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खाद्यान्न सुरक्षा और वैश्विक विसंगतियां

धरà¥à¤®à¥‡à¤‚दà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤² सिंह

 à¤œà¤¨à¤¸à¤¤à¥à¤¤à¤¾ 28 अगसà¥à¤¤, 2014 : à¤…पने खादà¥à¤¯ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ अधिकार की रकà¥à¤·à¤¾ के लिठभारत के कड़े रà¥à¤– के कारण विशà¥à¤µ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° संगठन (डबà¥à¤²à¥à¤¯à¥‚टीओ) के आका अमीर देश भले नाराज हों,

लेकिन अब हमारे समरà¥à¤¥à¤¨ में कà¥à¤› देश और संगठन खà¥à¤² कर सामने आठहैं। पहले पड़ोसी चीन ने समरà¥à¤¥à¤¨ दिया और अब संयà¥à¤•à¥à¤¤ राषà¥à¤Ÿà¥à¤° के इंटरनेशनल फंड फॉर à¤à¤—à¥à¤°à¥€à¤•à¤²à¥à¤šà¤° डेवलपमेंट (आइà¤à¤«à¤à¤¡à¥€) के अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· ने भारत के पकà¥à¤· में पैरवी की है। आइà¤à¤«à¤à¤¡à¥€ अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° किसी भी राषà¥à¤Ÿà¥à¤° के लिठअनà¥à¤¯ देशों में रोजगार के अवसर सृजित करने से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ काम अपनी जनता को खादà¥à¤¯ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करना है। भारत भी यही चाहता है। जिनेवा में जब डबà¥à¤²à¥à¤¯à¥‚टीओ वारà¥à¤¤à¤¾ फिर शà¥à¤°à¥‚ होगी तब निशà¥à¤šà¤¯ ही चीन और आइà¤à¤«à¤à¤¡à¥€ के समरà¥à¤¥à¤¨ से भारत को अपना पकà¥à¤· मनवाने में मदद मिलेगी। 

भारत के लिठखादà¥à¤¯ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ कानून कितना जरूरी है, यह जानने के लिठविशà¥à¤µ भूख सूचकांक (गà¥à¤²à¥‹à¤¬à¤² हंगर इंडेकà¥à¤¸) पर दृषà¥à¤Ÿà¤¿ डालना जरूरी है। इसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° भूख के मोरà¥à¤šà¥‡ पर जिन उनà¥à¤¨à¥€à¤¸ देशों की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ अब भी चिंताजनक है उनमें भारत à¤à¤• है। रिपोरà¥à¤Ÿ में कà¥à¤ªà¥‹à¤·à¤£ की शिकार आबादी, पांच साल से कम आयॠके औसत वजन से कम बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ और बाल मृतà¥à¤¯à¥ दर (पांच साल से कम आयà¥) के आधार पर दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के à¤à¤• सौ बीस देशों का ‘हंगर इंडेकà¥à¤¸â€™ तैयार किया गया और जो देश बीस से 29.9 अंक के बीच में आठउनकी सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ चिंताजनक मानी गई है। भारत 21.3 अंक के साथ पड़ोसी पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ (19.3), बांगà¥à¤²à¤¾à¤¦à¥‡à¤¶ (19.4) और चीन (5.5) से भी पीछे है। शिकà¥à¤·à¤¾ के अभाव, बà¥à¤¤à¥€ सामाजिक-आरà¥à¤¥à¤¿à¤• खाई और महिलाओं की बदतर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ के कारण भारत में विशाल कंगाल (गरीबी रेखा से नीचे) आबादी है। 

इसीलिठभारत ने डबà¥à¤²à¥à¤¯à¥‚टीओ की जिनेवा बैठक में कड़ा रà¥à¤– अपनाया, जिससे अमेरिका, यूरोपीय देश और आसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‡à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ बिलबिलाठहà¥à¤ हैं। भारत ने बैठक में साफ कर दिया कि जब तक उसे अपनी गरीब जनता की खादà¥à¤¯ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ की गारंटी नहीं मिलेगी तब तक वह वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° संवरà¥à¤§à¤¨ समà¤à¥Œà¤¤à¥‡ (टीà¤à¤«à¤) को लागू नहीं होने देगा। मनमोहन सिंह सरकार ने पिछले साल संसद में खादà¥à¤¯ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ कानून पारित किया था, जो देश की लगभग असà¥à¤¸à¥€ करोड़ आबादी को ससà¥à¤¤à¤¾ अनाज मà¥à¤¹à¥ˆà¤¯à¤¾ करने की गारंटी देता है। 

