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सलाह : प्लास्टिक का विकल्प है ‘सिसल’, कुछ इस तरह करें बिजनेस की शुरूआत

अमेरिकन मूल का पौधा सिसल (अगेव) जिसे भारत में खेतकी और रामबांस भी कहते है। प्लास्टिक बैन के बाद यह सबसे बेहतर विकल्प बन कर उभर रहा है। दक्षिणी केन्या के किबवेजी शहर में लोग शॉपिंग बैग बनाने में सिसल का उपयोग करते हैं, जिसके कारण हाल के दिनों में मांग बढ़ गई है। वे सिसल की खेती कर रहे हैं जिसमें काफी फाइबर होता है। इसके रेशे से शॉपिंग बैग बनाए जाते हैं जिसका इस्तेमाल स्थानीय दुकानदार करते हैं।

बता दें कि पिछले साल केन्या सरकार ने प्लास्टिक बैन का सख्त कानून बनाया जिसमें प्लास्टिक बनाने, बेचने और इस्तेमाल करने पर 4 साल की जेल या 40,000 डॉलर के जुर्माने का प्रावधान है। ऐसे में जब भारत में प्लास्टिक को लेकर सरकार गंभीर हो गई है तब प्लास्टिक का सबसे बेहतर विकल्प सिसल है।

केन्या में सिसल का उपयोग ‘सिसल बैग’ बनाने में होता है और इस्तेमाल के बाद इन्हें फेंका जाए तो यह जमीन में घुल जाते हैं। ब्राजील और तंजानिया के बाद केन्या दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सिसल उत्पादक देश है। तो वहीं, भारत में अमूमन सिसल को शुष्क क्षेत्रों में पशुओं और जंगली जानवरों से सुरक्षा के लिए खेत की मेड़ों पर लगाया जाता रहा है। इसकी पत्तियों से उच्च गुणवत्ता युक्त मजबूत और चमकीला प्राकृतिक रेशा प्राप्त होता है।

‘सिसल का उपयोग समुद्री जहाज के लंगर का रस्सा और औद्योगिक कल-कारखानों में भी होता है। इसके अलावा गद्दी, चटाई, चारपाई बुनाई की रस्सी और घरेलू उपयोग में भी प्रयोग किया जाता है।’

वर्त्तमान में हमारे देश में लगभग 12000 टन सिसल रेशे का उत्पादन होता है, जबकि 50000 टन रेशे की आवश्यकता है। भारत को प्रति वर्ष सिसल के रेशे अन्य देशों जैसे तंज़ानिया, केनिया आदि से आयात करना करता है।

भारत में प्लास्टिक का विकल्प खोजना बेहद जरूरी है, क्योंकि यहां रहने वाला ही नहीं खास आदमी भी प्लास्टिक का उपयोग करता है। सिसल इसलिए भी एक विकल्प के तौर पर देखा जाता है कि इसकी पत्तियों से रेशा मजबूत सफेद और चमकीला होता है। सिसल का उपयोग समुद्री जहाज के लंगर का रस्सा और औद्योगिक कल-कारखानों में भी होता है। इसके अलावा गद्दी, चटाई, चारपाई बुनाई की रस्सी और घरेलू उपयोग में भी प्रयोग किया जाता है।

घर से ऐसे कीजिए सिसल के बिजनेस की शुरूआत

  • नर्सरी में सिसल के बीज से अच्छे पौधे तैयार किए जा सकते हैं।
  • जहां नर्सरी बनाई जाए वहां जल निकास का उचित प्रबंध, मिट्टी उपजाऊ, समतल और सिंचाई की समुचित व्यवस्था आवश्यक है।
  • नर्सरी वाले खेत या सर्किल की जुताई करने के बाद पाटा चलाकर मिटटी को अच्छी तरह भुरभुरा करने की आवश्यकता होती है।
  • गर्मी के मौसम में प्राथमिक नर्सरी में नए सर्किल या बल्बिल्स को कतार में 10 सेमी तथा पौधे से पौधे 5 सेमी की दूरी पर रोपाई करनी चाहिए। रोपाई के बाद हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • पूरी तरह से देख-रेख करने के 4-6 माहिने बाद 20 से 30 सेंटीमीटर ऊंचे होने के बाद पौधे को प्राथमिक नर्सरी से चुनकर द्वितीय नर्सरी में उगाते है।
  • रोपाई से पहले पौधे की खराब जड़ों और सूखी पत्तियों की छंटाई करके साफ करने के बाद 50 x 25 सेंटी मीटर की दूरी पर द्वितीय नर्सरी में रोपाई की जाती है। इस तरह सिसल के पौधे में रेशे निकाले जा सकते हैं।
  • अधिक जानकारी के लिए कृषि विभाग की वेबसाइट पर संपर्क कर जानकारी ली जा सकती है। जोकि पूरी तरह से निःशुल्क है।
    सिसल का डिमांड प्लास्टिक न होने के कारण बढ़ रही है ऐसे में इसकी खेती करके आप भारी मुनाफा कमा सकते हैं।
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