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भाषाई उपेक्षा का दंश

गणपत तेली

 à¤œà¤¨à¤¸à¤¤à¥à¤¤à¤¾ 1 सितंबर, 2014: भारतीय पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¤¿à¤• सेवा परीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं में भारतीय भाषाओं की उपेकà¥à¤·à¤¾ और दोयम दरà¥à¤œà¥‡ के वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° का मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾

कà¥à¤› समय से बराबर उठता रहा है। संघ लोक सेवा आयोग की पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¤¿à¤• सेवाओं के अतिरिकà¥à¤¤ भी अधिकतर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—ी परीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं में भारतीय भाषाओं की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ à¤à¤¸à¥€ ही है। पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¤ªà¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ पर यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ लिखा रहता है कि पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के पाठ में भिनà¥à¤¨à¤¤à¤¾ होने पर अंगरेजी वाला पाठ मानà¥à¤¯ होगा और कई पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¤ªà¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में तो यह भी लिखा नहीं होता है, जबकि अकà¥à¤¸à¤° हिंदी पाठ अबूठऔर कई बार गलत तक होता है। यह बात विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ अनà¥à¤¦à¤¾à¤¨ आयोग की राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ पातà¥à¤°à¤¤à¤¾ परीकà¥à¤·à¤¾ से लेकर सामानà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—ी परीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं तक में देखी जा सकती है। इन आंदोलनकारियों को इस बात का शà¥à¤°à¥‡à¤¯ दिया जाना चाहिठकि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने भारतीय भाषाओं की इस उपेकà¥à¤·à¤¾ को फिर से बहस में ला दिया।

यह कोई पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¤¿à¤• सेवाओं का अलग-थलग मसला नहीं है, बलà¥à¤•à¤¿ हमारे देश की उस अकादमिक वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का à¤à¤• विसà¥à¤¤à¤¾à¤° है, जहां भारतीय भाषाओं की इसी तरह की उपेकà¥à¤·à¤¾ होती है और जो इन भाषाओं के पठन-पाठन की गतिविधियों और इनके विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठअकादमिक और पेशेगत अवसरों को सीमित करती है। अगर हम उचà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¾ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ पर à¤à¤• नजर डालें तो सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ हो जाà¤à¤—ा कि सरकारी नीतियां इस असमान वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ करती हैं। 

आजादी के बाद हमारे राजनीतिक नेतृतà¥à¤µ ने महसूस किया कि अनà¥à¤¯ विकासमूलक मानकों पर विकसित देशों की बराबरी करने में हमें वकà¥à¤¤ लगेगा, तकनीक और विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° à¤à¤¸à¤¾ है जिसमें और जिसके जरिठहम ततà¥à¤•à¤¾à¤² विकसित देशों की पंकà¥à¤¤à¤¿ में जा खड़े होंगे। फलत: हमारी सरकारें (चाहे किसी भी पारà¥à¤Ÿà¥€ की हों) तकनीकी और वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ पर विशेष धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देती हैं, उसके बाद ही सामाजिक विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के अनà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¥‹à¤‚ का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ आता है। और अंत में, भाषा और साहितà¥à¤¯ जैसे मानविकी के विषय रह जाते हैं। 

अभी हमारे देश में सोलह भारतीय पà¥à¤°à¥Œà¤¦à¥à¤¯à¥‹à¤—िकी संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ (आइआइटी) हैं, जिनमें छह-सात काफी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¿à¤¤ हैं और अनà¥à¤¯ अभी आकार ले रहे हैं। इसके अतिरिकà¥à¤¤ तीस राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¥Œà¤¦à¥à¤¯à¥‹à¤—िकी संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ (à¤à¤¨à¤†à¤‡à¤Ÿà¥€) हैं। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨-शिकà¥à¤·à¤¾ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में पांच भारतीय विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ शिकà¥à¤·à¤¾ और अनà¥à¤¸à¤‚धान संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ (आइआइà¤à¤¸à¤‡à¤†à¤°) हैं। साथ ही, भारतीय विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ बंगलà¥à¤°à¥, भारतीय पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨, नई दिलà¥à¤²à¥€ के अलावा भी विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की विभिनà¥à¤¨ शाखाओं के लिठकई संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ और परिषदें हैं। 

