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अनुभव : भारत में यहां होता है सूरज और बादलों के बीच ट्वंटी-ट्वंटी मैच

  • संजीव शर्मा। 

मेघालय की राजधानी शिलांग से चेरापूंजी जाते समय आपको आमतौर पर सूरज और बादलों की आंख-मिचौली का पूरा आनंद उठाने का मौका मिलता है। तक़रीबन पांच से छः हजार फुट की ऊंचाई पर 10 से 20 डिग्री तापमान में रिमझिम फुहारों से तरोताज़ा हुए विविध किस्म के आकर्षक पेड़, कतारबद्ध होकर आपका स्वागत करते हैं तो दूसरी ओर हरियाली की चादर को समेटे गहरे ढलान हमारे मन में खौफ़ जगाने की बजाए उन्हें कैमरों में समेटने की चुनौती देती है।

यहां आकर ऐसा लगता है जैसे सूरज और बादलों के बीच ट्वंटी-ट्वंटी क्रिकेट मैच जैसा कोई मुकाबला चल रहा हो…कभी बादल भारी तो कभी सूरज। सूरज को जब मौका मिलता वह बादलों का सीना चीरकर अपनी सुनहरी किरणों को धरती पर बिखेर देता और जब बादल अपनी पर आ जाते तो वे सूरज को भी मुंह छिपाने पर मजबूर कर देते हैं।

यहां दिखाई देता है प्रकृति मनमोहक रूप

यहां प्रकृति का इतना मनमोहक रूप किस्मत से ही नसीब होता है क्योंकि दुनियाभर में सबसे ज्यादा बारिश के लिए विख्यात चेरापूंजी यहां आने वाले पर्यटकों के सामने अपनी इस विशेषता को प्रदर्शित करने का कोई मौका नहीं छोड़ता। इसके परिणामस्वरूप पूरा सफ़र बस एवं कार की बंद खिड़कियों और इसके बाद भी पूरी बेशर्मी से अन्दर आती पानी की बूंदों से बचने-बचाने की जद्दोजहद में निकल जाता है और लोग यहां यत्र-तत्र-सर्वत्र फैले सौन्दर्य को अपनी आंखों में भरकर ले जाने से चूक जाते हैं।

पता नहीं, अब बादलों ने हम पर मेहरबानी दिखाई या फिर सूरज ने पहले ही उनकी नकेल कस दी थी इसलिए लगभग 60 किलोमीटर के इस पर्वतीय सफ़र में बादलों की गुस्ताखी तो पूरी मुस्तैदी के साथ चलती रही परन्तु उनकी इस गुस्ताखी ने सफ़र बिगाड़ने के स्थान पर यात्रा को और भी रमणीय बनाने का काम किया।

बादलों की शरारत के बीच का सफर

एक बार पहले भी हम गंगटोक से दार्जिलिंग के सड़क मार्ग से सफ़र के दौरान बादलों और सूरज की ऐसी ही जंग के साक्षी बन चुके हैं, लेकिन शिलांग से चेरापूंजी की इस यात्रा की बात ही निराली है। पूरे मार्ग में कहीं पहाड़ी ढलानों में छिपती-छिपाती झरने नुमा पानी की पतली से रुपहली धारा तो कहीं पूरे शोर शराबे के साथ अपने आगमन की सूचना देते छोटे-बड़े जलप्रपातों का समूह आपकी आंखों को स्थित नहीं होने देते हैं।

जैसे ही हम सुनहरी धूप देखकर यहां की प्राकृतिक छटा को कैमरे में कैद करने की शुरुआत करते हैं तभी दूर कहीं छिपकर हम पर नजर रखे शरारती बादल एकाएक सामने आकर सुबह को शाम बनाने से नहीं चूकते।

अब यह पर्यटकों के कौशल पर निर्भर करता है कि वे कैसे इस हक़ीकत को तस्वीरों में बदल पाते हैं, लेकिन दिल से कहें तो बादलों की इन शरारतों के बिना चेरापूंजी का सफ़र अधूरा है।

पारदर्शी फुहारों के बीच सात धाराओं को एकसाथ देखने का आनंद कुछ कुछ वैसा ही जैसे बारिश से बचने के लिए हम किसी पेड़ के नीचे खड़े हों और पेड़ हमारे साथ शरारत करते हुए अपनी शाखाओं तथा पत्तियों को हौले से झटक कर तन-मन में फुरफुरी सी पैदा कर दे।

सोहरा कैसे बना चेरापूंजी

वाकई देश के ईशान कोण में कुछ तो है जो बरबस ही यहां खींच लाता है। मेघालय की पहचान चेरापूंजी को पहले सोहरा के नाम से जाना जाता था। बताया जाता है कि अंग्रेज सोहरा को चेर्रा जैसा कुछ बोलते थे और वहां से बनते-बिगड़ते इसका नाम चेरापूंजी हो गया। हालांकि अब फिर सरकार ने कागज़ों पर इसका नाम सोहरा ही कर दिया है, लेकिन पर्यटन मानचित्र पर चेरापूंजी के सोहरा बनने में अभी समय लग सकता है।

यहां सालभर में औसतन 11 हजार मिलीमीटर यानि 470 सेंटीमीटर बरसात होती है। दिल्ली-मुंबई में तक़रीबन सालभर में बस 300-600 मिलीमीटर वर्षा होती है पर इतने में भी त्राहि-त्राहि मच जाती है। ऐसे में यदि मेघालय के बादल दिल्ली जैसे महानगरों में चंद मिनट ही डेरा डाल लें तो सोचिए क्या हाल होगा।

बहरहाल, यदि आप प्रकृति से साक्षात्कार करना चाहते हैं तो पूर्वोत्तर और यहां भी चेरापूंजी जैसी जगह से बेहतर कोई स्थान नहीं हो सकता। हरियाली की चुनर ओढ़े लजाते-शर्माते से पहाड़, हमारे साथ साथ रेस लगाते पेड़, लुका-छिपी खेलता सूरज और नटखट बादलों की धींगामुश्ती… ऐसा लगता है यहीं रह जाएं, बस जाएं जीवन भर के लिए…।

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