इस कानून के अंतरà¥à¤—त जरूरतमंद लोगों को तीन रà¥à¤ªà¤ किलो की दर पर चावल, दो रà¥à¤ªà¤ किलो गेहंू और à¤à¤• रà¥à¤ªà¤¯à¤¾ किलो के हिसाब से मोटे अनाज (बाजरा, जà¥à¤µà¤¾à¤° आदि ) पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करना सरकार की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ है। नया कानून लागू हो जाने पर सरकार को करोड़ों रà¥à¤ªà¤ की सबसिडी देनी पड़ रही है। इस साल के बजट में वितà¥à¤¤à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ अरà¥à¤£ जेटली ने खादà¥à¤¯ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ कानून लागू करने के लिठà¤à¤• सौ पचास लाख करोड़ रà¥à¤ªà¤ का पà¥à¤°à¤¾à¤µà¤§à¤¾à¤¨ रखा है। 

डबà¥à¤²à¥à¤¯à¥‚टीओ के कृषि करार (à¤à¤“à¤) के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° किसी भी देश का सबसिडी बिल उसकी कà¥à¤² कृषि पैदावार का दस पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ से अधिक नहीं हो सकता। पिछले साल बाली (इंडोनेशिया) की डबà¥à¤²à¥à¤¯à¥‚टीओ बैठक में भारत ने जब इस दस फीसद पाबंदी का पà¥à¤°à¤¬à¤² विरोध किया तो उसे चार साल तक की छूट दे दी गई। छूट के बदले अमीर देशों ने इस वरà¥à¤· 31 जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ से टीà¤à¤«à¤ लागू करने की शरà¥à¤¤ रखी थी। टीà¤à¤«à¤ पर अमल का सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ लाभ अमीर देशों को होगा, इसलिठवे इसे जलà¥à¤¦à¥€ से जलà¥à¤¦à¥€ लागू कराना चाहते हैं। भारत की मांग है कि टीà¤à¤«à¤ लागू करने से पहले कृषि सबसिडी विवाद का सà¥à¤¥à¤¾à¤¯à¥€ हल खोजा जाना चाहिà¤à¥¤ उसे डर है कि टीà¤à¤«à¤ लागू हो जाने से उसके हाथ बंध जाà¤à¤‚गे। चार साल की छूट खतà¥à¤® हो जाने के बाद अमीर देश दस फीसद खादà¥à¤¯ सबसिडी की शरà¥à¤¤ उस पर थोप देंगे। 

दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में आज दो तरह की खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ सबसिडी चालू है। पहली सबसिडी किसानों को दी जाती है। यह सरकार दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ससà¥à¤¤à¤¾ उरà¥à¤µà¤°à¤• और बिजली-पानी मà¥à¤¹à¥ˆà¤¯à¤¾ कराने और नà¥à¤¯à¥‚नतम फसल खरीद मूलà¥à¤¯ तय करने के रूप में दी जाती है। दूसरी सबसिडी उपभोकà¥à¤¤à¤¾à¤“ं को मिलती है। 

राशन की दà¥à¤•à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से मिलने वाला ससà¥à¤¤à¤¾ गेहूं-चावल इस शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में आता है। भारत में दोनों तरह की सबसिडी दी जा रही है और उसका सबसिडी बिल कà¥à¤² खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ उपज के दस पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ से अधिक है। डबà¥à¤²à¥à¤¯à¥‚टीओ समà¤à¥Œà¤¤à¥‡ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° अगर कोई देश करार का उलà¥à¤²à¤‚घन करता है तो उसे अपना खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ भंडार अंतरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ निगरानी में लाना पड़ेगा। पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤‚धों की मार à¤à¥‡à¤²à¤¨à¥€ पड़ेगी, सो अलग। भारत à¤à¤¸à¥‡ इकतरफा नियमों का विरोध कर रहा है। 

डबà¥à¤²à¥à¤¯à¥‚टीओ का कोई भी समà¤à¥Œà¤¤à¤¾ सदसà¥à¤¯ देशों की सरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤®à¤¤à¤¿ से लागू हो सकता है। विकसित देश भारत पर आरोप लगा रहे हैं कि विशà¥à¤µ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° के सरलीकरण के लिठजरूरी टीà¤à¤«à¤ की राह में वह रोड़े अटका रहा है। भारत के नकारातà¥à¤®à¤• रवैठके कारण उनके निरà¥à¤¯à¤¾à¤¤ को भारी नà¥à¤•à¤¸à¤¾à¤¨ पहà¥à¤‚चेगा। उनका मानना है कि टीà¤à¤«à¤ लागू हो जाने से विशà¥à¤µ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° में दस खरब डॉलर की वृदà¥à¤§à¤¿ होगी और 2.1 करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा। 