समाज विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की शिकà¥à¤·à¤¾ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में भी à¤à¤¸à¥€ कई संसà¥à¤¥à¤¾à¤à¤‚ हैं- टाटा सामाजिक विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ (मà¥à¤‚बई और हैदराबाद), गोखले अरà¥à¤¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° और राजनीतिक विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ (पà¥à¤£à¥‡), कलिंग सामाजिक विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ (भà¥à¤µà¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°), मदà¥à¤°à¤¾à¤¸ विकास अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨, विकास अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ कोलकाता जैसी कई संसà¥à¤¥à¤¾à¤à¤‚ हैं। लेकिन भाषा और साहितà¥à¤¯ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में भारतीय भाषा संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ मैसूर, केंदà¥à¤°à¥€à¤¯ हिंदी संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨, सेंटà¥à¤°à¤² इंसà¥à¤Ÿà¥€à¤Ÿà¥à¤¯à¥‚ट आॅन कà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¿à¤•à¤² तमिल जैसी गिनी-चà¥à¤¨à¥€ संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं के अलावा महातà¥à¤®à¤¾ गांधी अंतरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ हिंदी विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ और मौलाना आजाद राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ उरà¥à¤¦à¥‚ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ ही हैं। 

इसी तरह उचà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¾ में शोध के लिठवैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ औदà¥à¤¯à¥‹à¤—िक शोध परिषद (सीà¤à¤¸à¤†à¤‡à¤†à¤°), वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ अभियांतà¥à¤°à¤¿à¤•à¥€ शोध परिषद (à¤à¤¸à¤‡à¤†à¤°à¤¸à¥€) जैसी संसà¥à¤¥à¤¾à¤à¤‚ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• शोध को पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ करती हैं। समाजविजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में इंडियन काउंसिल फॉर सोशल साइंस रिसरà¥à¤š अकादमिक शोध को बà¥à¤¾à¤µà¤¾ देती है। इसके अलावा समाजविजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के विभिनà¥à¤¨ अनà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¥‹à¤‚ में भी कई संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ हैं। इतिहास के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• अनà¥à¤¸à¤‚धान परिषद और दरà¥à¤¶à¤¨à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° के लिठइंडियन काउंसिल फॉर फिलोसोफिकल रिसरà¥à¤š à¤à¤¸à¥€ ही परिषदें हैं। इसी तरह नेहरू सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤• संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¤¾à¤²à¤¯ आधà¥à¤¨à¤¿à¤• भारत के इतिहास से जà¥à¥œà¥‡ विभिनà¥à¤¨ पà¥à¤°à¤¸à¤‚गों पर शोध को बà¥à¤¾à¤µà¤¾ देता है। 

ये  à¤ªà¤°à¤¿à¤·à¤¦à¥‡à¤‚ और संसà¥à¤¥à¤¾à¤à¤‚ न केवल शोध के लिठविभिनà¥à¤¨ शोधवृतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ देती हैं, बलà¥à¤•à¤¿ फीलà¥à¤¡ वरà¥à¤• को भी पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ करती हैं। यही नहीं, ये संसà¥à¤¥à¤¾à¤à¤‚ संबंधित कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में शोध को बà¥à¤¾à¤µà¤¾ देने के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से पà¥à¤°à¤¾à¤¯: देश के अलग-अलग हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ में शोध पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ की कारà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¤¾à¤“ं का आयोजन करती हैं, जिनमें यà¥à¤µà¤¾ संकाय सदसà¥à¤¯ और शोधारà¥à¤¥à¥€ भाग लेते हैं। उकà¥à¤¤ सरकारी संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं के अतिरिकà¥à¤¤ कई गैर-सरकारी संसà¥à¤¥à¤¾à¤à¤‚ भी सामाजिक विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ और विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में कारà¥à¤¯à¤°à¤¤ हैं। ये सभी अपने-अपने कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में शोध को बà¥à¤¾à¤µà¤¾ देने का काम करती हैं। साथ ही साथ, ये अपनी परियोजनाओं और कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ के जरिठरोजगार के अवसर भी मà¥à¤¹à¥ˆà¤¯à¤¾ कराती हैं।

