दैनिक कार्यों को अंजाम देने में दिक्कत महसूस नहीं होती, जबकि अल्जाइमर की समस्या में उपरोक्त लक्षण सामने आते हैं.
ये हैं इस रोग के प्रमुख लक्षणचंद दिनों पहले घटी घटनाओं के बारे में याद न रहना.
हाल में ही संपर्क में आये लोगों के नामों को भूलना.
समय और स्थान के बारे में असमंजस होना.
अत्यंत गंभीर स्थिति में मरीज अपने परिजनों तक को नहीं पहचानता या फिर उनका नाम भूल जाता है.
बोलते समय सही शब्द का चयन करने में दिक्कत.
नित्य क्रिया और दैनिक कार्य करने में कठिनाई, जैसे- कमीज के बटन बंद करने में दिक्कत महसूस करना आदि.
लोगों का चेहरा पहचानने में परेशानी.
पीड़ित व्यक्ति के व्यक्तित्व में नकारात्मक परिवर्तन होना.
अल्जाइमर रोगी अक्सर समाज से अलग-थलग पड़ जाते हैं. इस कारण वे अवसाद (डिप्रेशन) से ग्रस्त हो सकते हैं. क्रोध और चिड़चिड़ापन उनके स्वभाव का अंग बन जाता है.
उपरोक्त लक्षणों में से किसी एक के प्रकट होने पर रोगी के परिजनों को शीघ्र ही न्यूरोलॉजिस्ट से परामर्श लेना चाहिए.
किन जांचों से लगता है पतान्यूरोलॉजिस्ट द्वारा सबसे पहले मरीज का क्लीनिक में शारीरिक और मानसिक परीक्षण (जिसमें स्मृति परीक्षण भी शामिल है) किया जाता है. इसके अलावा मस्तिष्क में स्मृति से संबंधित कौन-सा भाग कितना विकारग्रस्त है, यह जानने के लिए सीटी स्कैन या एमआरआइ या पीइटी स्कैन नामक परीक्षण कराये जाते हैं. कुछ मामलों में इइजी टेस्ट कराते हैं.
कितना संभव है इस रोग का उपचारअल्जाइमर्स का कोई स्थाई इलाज नहीं है. बीते वर्ष अमेरिकन ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने अल्जाइमर्स से संबंधित एक दवा को अनुमति प्रदान की थी, जिसके क्लीनिकल ट्रायल जारी हैं. इस मर्ज में सिर्फ लक्षणों को कम करने के लिए कुछ विधियां और उपचार उपलब्ध हैं, जैसे :
अवसाद (डिप्रेशन) और मरीज की घबराहट को नियंत्रित करने के लिए दवाएं दी जाती हैं.
उच्च रक्तचाप की समस्या होने पर इसे नियंत्रित करने वाली दवाएं देते हैं.
शारीरिक और मानसिक गतिविधियां रोगी की प्रतिदिन की गतिविधियों में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जैसे- योगासन, प्राणायाम फिजिकल फिटनेस को बनाये रखने में सहायक हो सकते हैं.
कुछ मानसिक अभ्यास, जैसे- सुडोकू, क्रॉसवर्ड, पहेली और कार्ड खेलना आदि मस्तिष्क को सक्रिय बनाये रखने में सहायक हैं.
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि नयी भाषाएं सीखने से मस्तिष्क का अच्छा अभ्यास होता है और सीखने की इस प्रवृत्ति से अल्जाइमर्स की रोकथाम में मदद मिलती है.
परिवार के सदस्य ध्यान देंअल्जाइमर न केवल रोगी को, बल्कि उसके परिवार को भी प्रभावित करता है. ऐसे में परिवार के सदस्य पीड़ित व्यक्ति के लिए समय निकालें, उनसे बात करें और उनके साथ टहलें, ताकि उनके तनाव को दूर करने में मदद मिले. डॉक्टर, दोस्त और पड़ोसी के रूप में हम मरीज की मदद कर सकते हैं.
