‘हिंदी हैं हम’ शब्द शृंखला में आज का शब्द है- सुषमा, जिसका अर्थ है- परम शोभा, अत्यंत सुंदरता। प्रस्तुत है मैथिलीशरण गुप्त की कविता- जितने गुण सागर नागर हैं जितने गुण सागर नागर हैं,
कहते यह बात उजागर हैं।
अब यद्यपि दुर्बल, आरत है,
पर भारत के सम भारत है॥
बसते वसुधा पर देश कई,
जिनकी सुषमा सविशेष नई।
पर है किसमें गुरुता इतनी,
भरपूर भरी इसमें जितनी॥
गुण-गुंफित हैं इसमें इतने,
पृथिवी पर हैं न कहीं जितने।
किसकी इतनी महिमा वर है?
इस पै सब विश्व निछावर है॥
जन तीस करोड़ यहाँ गिनके—
कर साठ करोड़ हुए जिनके।
जग में वह कार्य मिला किसको,
यह देश न साध सके जिसको।
उपजे सब अन्न सदा जिसमें,
अचला अति विस्तृत है इसमें।
जग में जितने प्रिय द्रव्य जहाँ,
समझो सबकी भवभूमि यहाँ॥
प्रिय दृश्य अपार निहार नए,
छवि वर्णन में कवि हार गए।
उपमा इसका न कहीं पर है,
धरणी-धर ईश धरोहर है॥
जलवायु महा हितकारक है,
रुज-हारक स्वास्थ्य-प्रसारक है।
द्युतिमंत दिगंत मनोरम है,
क्रम-षड्ऋतु का अति उत्तम है॥
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