नाज़िम नक़वी
जनसतà¥à¤¤à¤¾ 17 सितंबर, 2014: आखिर खामोश कैसे रहा जा सकता है। कà¥à¤› करना है और जलà¥à¤¦à¥€ करना है। हमला हà¥à¤† है।
जान-माल का नà¥à¤•à¤¸à¤¾à¤¨, तबाही, बेघरी, चारों तरफ बारूद का सैलाब और कीड़े-मकोड़ों की तरह जान खोते हमारे सहधरà¥à¤®à¥€ और सहà¤à¤¾à¤—ी लोग और फिर आगे सियाह अंधेरा। नहीं आगे सियाह अंधेरा नहीं। सब बरà¥à¤¦à¤¾à¤¶à¥à¤¤ किया जा सकता है, लेकिन नाउमà¥à¤®à¥€à¤¦à¥€ बिलà¥à¤•à¥à¤² बरà¥à¤¦à¤¾à¤¶à¥à¤¤ नहीं होगी। पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ देख रही है, जो कà¥à¤› हो रहा है। पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ कर रही है कि अब हम कà¥à¤¯à¤¾ करेंगे।
अब हमारी बारी है। अचानक सफेद घर की दीवारों में हरकत हà¥à¤ˆà¥¤ à¤à¤• देववाणी गूंजी। हम जलà¥à¤¦ बताने वाले हैं कि हम कà¥à¤¯à¤¾ करेंगे। इंतजार और बॠगया। बेचैनी और गहरी हो गई।
और फिर दिन चà¥à¤¨à¤¾ गया 9/11 का। वह दिन जो पिछले तेरह वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से अमेरिकी नागरिकों के दिलों में गम और गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ का परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ बना हà¥à¤† है। ‘हम ढूंà¥-ढूंॠकर आइà¤à¤¸à¤†à¤‡à¤à¤¸ के सà¤à¥€ आतंकवादियों को मार गिराà¤à¤‚गे। वे जो हमारे देश के लिठखतरा बन गठहैं। चाहे वे सीरिया में हों या इराक में। यह अमेरिकी राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¤à¤¿ पद का à¤à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त है: अगर आप अमेरिका के लिठधमकी बने तो आप कोई सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ ठिकाना नहीं तलाश कर पाà¤à¤‚गे।’
उपरोकà¥à¤¤ सारे वृतà¥à¤¤à¤¾à¤‚त में कà¥à¤› à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ नहीं है जिसे खबरों की दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में अपà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ कहा जा सके। अमेरिका इस बात को अचà¥à¤›à¥€ तरह समà¤à¤¤à¤¾ है कि लोकतांतà¥à¤°à¤¿à¤• वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में हà¥à¤•à¥‚मतें अपने इकबाल पर ही चलती हैं और इससे समà¤à¥Œà¤¤à¤¾ नहीं किया जा सकता। उसे यह बात अचà¥à¤›à¥€ तरह समठमें आती है कि हà¥à¤•à¥‚मत से बड़ा होता है हà¥à¤•à¥‚मत का इकबाल। 2014 के आम चà¥à¤¨à¤¾à¤µ से पहले वरिषà¥à¤ नेता जसवंत सिंह ने (उस समय तक वे à¤à¤¾à¤œà¤ªà¤¾ में ही थे) à¤à¤• साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° में यूपीठसरकार की हार की à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯à¤µà¤¾à¤£à¥€ करते हà¥à¤ कहा था कि इस सरकार ने अपना इकबाल खो दिया है। यह कहते हà¥à¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यह à¤à¥€ बताया कि अगर à¤à¤• शबà¥à¤¦ में हà¥à¤•à¥‚मत की कामयाबी और नाकामयाबी को बताना हो तो ‘इकबाल’ जैसा उपयà¥à¤•à¥à¤¤ शबà¥à¤¦ किसी और à¤à¤¾à¤·à¤¾ में मौजूद नहीं है। किसी à¤à¥€ देश की सरकार तिकड़मों से नहीं, अपने इकबाल के बल पर चलती है।
बादशाहत के जमाने में तखà¥à¤¤à¤¨à¤¶à¥€à¤‚ बादशाह को संबोधित करने से पहले इस शबà¥à¤¦ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— लगà¤à¤— अनिवारà¥à¤¯ था: ‘बादशाह सलामत का इकबाल बà¥à¤²à¤‚द रहे’। आजादी से पहले और आजादी के बाद कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ पारà¥à¤Ÿà¥€ का à¤à¥€ इकबाल हà¥à¤† करता था। गांधी और फिर नेहरू, पटेल, आजाद जैसी शखà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¤à¥‹à¤‚ ने हà¥à¤•à¥‚मत के इस इकबाल को किसी हद तक मजबूत à¤à¥€ किया और हमारे लोकतांतà¥à¤°à¤¿à¤• मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की नींव को पायदार बनाया। 1971 की इंदिरा गांधी का इकबाल à¤à¥€ बà¥à¤²à¤‚द था। विरोधी à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दà¥à¤°à¥à¤—ा कहने पर मजबूर थे। उरà¥à¤¦à¥‚ के à¤à¤• हरदिल अजीज शायर मà¥à¤¨à¤µà¥à¤µà¤° राना के à¤à¤• शेर का मजा लीजिà¤, फिर हम अपनी बात आगे बà¥à¤¾à¤¤à¥‡ हैं। मà¥à¤¨à¤µà¥à¤µà¤° राना कहते हैं- वजारत (मंतà¥à¤°à¥€ पद) के लिठहम दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ का साथ मत छोड़ो/ इधर इकबाल आता है उधर इकबाल जाता है।
इंदिरा हà¥à¤•à¥‚मत का 1971 का इकबाल 1975 में बाल à¤à¤° रह गया। दरअसल, इकबाल उस à¤à¤°à¥‹à¤¸à¥‡ का नाम है, जो अवाम अपनी हà¥à¤•à¥‚मत में देखता है। शाबà¥à¤¦à¤¿à¤• अरà¥à¤¥ में जाà¤à¤‚गे तो इकबाल का मतलब है सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करना, दृà¥à¤¤à¤¾ से कहना, अंगीकार करना। लोकतंतà¥à¤° की यह जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ है कि जनता और हà¥à¤•à¥‚मत के बीच कोई परदा न हो। इमरजेंसी के दौरान इस जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ को मां-बेटे की हà¥à¤•à¥‚मत ने इतना घिनौना बना दिया कि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ सतà¥à¤¤à¤¾ में आने के लिठअपना चà¥à¤¨à¤¾à¤µ निशान गाय और बछड़ा छोड़ना पड़ा।
à¤à¤• सवाल ये बातें करते समय बार-बार धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ खींच रहा है कि कà¥à¤¯à¤¾ इकबाल के बगैर हà¥à¤•à¥‚मत नहीं की जा सकती? बिलà¥à¤•à¥à¤² की जा सकती है। इसकी मिसाल पेश की नरसिंह राव ने, जो येन केन पà¥à¤°à¤•à¤°à¥‡à¤£ पांच साल तक हà¥à¤•à¥‚मत चलाते रहे और इस बीच बाजार खोलने जैसा à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• फैसला à¤à¥€ ले लिया। उससे à¤à¥€ पहले बिना इकबाल की हà¥à¤•à¥‚मतें दिलà¥à¤²à¥€ दरबार पर काबिज रहीं। इसमें मोरारजी, चरण सिंह, वीपी सिंह, चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र, देवगौड़ा और इंदà¥à¤°à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤² के नाम सरेफेहरिसà¥à¤¤ हैं। 1999 में अवाम का यह à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ अटल बिहारी के कंधों पर लौटा जरूर, लेकिन यूपीà¤-2 के पिछले पांच वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में हà¥à¤•à¥‚मत से इसका सफाया हो गया। सरकार का इकबाल सात रेसकोरà¥à¤¸ और दस जनपथ के ही चकà¥à¤•à¤° लगाता रहा और न घर का रहा न घाट का।
बहà¥à¤¤ दूर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ जाना। पड़ोसी मà¥à¤²à¥à¤• पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ की जिंदा मिसाल हमारे सामने है। उनकी आजादी की उमà¥à¤° हमारे बराबर है या कहें हमसे à¤à¤• दिन बड़ी है। लेकिन वहां न कà¤à¥€ लोकतंतà¥à¤° मजबूत हो सका और न ही हà¥à¤•à¥‚मत का इकबाल कायम हो सका। दरअसल, वे समठही नहीं पाठकि हà¥à¤•à¥‚मत का इकबाल होता कà¥à¤¯à¤¾ है। वे हà¥à¤•à¥‚मत के इकबाल की जगह अलà¥à¤²à¤¾à¤®à¤¾ इकबाल से ही काम चलाने की कोशिश करते रहे। जितना à¤à¥€ फौजियों ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मौका दिया।
अब कà¥à¤› उमà¥à¤®à¥€à¤¦ जरूर बंधी है। लोग सड़कों पर हैं। नवाज शरीफ की सरकार के खिलाफ लोकतांतà¥à¤°à¤¿à¤• आंदोलन हो रहा है। सेना ने हसà¥à¤¤à¤•à¥à¤·à¥‡à¤ª से मना कर दिया है। अवाम à¤à¤°à¥‹à¤¸à¥‡à¤®à¤‚द नायक की तलाश में है। जरूरी नहीं कि यह तलाश इमरान खान या कादरी पर समापà¥à¤¤ हो जाà¤à¥¤ जो à¤à¥€ हो, वहां बदलाव की जरूरत कतार में खड़ा आखिरी आदमी à¤à¥€ महसूस कर रहा है, और इसके लिठतकलीफें à¤à¥€ उठाने को तैयार है।