क्या है मोटर न्यूरॉन डिजीजेजअल्जाइमर्स की तरह मोटर न्यूरॉन बीमारियों (एमएनडी) को भी न्यूरोडीजेनेरेटिव कैटेगरी में शामिल किया जाता है. एमएनडी में दिमाग की कोशिकाएं (न्यूरॉन्स) और रीढ़ की हड्डी की तंत्रिका (नर्व) धीरे-धीरे विकारग्रस्त होकर क्षीण होने लगती हैं. अंत में एक स्थिति ऐसी आती है, जब शरीर के अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं. नतीजतन, व्यक्ति चलने-फिरने में असहज या असमर्थ महसूस करता है.
45 वर्ष के बाद रहता है खतरामस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाएं मांसपेशियों को विद्युतीय संकेत प्रेषित करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप मांसपेशियां काम करती हैं और हमारे शरीर में विभिन्न गतिविधियों का संचालन होता है, लेकिन मोटर न्यूरॉन में मांसपेशियां कमजोर और शिथिल हो जाती हैं. वैसे यह बीमारी किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति को हो सकती है, लेकिन आमतौर पर 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोग इससे कहीं ज्यादा पीड़ित होते हैं.
क्यों होती है यह समस्याकई तरह की दुर्घटनाओं और बीमारियों के कारण मरीजों के मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड में लंबे समय तक सूजन का बने रहना मोटर न्यूरॉन बीमारियों का प्रमुख कारण है.
क्या हैं इसके लक्षणमोटर न्यूरॉन बीमारियों के सामान्य लक्षण अल्जाइमर की तरह होते हैं, जैसे-
याद्दाश्त का कमजोर होना.
दिमागी कार्यों की क्षमता में धीरे-धीरे कमी आते जाना.
हाथों व पैरों में कमजोरी महसूस होना.
मांसपेशियों का कमजोर होना
मौजूदा इलाजफिलहाल इन मरीजों की बीमारियों को कम करने के लिए दवाएं दी जाती हैं, लेकिन कोई भी दवा बीमारी को जड़ से खत्म नहीं कर पाती. नये कारगर इलाज के संदर्भ में शोध-अनुसंधान जारी हैं.
हॉकिंग के साथ यह चमत्कार ही थाब्रिटेन के विश्वविख्यात वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग वर्ष 1963 में 21 साल की उम्र में मोटर न्यूरॉन बीमारियों के एक प्रकार से ग्रस्त हुए. आमतौर पर मोटर न्यूरॉन बीमारियों से ग्रस्त व्यक्तियों की 3 से 11 साल की उम्र के दौरान मौतें हो जाती हैं, लेकिन हॉकिंस इसके अपवाद थे. उन्होंने इस बीमारी में जिंदगी के 55 साल गुजारे. हॉकिंग के उदाहरण से उन लोगों को प्रेरणा मिलेगी, जो मोटर न्यूरॉन बीमारियों में उम्मीद का दामन छोड़ चुके हैं.
स्टेम सेल थेरेपी द्वारा उपचारचूंकि मोटर न्यूरॉन बीमारियों में तंत्रिकाएं लगातार क्षय या मृत होती रहती हैं. ऐसी स्थिति में स्टेम सेल थेरेपी और ग्रोथ फैक्टर से इलाज के नतीजे उत्साहवर्धक हैं. यह थेरेपी कोशिकाओं के निर्माण के साथ मस्तिष्क में आयी सूजन को कम करती है. इसके अतिरिक्त स्टेम सेल थेरेपी मस्तिष्क और उसकी कोशिकाओं के फिर से बनने की प्रक्रिया में विशेष योगदान देती है. देश में स्टेम सेल्स द्वारा इलाज उपलब्ध है. यह इलाज हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी और सरकार के सहयोग से उपलब्ध हो सकता है. डॉ राजपूत के अनुसार, कुछ हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां स्टेम सेल थेरेपी के इलाज का खर्च वहन करने लगी हैं, जो मरीजों और उनके परिजनों के लिए राहत भरी खबर है.
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