सच यह है कि अमेरिका और यूरोपीय देश अभी तक मंदी की मार से पूरी तरह उबर नहीं पाठहैं। अपना माल बेचने के लिठउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ भारत, चीन, दकà¥à¤·à¤¿à¤£ अफà¥à¤°à¥€à¤•à¤¾ और बà¥à¤°à¤¾à¤œà¥€à¤² जैसे विकासशील देशों के विशाल बाजार की दरकार है। टीà¤à¤«à¤ लागू हो जाने से करों की दरें कम होंगी और खरà¥à¤šà¥‡ घटेंगे। इससे दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ की मंडियों में उनका माल कम कीमत पर मिलेगा। 

भारत और उसके समरà¥à¤¥à¤• विकासशील देशों का मत है कि बड़े देशों को रास आने वाले टीà¤à¤«à¤ पर अमल से पहले उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी जनता को खादà¥à¤¯ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने का अधिकार दिया जाना चाहिà¤à¥¤ हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ पर बाली में बनी सहमति से पलट जाने का आरोप लगाने वाले अमीर देश यह भूल जाते

हैं कि अपना हित साधने के लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने 2005-2006, 2008-2009 और 2013 में कैसे-कैसे अड़ंगे लगाठथे। विशà¥à¤µ बिरादरी की भावनाओं की उपेकà¥à¤·à¤¾ कर अमेरिका आज भी अपने किसानों को हर साल बीस अरब डॉलर (बारह खरब रà¥à¤ªà¤) की सबसिडी देता है और इसी के बूते खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ निरà¥à¤¯à¤¾à¤¤ कर पाता है। à¤†à¤‚कड़े गवाह हैं कि देश की 17.5 फीसद आबादी कà¥à¤ªà¥‹à¤·à¤£ की शिकार है और चालीस पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ का वजन औसत से कम है। बाल मृतà¥à¤¯à¥ दर भी 6.1 फीसद है। अरà¥à¤¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° अगर कोई सरकार ‘इंकà¥à¤²à¥‚सिव गà¥à¤°à¥‹à¤¥â€™ मॉडल को ईमानदारी से अपनाठतो विकास दर में जितने फीसद वृदà¥à¤§à¤¿ होगी उसकी आधी दर से कà¥à¤ªà¥‹à¤·à¤£ में कमी आà¤à¤—ी। उदाहरण के लिà¤, अगर विकास दर में चार पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ के हिसाब से बà¥à¥‹à¤¤à¤°à¥€ होती है तो कà¥à¤ªà¥‹à¤·à¤£ दो पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ के हिसाब से कम होना चाहिà¤à¥¤ हमारे देश में 1990-2005 के बीच औसत विकास दर 4.2 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ रही, लेकिन इस दौरान कà¥à¤ªà¥‹à¤·à¤£ में कमी आई महज 0.65 फीसद। इसका अरà¥à¤¥ यही है कि खà¥à¤²à¥€ अरà¥à¤¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ अपनाने का लाभ गरीब और कमजोर वरà¥à¤— को न के बराबर मिला है।

आज जहां à¤à¤• ओर करोड़ों लोगों को दो जून की रोटी नसीब नहीं है, वहीं दूसरी तरफ बेवजह खाकर मोटे हो रहे लोगों का बà¥à¤¤à¤¾ आंकड़ा देश और दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में गरीबों-अमीरों के बीच चौड़ी होती खाई को उजागर करता है। फिलहाल पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में कà¥à¤ªà¥‹à¤·à¤£ के शिकार असà¥à¤¸à¥€ करोड़ लोग हैं, जबकि मोटापे की शिकार आबादी à¤à¤• अरब है। भारत में भी संपनà¥à¤¨ तबके में वजन बà¥à¤¨à¥‡ का चलन à¤à¤• महामारी बन चà¥à¤•à¤¾ है। 

खादà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ कृषि संगठन (à¤à¤«à¤à¤“) के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ की भरपूर पैदावार होने से पिछले साल गेहूं के मूलà¥à¤¯ में सोलह पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤, चावल में तेईस पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ और मकà¥à¤•à¤¾ में पैंतीस पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ कमी आई थी। तब मानसून की मेहरबानी से भारत में भी खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ की पैदावार बà¥à¥€à¥¤ à¤à¤¸à¥‡ में पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ उठता है कि जब देश और दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ की कोई कमी नहीं है फिर कà¥à¤ªà¥‹à¤·à¤£ की शिकार आबादी कम कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं हो रही? 

