BSF Martyred: Parents of Vinay Kumar – फोटो : Amar Ujala
विस्तार देश में फाइलों को एक मेज से दूसरी मेज और एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी तक सरकाने की प्रक्रिया का शिकार कोई भी हो सकता है। यहां बात हो रही है कि सीमा सुरक्षा बल के शहीद विनय कुमार की। वे 30 सितंबर, 1996 को जम्मू-कश्मीर के पुंछ में बीएसएफ की 120वीं बटालियन में तैनात थे। सीमा सुरक्षा बल की पोस्ट पर पाकिस्तान की ओर से हुए एक घातक हमले में विनय कुमार शहीद हो गए थे। बीएसएफ ने अपने बहादुर जवान विनय कुमार को दुश्मन के खिलाफ उनके वीरतापूर्ण जवाबी हमले के लिए ‘रोल ऑफ ऑनर’ से सम्मानित किया था। शहीद बेटे की पेंशन के लिए उसकी मां इंदिरा को लंबा संघर्ष करना पड़ा। लगभग 22 वर्ष बीतने के बाद शहीद की मां को अब पेंशन मिली है। सरकार से गुहार लगाते हुए शहीद के पिता पीएन मेनन दिसम्बर 2011 में दुनिया को अलविदा कह गए थे।
‘सत्ता और प्रशासन’ में लालफीताशाही की खुली पोल कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स मार्टियर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह कहते हैं, जहां एक तरफ शहीदों के सम्मान में केंद्र सरकार रोजाना गुणगान करती है, वहीं विनय कुमार जैसे केस भी सामने आते हैं। यह केस ‘सत्ता और प्रशासन’ में लालफीताशाही की पोल खोलता है। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि एक शहीद की मां को उसकी पेंशन के लिए 22 साल तक धक्के खाने पड़े। देश के लिए अपने बेटे को न्यौछावर करने वाली इंदिरा मेनन को पेंशन लेने में दो दशक से अधिक का समय लग गया। बीएसएफ के पूर्व इंस्पेक्टर राजेंदरन. टी के द्वारा किए गए अथक प्रयासों के बाद सरकार से पेंशन मिली है। शहीद की 75 वर्षीय बीमार विधवा मां, अपने बेटे की पेंशन के लिए संघर्ष करती रही। उन्हें कामयाबी भी मिली तो उस वक्त, जब शहीद के पिता पीएन मेनन इस दुनिया में नहीं रहे।
शहीद की पत्नी ने जून 2000 में की थी दोबारा शादी … कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स मार्टियर्स वेलफेयर एसोसिएशन, गत सात वर्षों से शहीद परिवारों की पेंशन, पुनर्वास एवं कल्याण से संबंधित मुद्दों को बराबर सरकारों के संज्ञान में लाती रही है। इसके लिए विभिन्न मंचों से केंद्र एवं राज्य सरकारों के साथ पत्राचार, केंद्रीय विभागों और बल मुख्यालयों में शीर्ष अफसरों से मिलकर उन्हें ज्ञापन सौंपना व जवानों के कल्याण की मांग को पूरा कराने का प्रयास किया जाता रहा है। रणबीर सिंह के अनुसार, शहीद विनय कुमार की शहादत के बाद उनकी पत्नी को सरकार ने पेंशन जारी की थी। बाद में शहीद की पत्नी ने जून 2000 में दोबारा शादी कर ली। शहीद की पत्नी द्वारा दायर किए गए अपने हलफनामे में पेंशन को शहीद की मां इंदिरा मेनन के नाम रिलीज करने की सत्यापित कॉपी, संबंधित विभाग व बैंक को दी गई। शहीद विनय कुमार के पिता पीएन मेनन ने बीएसएफ कार्यालय को भी यह सूचना दे दी। उन्होंने संबंधित बैंक को दोबारा से पेंशन जारी करने के लिए आवेदन दिया।
एक बार नहीं, बल्कि कई दफा भेजे गए दस्तावेज इसके बाद बीएसएफ कार्यालय ने कुछ दस्तावेज मांगे। वे सभी दस्तावेज समय पर जमा करा दिए गए, लेकिन नतीजा जीरो रहा। मेनन को निराशा ही हाथ लगी। करीब एक दशक से पेंशन जारी कराने की लड़ाई लड़ रहे मेनन का 2011 में देहांत हो गया। उसके बाद शहीद की मां इंदिरा मेनन ने अपने हक की लड़ाई को आगे बढ़ाया। उन्होंने संबंधित विभागों को अपने पति की मौत की सूचना दी। कुशल वकीलों के माध्यम से बीएसएफ अधिकारियों को पेंशन के लिए आवेदन दिया। सभी दस्तावेज दोबारा से स्पीड पोस्ट एवं पंजीकृत डाक के जरिए तय समय पर भेज दिए गए। वही दस्तावेज एक बार नहीं, बल्कि कई दफा बीएसएफ के विभिन्न कार्यालयों को भेजे गए थे, लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला। 2016 और 2021 में प्रधानमंत्री कार्यालय के पेंशन शिकायत प्रकोष्ठ को भी आवेदन भेजा गया। पीएमओ कार्यालय से जवाब मिला कि सभी आवेदन प्राप्त हो गए हैं। आगे की कार्यवाही के लिए बीएसएफ को दस्तावेज भेज दिए गए हैं। इसके बाद अगस्त 2022 में पेंशन जारी होने का पत्र प्राप्त हुआ।
पेंशन की लड़ाई में इन लोगों ने दिया सहयोग मार्टियर्स वेलफेयर एसोसिएशन का कहना है कि इस मुहिम में केरल पेंशनर्स फोरम के अध्यक्ष राजेंदरन टी.के का विशेष योगदान रहा है। एसोसिएशन ने भी इस मुद्दे पर आवाज उठाई। सभी के संयुक्त प्रयासों के कारण ही अब शहीद की मां को पेंशन मिल सकी है। एसोसिएशन के चेयरमैन पूर्व एडीजी सीआरपीएफ एचआर सिंह, महासचिव रणबीर सिंह, केरल के कार्डिनेटर रिटायर्ड आईजी एएम मोहम्मद, केरल पेंशन फोर्म के महासचिव जार्ज सीवी और अधिवक्ता केजी सतीशन का खास सहयोग रहा है। पाकिस्तान की तरफ से हुई गोलीबारी में शहीद हुए विनय कुमार की मां इंदिरा मेनन को पेंशन व बकाया भुगतान मिलना, शहीद को सच्ची श्रद्धांजलि है। देश को अपने सिपाही द्वारा दिए गए सर्वोत्तम बलिदान पर गर्व है, लेकिन अच्छा होता कि यह पेंशन 22 साल पहले रिलीज कर दी जाती। शहीद परिवार इसका हकदार था।
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