वहीं अगर हम भाषा और साहितà¥à¤¯ की तरफ नजर डालें तो भारतीय भाषाओं की साहितà¥à¤¯ अकादमियों के अलावा कà¥à¤› खास है नहीं। उकà¥à¤¤ साहितà¥à¤¯ अकादमियां और अनà¥à¤¯ निजी नà¥à¤¯à¤¾à¤¸ या संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ भी साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ पर जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देते हैं, नठशोध के लिठशोधवृतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤¯: नहीं देते और न ही शोध से संबंधित गतिविधियां आयोजित करते हैं। हालांकि इन अकादमियों और निजी नà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ का दायरा उचà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¾ नहीं है, फिर भी ये पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ के साथ कà¥à¤› शोधवृतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करेंगे तो उस भाषा और साहितà¥à¤¯ का शैकà¥à¤·à¤£à¤¿à¤• विसà¥à¤¤à¤¾à¤° ही होगा। इसलिठà¤à¤¸à¤¾ किया जाना चाहिà¤à¥¤ 

हम इस तरह देखते हैं कि सरकारें भारतीय भाषाओं को कोई विशेष महतà¥à¤¤à¥à¤µ नहीं देती हैं। हां, इन भाषाओं के तकनीकी विकास पर अवशà¥à¤¯ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दिया जा रहा है, जिसके तहत पà¥à¤°à¤—त संगणन विकास केंदà¥à¤°à¥‹à¤‚ (सीडैक), केंदà¥à¤°à¥€à¤¯ भारतीय भाषा संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ मैसूर, जवाहरलाल नेहरू विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ नई दिलà¥à¤²à¥€ में बहà¥à¤¤-सी अकादमिक गतिविधियां चल रही हैं। इस पूरी परिघटना की सबसे बड़ी विडंबना है कि भाषा और साहितà¥à¤¯ जैसे मानविकी विषयों को रोजगारमूलक शिकà¥à¤·à¤¾ के नाम पर नजरअंदाज किया जा रहा है, जबकि बेरोजगारी तो बॠही रही है। सही है कि रोजगार à¤à¤• आवशà¥à¤¯à¤• ततà¥à¤¤à¥à¤µ है, लेकिन शिकà¥à¤·à¤¾ महज रोजगार के लिठनहीं हो सकती। शिकà¥à¤·à¤¾ का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को अपने समाज, राजनीति और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के यथारà¥à¤¥ से

रूबरू कराना भी होता है। à¤…पने समाज और परिवेश से विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को जोड़ने और संपूरà¥à¤£ शिकà¥à¤·à¤¾ देने के इसी उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से आइआइटी, à¤à¤¨à¤†à¤‡à¤Ÿà¥€ जैसी तकनीकी संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं में सामाजिक विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ और मानविकी विभाग भी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किठगà¤à¥¤ उचà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¾ के लिठबनाई गई यशपाल समिति की रिपोरà¥à¤Ÿ में भी यह à¤à¤• महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ सिफारिश थी। लेकिन यह फलीभूत नहीं हà¥à¤ˆ, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि शायद ही किसी संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में हिंदी या किसी अनà¥à¤¯ भारतीय भाषा को सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ मिला हो। इन सभी संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के मानविकी और सामाजिक विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ विभागों में सामाजिक विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के कà¥à¤› विषय पà¥à¤¾à¤ जाते हैं, जबकि साहितà¥à¤¯ और भाषा के नाम पर अंगरेजी पà¥à¤¾à¤ˆ जाती है, हिंदी या अनà¥à¤¯ कोई भारतीय भाषा नहीं। यही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¥Œà¤¦à¥à¤¯à¥‹à¤—िकी संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की है। à¤à¤•-दो अपवाद और हिंदी दिवस जैसी औपचारिकताओं को छोड़ दें तो भारतीय भाषा संबंधी गतिविधियां पà¥à¤°à¤¾à¤¯: इन संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में नहीं होतीं। भारतीय पà¥à¤°à¤¬à¤‚धन संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तो इस मामले में और भी पीछे हैं।