हाल ही में आई पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• ‘फीडिंग इंडिया: लाइवलीहà¥à¤¡, à¤à¤‚टाइटेलमेंट à¤à¤‚ड कैपैबिलिट’ में इसका उतà¥à¤¤à¤° खोजा जा सकता है। पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• के लेखकों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° समसà¥à¤¯à¤¾ पैदावार की नहीं, बलà¥à¤•à¤¿ पैदावार जरूरतमंदों तक पहà¥à¤‚चाने से जà¥à¥œà¥€ है।

खादà¥à¤¯ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ विधेयक के पैमाने पर इसे कस कर देखने से भी कई चौंकाने वाले तथà¥à¤¯ सामने आते हैं। नà¥à¤¯à¥‚नतम खरीद मूलà¥à¤¯ के तहत सरकार को गेहूं की कीमत औसत चौदह रà¥à¤ªà¤ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ किलो पड़ती है। इसमें परिवहन, मंडी कर, भंडारण, अनाज बोरों में भरने, कमीशन, पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¤¿à¤• खरà¥à¤š और बà¥à¤¯à¤¾à¤œ को जोड़ दिया जाठतो लागत लगभग दोगà¥à¤¨à¤¾ हो जाती है। सरकार के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° भà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° और कालाबाजारी के कारण राशन का तीस से चालीस पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ अनाज जनता तक पहà¥à¤‚च ही नहीं पाता है। अगर इस चोरी को भी जोड़ दिया जाठतो लागत आंकड़ा और ऊपर हो जाà¤à¤—ा। 

घोर गरीबी के कारण देश की लगभग à¤à¤• चौथाई जनता बीमारी, बेरोजगारी और अकाल का मामूली-सा à¤à¤Ÿà¤•à¤¾ à¤à¥‡à¤²à¤¨à¥‡ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में भी नहीं है। समसà¥à¤¤ सरकारी दावों के बावजूद करोड़ों गरीबोें को विकास की मà¥à¤–à¥à¤¯à¤§à¤¾à¤°à¤¾ से जोड़ा नहीं जा सका है। 

दूसरी तरफ देश में अरबपतियों की संखà¥à¤¯à¤¾ में लगातार हà¥à¤† इजाफा हमारे नीति निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾à¤“ं की पोल खोलता है। गà¥à¤²à¥‹à¤¬à¤² वैलà¥à¤¥ रिपोरà¥à¤Ÿ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° भारत में अभी छियासठ हजार अरबपति हैं और 2018 आते-आते उनकी संखà¥à¤¯à¤¾ बॠकर 3.02 लाख हो जाà¤à¤—ी। देश में अरबपतियों की संखà¥à¤¯à¤¾ में इजाफे की रफà¥à¤¤à¤¾à¤° छियासठ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ है, जो अमेरिका (41 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤), फà¥à¤°à¤¾à¤‚स (46 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤), जरà¥à¤®à¤¨à¥€ (46 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤), बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¥‡à¤¨ (55 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤) और आसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‡à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ (48 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤) से भी अधिक है। 

डबà¥à¤²à¥à¤¯à¥‚टीओ को लगता है कि भारत के खादà¥à¤¯ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ कानून से दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के अनाज बाजार में असà¥à¤¥à¤¿à¤°à¤¤à¤¾ आà¤à¤—ी और अंतत: खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ की कीमतों में भारी उतार-चà¥à¤¾à¤µ होगा। सवा अरब की आबादी का पेट भरने के लिठभारत को भारी मातà¥à¤°à¤¾ में गेहंू-चावल और अनà¥à¤¯ खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है। फिलहाल खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ के मोरà¥à¤šà¥‡ पर देश आतà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤­à¤° है, लेकिन भविषà¥à¤¯ में सूखे या बाॠसे अगर पैदावार घट गई तो भारत को भारी मातà¥à¤°à¤¾ में गेहूं-चावल आयात करना पड़ेगा। निशà¥à¤šà¤¯ ही तब अंतरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ बाजार में कीमतें आसमान छूने लगेंगी। लेकिन इस लचर तरà¥à¤• को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° नहीं किया जा सकता। किसी भी देश की सरकार की पहली जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ अपनी जनता के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ होती है और जनता के भोजन का इंतजाम करना उसका उतà¥à¤¤à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤¤à¥à¤µ है। इस उतà¥à¤¤à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤¤à¥à¤µ पर सवाल उठाने का अधिकार किसी देश या अंतरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ संगठन को नहीं दिया जा सकता। 

भारत का मानना है कि डबà¥à¤²à¥à¤¯à¥‚टीओ के अधिकतर नियम खà¥à¤²à¥€ अरà¥à¤¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ के पैरोकार विकसित देशों के हित में हैं। अपने बाजार को विसà¥à¤¤à¤¾à¤° देने के लिठवे दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के गरीब मà¥à¤²à¥à¤•à¥‹à¤‚ को बलि का बकरा बनाना चाहते हैं। लेकिन कोई भी विकासशील या गरीब देश अपने हितों की अनदेखी नहीं कर सकता। भारत ने बलि का बकरा बनने से इनकार कर बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ काम किया है। 

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