Press "Enter" to skip to content

अध्यात्म : मतलब कुछ ऐसा तैयार करना जिसे मृत्यु न छीन सके!

  • जग्गी वासुदेव, आध्यात्मिक गुरु।

जब हम कहते हैं कि शिव संहारक हैं, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि शिव मृत्यु की वजह हैं, या वे मृत्यु लाते हैं। उनकी मृत्यु में कोई दिलचस्पी नहीं है। उनके लिए मृत्यु एक बेहद मामूली बात है, जीवन का एक बेहद सतही पहलू। यह दिखाने के लिए कि वह मृत्यु की कितनी उपेक्षा (तिरस्कार) करते हैं, वह अपने शरीर पर चिता की भस्म लगाते हैं। तो आध्यात्मिक साधना मृत्यु से बचने के लिए नहीं होती, बल्कि मृत्यु की जो वजह है, यानी जन्म से मुक्ति के लिए है।

ये ड्रामा मामूली बन जाता है

यह जन्म और मृत्यु बस कुम्हार के बिज़नेस की तरह हैं। मिट्टी के एक ढेले को लेकर उसे मानव आकार देना और उसे चलता-फिरता व बोलता हुआ बनाना। यह कुम्हार का धंधा, जो कुछ देर बाद कठपुतली के तमाशे का रूप ले लेता है, दरअसल एक साधारण सी ट्रिक है। एक दर्शक के नाते उस तमाशे को देखना एक बात है, लेकिन उसी तमाशे को पर्दे के पीछे से जानना व समझना बिलकुल अलग चीज है।

एक बार अगर आप तमाशे को पर्दे के पीछे से देखना शुरू कर देते हैं, तो कुछ समय बाद आपके लिए यह बेहद मामूली चीज बन जाता है। अब आपको इसकी कहानी व ड्रामा रोमांचित नहीं करते, क्योंकि अब आप जान चुके होते हैं कि इसमें सारी चीजों को कैसे संचालित किया गया है। केवल वही लोग जिनकी याद्दाश्त छोटी होती है, रोज आकर एक ही नाटक देखेंगे और मजे लेंगे। दरअसल, ऐसे लोग पिछले दिन की अपनी याददाश्त खो चुके होते हैं, उनके लिए रोज का नाटक काफी रोमांचक और चुनौतीपूर्ण होता है।

‘अध्यात्म’, जन्म और मृत्यु से नहीं, आपसे है

आध्यात्मिक प्रक्रिया जीवन और मृत्यु के बारे में नहीं होती। शरीर का जन्म व मृत्यु होती है, जबकि आध्यात्मिक प्रक्रिया आपके बारे में होती है, जो कि न तो जीवन है और न ही मृत्यु। अगर इसे आसान शब्दों में कहा जाए तो इस पूरी आध्यात्मिकता का मकसद उस चीज को हासिल करने की कोशिश है, जिसे यह धरती आपसे वापस नहीं ले सकती।

आपका यह शरीर इस धरती से लिया गया कर्ज है, जिसे यह धरती पूरा का पूरा आपसे वापस ले लेगी। लेकिन जब तक आपके पास यह शरीर है, तब आप इससे ऐसी चीज बना सकते हैं या हासिल कर सकते हैं, जो धरती आपसे वापस न ले पाए। चाहे आप प्राणायाम करें या ध्यान, आपकी ये सारी कोशिशें आपकी जीवन ऊर्जा को एक तरह से रूपांतरित करने का तरीका है, ताकि ये मांस बनाने के बजाय कुछ ऐसे सूक्ष्म तत्व का निर्माण कर सके, जो मांस की अपेक्षा ज्यादा टिकाऊ हो।

अगर आप इस सूक्ष्म तत्व को पाने की कोशिश नहीं करेंगे तो जीवन के अंत में जब आपसे कर्ज वसूली करने वाले आएंगे तो वे आपसे सब चीज ले लेंगे और आपके पास कुछ नहीं बचेगा। उसके बाद की आपकी यात्रा का हिस्सा अच्छा नहीं होगा।

More from संस्कृतिMore posts in संस्कृति »

Be First to Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *