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बेलगाम महंगाई के पोषक

विकास नारायण राय

 à¤œà¤¨à¤¸à¤¤à¥à¤¤à¤¾ 22 अगसà¥à¤¤, 2014 : वितà¥à¤¤à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ अरà¥à¤£ जेटली के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° आम लोगों के लिठबवालेजान बनी महंगाई का सीधा संबंध बाजार में

आवशà¥à¤¯à¤• वसà¥à¤¤à¥à¤“ं की आपूरà¥à¤¤à¤¿ से है। भारतीय शासकों का यह जाना-माना तरà¥à¤• रहा है, जो जनता को बरगलाने वाले अगले पाखंड की जमीन भी तैयार करता है। शासकों का अगला तरà¥à¤• होता है कि आम लोगों की जरूरत की चीजों की आपूरà¥à¤¤à¤¿ जमाखोरों ने रोक रखी है और सरकार उनके विरà¥à¤¦à¥à¤§ कड़े कदम उठा कर महंगाई पर रोक लगा देगी। जेटली भी चाहते हैं कि लोग उनके à¤à¤¸à¥‡ ही आशà¥à¤µà¤¾à¤¸à¤¨ पर विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ करें और चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª ‘अचà¥à¤›à¥‡ दिन’ की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करते रहें। 

भारत के पहले पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ जवाहरलाल नेहरू तो यहां तक कहा करते थे कि जमाखोरों को नजदीकी बिजली के खंभे से लटका देना चाहिà¤à¥¤ जेटली ने इसी सà¥à¤° में बयानबाजी करते हà¥à¤ साथ में यह ‘साफगोई’ भी जोड़नी शà¥à¤°à¥‚ कर दी है कि उनकी सरकार के तà¥à¤µà¤°à¤¿à¤¤ उपायों के चलते ही इस वरà¥à¤· महंगाई के मौसम में भी कीमतें उतनी नहीं बà¥à¤¨à¥‡ पाई हैं, जितनी पिछले दस वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ शासन के दौर में बॠजाया करती थीं। इस तरह अपने पूरà¥à¤µà¤µà¤°à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से à¤à¤• कदम आगे बॠकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ‘महंगाई का मौसम’ नाम की à¤à¤• अबूठआरà¥à¤¥à¤¿à¤• अवधारणा ईजाद कर डाली है। हालांकि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यह बताने की जरूरत नहीं समà¤à¥€ कि जब महंगाई के मौसम की इतनी सटीक भविषà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤£à¥€ संभव है तो जमाखोरों की मà¥à¤¨à¤¾à¤«à¤¾à¤–ोरी के विरà¥à¤¦à¥à¤§ समà¥à¤šà¤¿à¤¤ कदम कीमतें बà¥à¤¨à¥‡ से पहले कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं उठाठजा सकते। 

अब बाजार में रोज महंगाई के खाते में लà¥à¤Ÿà¤¤à¥€ जनता के सामने विकलà¥à¤ª कà¥à¤¯à¤¾ है? यही कि घर वापसी में रासà¥à¤¤à¥‡ के खंभों पर लटकते मà¥à¤¨à¤¾à¤«à¤¾à¤–ोरों की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ से खà¥à¤¶ हो ले या फिर महंगाई के मौसम के बदलने के इंतजार का लà¥à¤¤à¥à¤« उठाती रहे। तेल और गैस के निरंतर बà¥à¤¤à¥‡ दाम से जà¥à¥œà¥€ महंगाई को तो जेटली अंतरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ बाजार से नतà¥à¤¥à¥€ कर अपनी सरकार को मà¥à¤•à¥à¤¤ कर ही चà¥à¤•à¥‡ हैं। इसी अंदाज में मोदी सरकार रेल भाड़े में वृदà¥à¤§à¤¿ को यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठबेहतर सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ मà¥à¤¹à¥ˆà¤¯à¤¾ कराने की मà¥à¤¹à¤¿à¤® से संदरà¥à¤­à¤¿à¤¤ कर सेवा और सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ की अपनी तमाम जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से पहले ही पलà¥à¤²à¤¾ à¤à¤¾à¥œ चà¥à¤•à¥€ है। 

तो कà¥à¤¯à¤¾ आम आदमी की कमर तोड़ने वाली महंगाई का कà¥à¤² मामला इतना ही है? सब कà¥à¤› आलू, पà¥à¤¯à¤¾à¤œ, टमाटर के तà¥à¤²à¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• बाजार भाव तक सिमट गया है? पूंजी खेमे के विशेषजà¥à¤ž और टिपà¥à¤ªà¤£à¥€à¤•à¤¾à¤° भी विकास के आहà¥à¤µà¤¾à¤¨ के साथ जनता को ही कमर कसने का संदेश दे रहे हैं। मनमोहन काल के मà¥à¤•à¤¾à¤¬à¤²à¥‡ आज उनकी आवाज सरकारी नीतियों में कà¥à¤› जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ही पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¿à¤‚बित होती दिख रही है। 

उनकी भंगिमाओं से लगता है कि सरकारों की नीतियों और पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤•à¤¤à¤¾à¤“ं की महंगाई को बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ में कोई भूमिका ही नहीं है। जैसे जेटली और मोदी को वासà¥à¤¤à¤µ में जनता के हितों की ही à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° चिंता सता रही हो! 

दूसरी तरफ, आम आदमी के लिठमहंगाई के इस कमरतोड़ दौर में भी कारों के दाम सà¥à¤¥à¤¿à¤° हैं, इसके लिठमोदी सरकार ने भी अपनी पूरà¥à¤µà¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸à¥€ सरकार की तरà¥à¤œ पर कारों पर à¤à¤•à¥à¤¸à¤¾à¤‡à¤œ की कटौती जारी रखी है। दरअसल, आरà¥à¤¥à¤¿à¤• रूप से संपनà¥à¤¨ वरà¥à¤—ों के लिठभारतीय ही नहीं, विशà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥€ बाजारों को भी सà¥à¤²à¤­ रखने की जदà¥à¤¦à¥‹à¤œà¤¹à¤¦ मोदी सरकार में भी उसी शिदà¥à¤¦à¤¤ से जारी रखी गई है जैसे मनमोहन सरकार के समय में होती थी। परिणामसà¥à¤µà¤°à¥‚प, भारतीय रिजरà¥à¤µ बैंक की मौदà¥à¤°à¤¿à¤• संचालन कवायदों के चलते अमेरिकी डॉलर उतà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° ससà¥à¤¤à¤¾ हà¥à¤† है। जिन अमीर तबकों के मतलब को साधने का काम डॉलर का यह ससà¥à¤¤à¤¾à¤ªà¤¨ करता है, उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के लिठमà¥à¤¨à¤¾à¤«à¤¾ कूटने वाले शेयर बाजार रिकारà¥à¤¡à¤¤à¥‹à¥œ ऊंचाई पर पहà¥à¤‚चे हà¥à¤ हैं। 

यह है सरकार की नीयत का असली गोरखधंधा। गरीब के लिठबयानबाजी और रईस को ठोस सहूलियतें! à¤à¤• बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ सवाल यह भी बनता है कि आखिर ‘महंगाई’ है कà¥à¤¯à¤¾? कà¥à¤¯à¤¾ सिरà¥à¤« चीजों की कीमतें बà¥à¤¨à¤¾ महंगाई है? या इसका संबंध अनिवारà¥à¤¯ रूप से लोगों की खरीद कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ से भी है? पूंजीवादी बाजार-वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में बेजरूरत चीजें उपभोकà¥à¤¤à¤¾ के गले मà¥à¤¨à¥‡ के अलावा, कीमतों का बà¥à¤¤à¥‡ रहना भी विकास की सतत पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ का à¤à¤• सà¥à¤µà¤¾à¤­à¤¾à¤µà¤¿à¤• हिसà¥à¤¸à¤¾ होता है। à¤à¤¸à¥‡ में आवशà¥à¤¯à¤• वसà¥à¤¤à¥à¤“ं के दाम सà¥à¤¥à¤¿à¤° रखने के लिठसरकारें सबसिडी का सहारा लेती हैं। उदाहरण के लिà¤, अमेरिका में दशकों से खादà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ की कीमतें बà¥à¤¨à¥‡ नहीं दी गई हैं। पर अपने किसानों की आमदनी में वृदà¥à¤§à¤¿ के लिठअमेरिकी सरकार हर वरà¥à¤· उनकी फसलों पर सहायता राशि जरूर बà¥à¤¾à¤¤à¥€ रही है। यानी सरकार की पहल से जहां किसान की जेब में अतिरिकà¥à¤¤ पैसा आना तय रहता है, वहीं सामानà¥à¤¯ उपभोकà¥à¤¤à¤¾ के लिठउसकी जेब के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ की बाजार में उपलबà¥à¤§à¤¤à¤¾ भी। 

कीमत सà¥à¤¥à¤¿à¤° रखने का à¤à¤• अनà¥à¤¯ तरीका करों में कमी का है, जैसा कि भारत में कारों के मामले में फिलहाल लागू नजर आता है। दोनों तरीकों से संबंधित उपभोकà¥à¤¤à¤¾ समूह की खरीद कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ का बाजार की कीमतों के साथ संतà¥à¤²à¤¨ बनाया जाता है। 

भारत में सरकारी करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के वेतन और पेंशन को मूलà¥à¤¯ सूचकांक से जोड़ कर उनके लिठमहंगाई से संतà¥à¤²à¤¨ हासिल करने का मॉडल भी बखूबी चल रहा है। कॉरपोरेट कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में भी करà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के वेतन और बोनस में वृदà¥à¤§à¤¿ आम बात है। गृह ऋण, निजी ऋण, शिकà¥à¤·à¤¾ ऋण, चिकितà¥à¤¸à¤¾ भरपाई, छà¥à¤Ÿà¥à¥à¤Ÿà¥€ भरपाई जैसी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ भी सरकारी और कॉरपोरेट कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में उपलबà¥à¤§ कराई जाती हैं, जो करà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर बà¥à¤¤à¥€ कीमतों के असर को रोकने में आरà¥à¤¥à¤¿à¤• कवच का काम करती हैं। लिहाजा

इन वरà¥à¤—ों के लिठबà¥à¤¤à¥€ कीमतों का मतलब कमरतोड़ महंगाई न होकर पहà¥à¤‚च भरा विकास होता है। कालाधन भी इन वरà¥à¤—ों की पहà¥à¤‚च का हिसà¥à¤¸à¤¾ है, जो मौजूदा अरà¥à¤¥à¤¤à¤‚तà¥à¤° में इनके लिठसोने में सà¥à¤¹à¤¾à¤—े जैसी सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ बन जाता है। à¤¹à¤®à¥‡à¤‚ यह नहीं भूलना चाहिठकि दो माह से ऊपर के शासनकाल में मोदी सरकार ने कालेधन के नाम पर à¤à¤• रà¥à¤ªà¤¯à¤¾ भी पकड़ने की मंशा नहीं दिखाई है। उनकी à¤à¤• भी आरà¥à¤¥à¤¿à¤• कवायद à¤à¤¸à¤¾ कोई संदेश नहीं देती कि सरकारी नीतियों/ पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤•à¤¤à¤¾à¤“ं के निशाने पर देश के भीतर रोजाना पैदा होने वाला सैकड़ों-हजारों करोड़ का कालाधन भी आता है। जबकि कालाधन न सिरà¥à¤« महंगाई का मà¥à¤–à¥à¤¯ सà¥à¤°à¥‹à¤¤ है, बलà¥à¤•à¤¿ मेहनत के दम पर की जाने वाली वैध कमाई की खरीद-कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ में हà¥à¤°à¤¾à¤¸ का पà¥à¤°à¤®à¥à¤– कारक भी। सरà¥à¤µà¥‹à¤šà¥à¤š नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के दबाव में विदेशों में जमा कालेधन पर विशेष जांच दल गठित किया गया है। पर अगर सरकार की नीयत वासà¥à¤¤à¤µ में कालेधन को समापà¥à¤¤ करने की होती तो अब तक तमाम जà¥à¤žà¤¾à¤¤ अपराधी जेलों में होते। बेशक, संबंधित विदेशी सरकारों की शरà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° उनके नाम सारà¥à¤µà¤œà¤¨à¤¿à¤• न किठजाà¤à¤‚, पर उनसे पूछताछ कर कालेधन की पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ को तो धà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ किया जा सकता था। इससे महंगाई के मौसम में भी अपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ बदलाव की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ हो जाती। 

महंगाई बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ में बेलगाम मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¸à¥à¤«à¥€à¤¤à¤¿ की भूमिका को मोदी सरकार भी उसी तरह सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करती है जैसे मनमोहन सरकार करती रही थी। पर दोनों सरकारें इसे कीमतों में वृदà¥à¤§à¤¿ से ही जोड़ कर देखती हैं न कि खरीद कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ के कम होने से। लिहाजा, खादà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ में महंगाई के आरोपों से घिरने पर इन सरकारों का à¤à¤• जैसा ‘मासूम’ तरà¥à¤• होता है- इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¸à¥à¤«à¥€à¤¤à¤¿ का रोना। यह ढोल पीटना कि किसान की फसलों के समरà¥à¤¥à¤¨ मूलà¥à¤¯ भी हर वरà¥à¤· बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ पड़ रहे हैं और इसी तरह कृषि और दूसरे शà¥à¤°à¤®à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ की मजदूरी भी बà¥à¤¾à¤ˆ जा रही है, लिहाजा खादà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ तो महंगे होंगे ही। 

आखिर किसानों और मजदूरों का भी तो खयाल रखना है। पर पूंजीशाहों की जेब में बैठी सरकारों के इन दावों की असलियत कà¥à¤› और होती है। दरअसल, किसानों और मजदूरों पर भी महंगाई की मार वैसे ही पड़ रही है जैसे समाज के अनà¥à¤¯ वरà¥à¤—ों पर। कारण भी वही है- उनकी खरीद कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ में उतà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° कमी हà¥à¤ˆ है। सीधा-सा समीकरण यों बनता है कि उनके लिठसमरà¥à¤¥à¤¨ मूलà¥à¤¯ या मजदूरी की दर उस अनà¥à¤ªà¤¾à¤¤ में नहीं बà¥à¤¾à¤ जा सकते, जिस अनà¥à¤ªà¤¾à¤¤ में बाजार में कीमतें बà¥à¤¤à¥€ हैं। 

सरकारी आकलन में खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° की मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¸à¥à¤«à¥€à¤¤à¤¿ पर हमेशा पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¤šà¤¿à¤¹à¥à¤¨ लगाने को आतà¥à¤° सरकारें, शासन चलाने के नाम पर की जा रही बेहद फिजूलखरà¥à¤šà¥€ (ताजातरीन उदाहरण- साठ हजार करोड़ रà¥à¤ªà¤ की बà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ टà¥à¤°à¥‡à¤¨) या सà¥à¤°à¤¸à¤¾ के मà¥à¤‚ह की तरह निरंतर बà¥à¤¤à¥‡ रकà¥à¤·à¤¾ वà¥à¤¯à¤¯ पर कभी अपवà¥à¤¯à¤¯ का सवाल खड़ा नहीं होने देतीं। न लाखों करोड़ के बटà¥à¥à¤Ÿà¥‡-खाते में पड़े बैंक करà¥à¤œà¥‹à¤‚ की उगाही की कोई ठोस योजना लेकर सामने आती हैं, न वे धनाढà¥à¤¯ वरà¥à¤—ों से कर उगाहने में अपनी आपराधिक कोताही को ठीक करना चाहती हैं। 

करों की उगाही में छूट का धंधा और टैकà¥à¤¸ हैवन का तिलिसà¥à¤® कà¥à¤¯à¤¾ बिना सरकारों की मरà¥à¤œà¥€ के चल रहा है? मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¸à¥à¤«à¥€à¤¤à¤¿ के ये आयाम ही आम आदमी के लिठमहंगाई के असली आयाम बनते हैं। कालाधन और मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¸à¥à¤«à¥€à¤¤à¤¿ की बेलगाम दौड़ में हर मेहनतकश की खरीद कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ का उतà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° पिछड़ते जाना सà¥à¤µà¤¾à¤­à¤¾à¤µà¤¿à¤• है। ये वे दीमक हैं, जो मेहनत की कमाई के पैसे की खरीद कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ को निरंतर चट करते रहते हैं। महंगाई सिरà¥à¤« पà¥à¤¯à¤¾à¤œ, आलू और टमाटर की बà¥à¤¤à¥€ कीमतें नहीं हैं, जिनका रोना कॉरपोरेट मीडिया जोर-शोर से इसलिठउठाता है कि मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¸à¥à¤«à¥€à¤¤à¤¿ के वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ को खादà¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° तक समेट कर रखा जाà¤à¥¤ सरकार की कà¥à¤°à¥‹à¤¨à¥€ कॉरपोरेट नीतियों ने आम आदमी के लिठआवास, चिकितà¥à¤¸à¤¾ और शिकà¥à¤·à¤¾ जैसी बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ जरूरतें भी सपना बना दी हैं। तमाम सरकारें इन कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में अपनी संतà¥à¤²à¤¨à¤•à¤¾à¤°à¥€ भूमिका को मà¥à¤¨à¤¾à¤«à¤¾à¤–ोरों के हवाले करती गई हैं। महंगाई की इन पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर विचार तो दूर, चरà¥à¤šà¤¾ भी नहीं होती। 

देखा जाठतो उन सीमित वरà¥à¤—ों को छोड़ कर, जिनकी आमदनी में वृदà¥à¤§à¤¿ की दर बà¥à¤¤à¥€ कीमतों से तेज है या वे जो मà¥à¤¨à¤¾à¤«à¤¾à¤–ोरी और भà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ कालेधन की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¸à¥à¤«à¥€à¤¤à¤¿ के कà¥à¤šà¤•à¥à¤° से अछूते बने हà¥à¤ हैं, शेष भारतीयों की खरीद कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ में, उनकी जेब में रà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤‚ की सांकेतिक वृदà¥à¤§à¤¿ के बावजूद, निरंतर हà¥à¤°à¤¾à¤¸ ही हà¥à¤† है। गरीब और निमà¥à¤¨-मधà¥à¤¯à¤µà¤°à¥à¤—ों में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ और मधà¥à¤¯à¤µà¤°à¥à¤—ों में कà¥à¤› कम। तभी उतà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° वे जीवन की बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ जरूरतें जà¥à¤Ÿà¤¾ पाने में असमरà¥à¤¥ होते गठहैं। उनके जीवन में महंगाई à¤à¤• कभी न सà¥à¤²à¤à¤¨à¥‡ वाली पहेली बना दी गई है। 

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