यही हाल उन निजी विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ का है, जो पिछले कà¥à¤› वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में धूमधाम से खà¥à¤²à¥‡ हैं। अधिकतर निजी विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨, तकनीक, पà¥à¤°à¤¬à¤‚धन आदि अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ के लिठही हैं, जिनमें भाषा-साहितà¥à¤¯ के नाम पर बस अंगरेजी है। लेकिन जो निजी विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ सामाजिक विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ और मानविकी को बराबर सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ देने का दावा करते हैं, वहां भी पà¥à¤°à¤¾à¤¯: भारतीय भाषाओं को कोई सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ नहीं मिलता है। उदाहरण के लिà¤, à¤à¤®à¤¿à¤Ÿà¥€ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में जरà¥à¤®à¤¨, सà¥à¤ªà¥‡à¤¨à¤¿à¤¶, फà¥à¤°à¤¾à¤‚सीसी और अंगरेजी में सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤• की पà¥à¤¾à¤ˆ होती है, लेकिन भारतीय भाषाओं में सिरà¥à¤« संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ को यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ देता है। जोधपà¥à¤° नेशनल यूनिवरà¥à¤¸à¤¿à¤Ÿà¥€ जैसे कà¥à¤› ही विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ भारतीय भाषाओं के पाठà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ करते हैं। 

इन अपवादों को छोड़ दें, तो à¤à¤¸à¥‡ निजी विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ की फेहरिसà¥à¤¤ लंबी है, जहां भारतीय भाषाओं का असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ ही नहीं है और उनमें साहितà¥à¤¯ के नाम पर अंगरेजी साहितà¥à¤¯ या कहीं-कहीं तà¥à¤²à¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• साहितà¥à¤¯ पà¥à¤¾à¤¯à¤¾ जाता है। कई सरकारी विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ भी तà¥à¤²à¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• साहितà¥à¤¯ के अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•à¥‹à¤‚ के लिठयोगà¥à¤¯à¤¤à¤¾ तà¥à¤²à¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• साहितà¥à¤¯ या अंगरेजी (अनà¥à¤¯ किसी भाषा में नहीं) में à¤à¤®à¤ निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ करते हैं। अंगरेजी साहितà¥à¤¯ पà¥à¤¾à¤ जाने से कोई समसà¥à¤¯à¤¾ नहीं है, लेकिन भारतीय भाषाओं का साहितà¥à¤¯ भी इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अवशà¥à¤¯ पà¥à¤¾à¤¨à¤¾ चाहिà¤à¥¤ अगर अंगरेजी साहितà¥à¤¯ पà¥à¤¾à¤¯à¤¾ जा सकता है, तो हिंदी, उरà¥à¤¦à¥‚, पंजाबी, बांगà¥à¤²à¤¾, मराठी, असमी, मलयालम, तमिल, तेलà¥à¤—ू, ओड़िया, गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ आदि भाषाओं का साहितà¥à¤¯ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं पà¥à¤¾à¤¯à¤¾ जा सकता!

निजी विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ संबंधित राजà¥à¤¯ की विधानसभा दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पारित अधिनियम के तहत सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किठजाते हैं और इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ अनà¥à¤¦à¤¾à¤¨ आयोग भी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ देता है, तो कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं इन२के लिठयह आवशà¥à¤¯à¤• किया जाठकि ये कम से कम उस राजà¥à¤¯ की भाषा और उसके साहितà¥à¤¯ के कà¥à¤› पाठà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ करें। यही बात आइआइटी और आइआइà¤à¤® पर भी लागू होनी चाहिà¤à¥¤ कितना अचà¥à¤›à¤¾ हो, अगर देश के अलग-अलग हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ इन संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में अलग-अलग भारतीय भाषाà¤à¤‚ भी पà¥à¤¾à¤ˆ जाà¤à¤‚। इसके विपरीत 

वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ के कारण अधिकतर छातà¥à¤°-छातà¥à¤°à¤¾à¤“ं की पà¥à¤¾à¤ˆ की भाषा वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° की भाषा से अलग हो जाती है। जब उनकी जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ से ही इन भाषाओं को काट दिया गया है, तो फिर यह शिकायत कहां से जायज है कि अमà¥à¤• अनà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ भारतीय भाषाओं में नहीं पà¥à¤¾à¤ जा सकते! यह à¤à¤• सरà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¤¿à¤¤ तथà¥à¤¯ है कि हमारे देश में पà¥à¤°à¤¾à¤¯: उचà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¾ का माधà¥à¤¯à¤® भारतीय भाषाà¤à¤‚ नहीं हैं। कà¥à¤› राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤²à¥‹à¤‚ में अवशà¥à¤¯ भारतीय भाषाओं के माधà¥à¤¯à¤® से पठन-पाठन होता है, लेकिन इसके लिठउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दोयम दरà¥à¤œà¥‡ की पाठà¥à¤¯à¤ªà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ पर निरà¥à¤­à¤° रहना पड़ता है। फलसà¥à¤µà¤°à¥‚प, अकà¥à¤¸à¤° वे उस विषय में पारंगत होने और आगे की पà¥à¤¾à¤ˆ से वंचित हो जाते हैं। इसके अलावा भारतीय भाषाओं के लिठविशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ अनà¥à¤¦à¤¾à¤¨ आयोग की विशेष वितà¥à¤¤à¥€à¤¯ सहायता से संचालित कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® या पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¤¾à¤²à¤¯ भी पà¥à¤°à¤¾à¤¯: नहीं दिखाई देते। 

अब जरा उस शिकायत पर भी नजर डालते हैं, जो भारतीय भाषाओं, खासकर हिंदी के लेखक-पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤• करते हैं कि साहितà¥à¤¯ को पाठक नहीं मिल रहे हैं। मिलेंगे कहां से, जब संभावित पाठकों की पूरी पीà¥à¥€ को ही वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ तरीके से उसके साहितà¥à¤¯, भाषा और समाज से दूर कर दिया जाता है। यह सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ अनà¥à¤¯ भारतीय भाषाओं की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में हिंदी में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ विकट है।

यह मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ चाहे सीधे रूप से पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—ी परीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं से न जà¥à¥œà¤¤à¤¾ हो, इससे अलहदा नहीं है, बलà¥à¤•à¤¿ यह उस वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• परिदृशà¥à¤¯ से संबदà¥à¤§ है, जहां भारतीय भाषाà¤à¤‚ उपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ हैं और जहां यह माना जाता है कि वे अंगरेजी से पिछड़ी हà¥à¤ˆ हैं, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का माधà¥à¤¯à¤® नहीं बन सकती हैं और संवाद-कौशल या वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ-विकास का परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ तो अंगरेजी ही है। à¤à¤• बार यह मान लेने के बाद अकादमिक संसाधनों का असमान वितरण आम सà¥à¤µà¥€à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ पा जाता है, जो भारतीय भाषाओं को और हाशिये पर धकेल देता है। इसलिठइन भाषाओं के इस मसले को समगà¥à¤°à¤¤à¤¾ में देखा जाना चाहिà¤à¥¤

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