आइठलौटते हैं अपने देश में। अवाम से मनमोहन सिंह की खामोशी बरà¥à¤¦à¤¾à¤¶à¥à¤¤ नहीं हो पा रही थी। नित नठघोटाले और जवाब में खामोशी। शिकà¥à¤·à¤¾ का अधिकार, सूचना का अधिकार, à¤à¥‹à¤œà¤¨ का अधिकार, ये अधिकार, वो अधिकार। सरकार जनता को अधिकार पर अधिकार देती जा रही थी, लेकिन अपने लिठà¤à¤°à¥‹à¤¸à¥‡
का अधिकार नहीं हासिल कर पा रही थी। पराकाषà¥à¤ ा यह हो गई कि हà¥à¤•à¥‚मत के बजाय अणà¥à¤£à¤¾ और केजरीवाल में लोगों को à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ दिखा। असल में à¤à¤°à¥‹à¤¸à¥‡ का दरà¥à¤¶à¤¨à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° यह नहीं देखता कि आप कितने सकà¥à¤·à¤® हैं, बलà¥à¤•à¤¿ यह देखता है कि आप कितने दृॠहैं। यह à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ कितना शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ होता है इसका नमूना à¤à¥€ हमारी इन आंखों में देखा। à¤à¤°à¥‹à¤¸à¥‡ ने केजरीवाल को दिलà¥à¤²à¥€ का मà¥à¤–à¥à¤¯à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ à¤à¥€ बना दिया। à¤à¥‚लिà¤à¤—ा नहीं कि मधà¥à¤¯ और निमà¥à¤¨à¤µà¤°à¥à¤— की सियासत करने वाले केजरीवाल को उचà¥à¤šà¤µà¤°à¥à¤— की उन पà¥à¥€-लिखी महिलाओं के वोट à¤à¥€ मिले जिनके पति बड़े सरकारी ओहदों पर बैठे हैं। लेकिन अति उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ और लोकसà¤à¤¾ पर à¤à¥€ à¤à¤¾à¥œà¥‚ चलाने की महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤¾à¤•à¤¾à¤‚कà¥à¤·à¤¾ में केजरीवाल और उनकी मंडली की à¤à¤¾à¥œà¥‚ जनता के à¤à¤°à¥‹à¤¸à¥‡ पर चल गई और आम चà¥à¤¨à¤¾à¤µ में उनका सफाया हो गया।मोदी की रणनीति इस बात को समà¤à¤¤à¥€ थी। वे देश à¤à¤° में घूम-घूम कर à¤à¤• ही बात कहते रहे कि मैं जनता के à¤à¤°à¥‹à¤¸à¥‡ को टूटने नहीं दूंगा। ‘मैं देश नहीं मिटने दूंगा’। ‘मैं मानता हूं कि देश बà¥à¤°à¤¾ नहीं है, यहां के लोग बà¥à¤°à¥‡ नहीं हैं, यहां की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ बà¥à¤°à¥€ नहीं है। सही नेतृतà¥à¤µ मिले तो सही दिशा में चल पड़ेंगे’। फिर कà¥à¤¯à¤¾ था, मिसà¥à¤Ÿà¤° à¤à¤°à¥‹à¤¸à¥‡à¤®à¤‚द की तलाश में à¤à¤Ÿà¤• रही जनता ने मोदी को तमाम आलोचनाओं के बावजूद अपना à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ à¤à¤• बड़े जनादेश के रूप में सौंप दिया। à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ जनादेश जिसे गठबंधन की सियासत के दौर में बीते दिनों की बात कहा जाने लगा था।
आलोचना हो रही है। होनी à¤à¥€ चाहिà¤à¥¤ लेकिन मोदी के लिठसंतोष की बात यह है कि वे हà¥à¤•à¥‚मत के इकबाल को वापस लाने में कामयाब हà¥à¤ हैं। मनमोहनी दौर में आपका सरोकार à¤à¤• वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से था। ‘काम चालू आहे’ जैसे अरà¥à¤¥ में सब कà¥à¤› चल रहा था। कà¥à¤¯à¤¾ चल रहा था किसी को पता नहीं था। उस दौर में वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ विदेशी दौरों पर जाती थी। फाइलें à¤à¤•-दूसरे से हाथ मिला कर लौट आती थीं।
वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ दौर में पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ विदेशों में जा रहे हैं। हालांकि नया कà¥à¤› नहीं हो रहा, फिर à¤à¥€ मोदी नठलग रहे हैं। किसी à¤à¥€ तरह दिलà¥à¤²à¥€ की गदà¥à¤¦à¥€ पाने या उसे बचाठरखने की कोशिशों में सियासत जिस चीज से गाफिल हो गई थी उसी हथियार से मोदी ने सबको परासà¥à¤¤ किया। शिकà¥à¤·à¤• दिवस पर मोदी देश के बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ से सीधे रूबरू हà¥à¤à¥¤ दिलà¥à¤²à¥€ दरबार के तखà¥à¤¤ पर नरेंदà¥à¤° मोदी के बैठने से पहले लगà¤à¤— पचास साल का लंबा वकà¥à¤¤ गà¥à¤œà¤° गया। नेहरू के बाद इन पचास वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में किसी पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ को यह जरूरत महसूस नहीं हà¥à¤ˆ कि वह बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के करीब जाà¤à¥¤ आज अगर मोदी इस टूटी शृृंखला को फिर से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं तो यह à¤à¥€ उस इकबाल को दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ कायम करने की रणनीति का ही हिसà¥à¤¸à¤¾ है।
लेकिन इसी के साथ à¤à¤•-दूसरे खतरे का आà¤à¤¾à¤¸ à¤à¥€ हो रहा है। सच तो यह है कि कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ जरूरत से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ कमजोर हो चà¥à¤•à¥€ है। उसे विपकà¥à¤· के नेता का पद मिल जाठयही बड़ी बात बन चà¥à¤•à¥€ है। इतनी कमजोर कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ à¤à¤¾à¤œà¤ªà¤¾ के इकबाल के लिठà¤à¥€ परेशानी का सबब बन सकती है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि जब सियासत में मà¥à¤•à¤¾à¤¬à¤²à¥‡ का डर नहीं रह जाता तो उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ गलतियां कर बैठता है। कà¤à¥€-कà¤à¥€ ये गलतियां à¤à¤¸à¥€ हो जाती हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¾ नहीं जा सकता है। यूपीà¤-1में वामपंथियों ने सरकार की नाक में नकेल का काम किया था। लेकिन यूपीà¤-2 में आतà¥à¤®à¤¸à¤‚तोषी नेताओं ने वे कारनामे किठकि जिनके कंधों पर हà¥à¤•à¥‚मत का इकबाल बà¥à¤²à¤‚द करने की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ थी वे मनमोहन गठबंधन की दà¥à¤¹à¤¾à¤‡à¤¯à¤¾à¤‚ देते नजर आà¤à¥¤ आप मेरे लंगड़ाने पर आपतà¥à¤¤à¤¿ मत कीजिà¤, मेरी हिमà¥à¤®à¤¤ देखिठकि मैं फिर à¤à¥€ बैसाखियों के सहारे खड़ा हूं। कà¥à¤› इस तरà¥à¤œ पर कि- हंस हंस के पी रहा हूं मैं जिस तरह अशà¥à¤•à¥‡ गम/ जो दूसरा पिठतो कलेजा निकल पड़े। लेकिन यह बहादà¥à¤°à¥€ मनमोहन सिंह के खाते में तो जा सकती है, हà¥à¤•à¥‚मत के खाते में नहीं। हà¥à¤•à¥‚मत का तमगा तो उसका इकबाल है, जो बैसाखियों से हासिल नहीं किया जा सकता।
इस चशà¥à¤®à¥‡ से देखिठतो मोदी कà¥à¤› कर जाने वाले पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ हैं, लेकिन उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जो कà¥à¤› à¤à¥€ करना है वह अगà¥à¤¨à¤¿à¤ªà¤¥ पार करना है। रासà¥à¤¤à¤¾ आसान नहीं है। उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ की हà¥à¤•à¥‚मत का गिरता इकबाल हमारे सामने है। दंगे हों या आदितà¥à¤¯à¤¨à¤¾à¤¥ का चà¥à¤¨à¤¾à¤µà¥€ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° या फिर लव-जिहाद। पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ सरकार की ऊरà¥à¤œà¤¾ बस जनता को यह बताने à¤à¤° में ही खरà¥à¤š होती है कि देखिठजो हो रहा है हम उसके खिलाफ हैं। जो जनता को कहना चाहिठहै वह सरकार कह रही है। जो सरकार को करना चाहिठवह कौन करेगा, कौन बताà¤à¥¤ मोदी इसी छदà¥à¤® सियासत के विपरीत à¤à¤• सियासी लकीर खींचते नजर आ रहे हैं। उस राजनीति के सामने, जो कà¥à¤› करना ही नहीं चाहती, ताकि अचà¥à¤›à¥‡ और बà¥à¤°à¥‡ की पैमाइश ही न हो सके।
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