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कर्तव्य संस्कृति से साक्षात्कार

लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤§à¤° मालवीय

 à¤œà¤¨à¤¸à¤¤à¥à¤¤à¤¾ 4 सितंबर, 2014: पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤µà¤° नरेंदà¥à¤° मोदीजी नमसà¥à¤•à¤¾à¤°, जापान के à¤à¤• विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में नियà¥à¤•à¥à¤¤ हो यहां आà¤

मà¥à¤à¥‡ पचास बरस होते हैं। वहां से अवकाश पाकर मैं पिछले पचीस वरà¥à¤· से कà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥‹ जिले के इस ठेठ पहाड़ी गांव में निवसित हूं। मेरी किशोरावसà¥à¤¥à¤¾ बीती अब से तीन चौथाई शतक, पचहतà¥à¤¤à¤° साल पहले के बनारस में। आपके कà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥‹ आगमन का पता चलते ही à¤à¤¸à¤¾ लगा जैसे अपने घर का पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ मेरे यहां आ रहा है। 

जापान में पदारà¥à¤ªà¤£ किया आपने तोकà¥à¤¯à¥‹ या हिरोशिमा में नहीं बलà¥à¤•à¤¿ कà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥‹ में! कà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥‹ में कोई बड़ा उदà¥à¤¯à¥‹à¤—-धंधा नहीं, बड़े कल-कारखाने नहीं, नदियों के किनारे चार मंजिल या इससे अधिक ऊंची इमारत नहीं, विजà¥à¤žà¤¾à¤ªà¤¨ के बड़े साइन बोरà¥à¤¡ तक नहीं! हैं तो, मंदिर, शिंतो समाधि, मंदिर, और मंदिर! और है यहां रसी-बसी जापान की पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿- जो कà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥‹ की बोली तक में अनूठी मिठास भर कर उसकी अलग पहचान बनाती है! इस गांव में à¤à¤• ही दूकान है, बिसाती की। दूकान में गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤• के घà¥à¤¸à¤¤à¥‡ ही गलà¥à¤²à¥‡ के पीछे खड़ी महिला का सà¥à¤µà¤¾à¤—त वचन ‘ओइदे यासà¥!’ कानों में पड़ते ही मालूम हो जाता है, यह कà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥‹ की कनà¥à¤¯à¤¾ है! कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि पूरे जापान में केवल कà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥‹ में यह बोली बोली जाती है! 

आपके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥‹ का चà¥à¤¨à¤¾à¤µ करते ही पà¥à¤°à¤—ट हो गया, आप किस मन से कà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥‹ पहले आठहैं। वैसे ही गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ और दिलà¥à¤²à¥€ को छोड़, वाराणसी का चà¥à¤¨à¤¾à¤µ करने से भी आपका इरादा सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ हो जाता है! 

अब से ढाई हजार साल पहले à¤à¤• भिकà¥à¤·à¥ बोधिवृकà¥à¤· से पाटलिपà¥à¤¤à¥à¤° नहीं, वाराणसी चल कर गया था, धरà¥à¤® पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤¨ करने के लिà¤! वरà¥à¤£à¤¾ नदी पार करने के लिठउसके पास देने को दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ न था! गेरà¥à¤† वसà¥à¤¤à¥à¤° पहने देख केवट ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मà¥à¤«à¥à¤¤ में पार पहà¥à¤‚चा दिया! उस दिन से आज दिन तक काशी के मलà¥à¤²à¤¾à¤¹ गेरà¥à¤† वसà¥à¤¤à¥à¤°à¤§à¤¾à¤°à¥€ संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से किराया नहीं लेते! 

लगभग इसी समय दूर शलातà¥à¤° (अब पेशावर के पास चार सडà¥à¤¡à¤¾) से चल कर पूरा मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ पार कर, à¤à¤• यà¥à¤µà¤• 3959 पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की पोथी बगल में दबाठहà¥à¤ पाटलिपà¥à¤¤à¥à¤° की शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤•à¤¾à¤° सभा के आगे उसे पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करने पहà¥à¤‚चा था। सारे à¤à¤•à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ ने इस ‘अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€â€™ को सिर à¤à¥à¤•à¤¾ कर सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया। विशà¥à¤µ के इस पà¥à¤°à¤¥à¤® वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ में ढाल कर हमारी भाषा ‘संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤â€™ कहलाई। लेकिन काशी के पंडितों ने इसमें भी संशोधनों का पख लगा दिया- इन संशोधनों को ‘काशिका’ कहते हैं और इनके बिना संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ अधूरा रह जाता है! 

गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ ने सनॠ1631 में ‘रामचरितमानस’ लिखना शà¥à¤°à¥‚ किया था, अयोधà¥à¤¯à¤¾ में! उसे अधूरा लेकर वे चले आठथे, वाराणसी। ‘असी गंग के तीर’ à¤à¤• बनारसी बजरे में रहते हà¥à¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गà¥à¤°à¤‚थ पूरा किया था और उसे बाबा विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किया! 

बादशाह औरंगज़ेब के कानों में यह खबर पहà¥à¤‚चाई गई कि बनारस के बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ अपनी पाठशालाओं में अपनी किताबें पà¥à¤¾à¤¤à¥‡ हैं और उनमें दूर-दूर से विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ और जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¥ आते हैं। ये पाठशालाà¤à¤‚ गंगा किनारे-किनारे फैली थीं। बादशाह के हà¥à¤•à¥à¤® से 2 सितंबर 1669 को ये सारी पाठशालाà¤à¤‚ गिरा दी गरà¥à¤‡à¤‚- इसी à¤à¤ªà¥‡à¤Ÿà¥‡ में विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ मंदिर भी ढहा दिया गया। 

पंडित मदन मोहन मालवीय का सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ था, à¤à¤• विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾à¥¤ इसके लिठआवशà¥à¤¯à¤• भूमि, जितनी भी वे चाहते, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बीकानेर में महाराज गंगा सिंह से मिल सकती थी। वैसे ही मनोवांछित भूमि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मिथिला में दरभंगा नरेश रामेशà¥à¤µà¤° सिंह से भी मिल सकती थी मगर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गांव मांगे महाराज बनारस से- दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ के रूप में!

ऊपर मैंने जितने भी दृषà¥à¤Ÿà¤¾à¤‚त दिà¤, सब में à¤à¤• ही ततà¥à¤¤à¥à¤µ समान है- ‘शबà¥à¤¦â€™! काशी ही वह पवितà¥à¤° सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है, जहां शबà¥à¤¦ हो जाता है शासà¥à¤¤à¥à¤° ही नहीं शसà¥à¤¤à¥à¤° भी! गौतम बà¥à¤¦à¥à¤§ के शबà¥à¤¦ हिमालय की दà¥à¤°à¥à¤²à¤‚घà¥à¤¯ परà¥à¤µà¤¤ शà¥à¤°à¥‡à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को लांघ, अगमà¥à¤¯ गोबी का रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ भी पार कर चीन, कोरिया और जापान तक वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤à¥¤ 

जापान में ज़ेन, ‘धमà¥à¤®â€™, जापानी वरà¥à¤£à¤®à¤¾à¤²à¤¾ तक à¤à¤• भारतीय भारदà¥à¤µà¤¾à¤œ गोतà¥à¤°à¥€à¤¯, केरल निवासी भिकà¥à¤·à¥, बोधिसेन की देन है! जापान में हजार-डेॠहजार साल पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ समाधियों के सिरहाने लगे पंच ततà¥à¤¤à¥à¤µ के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• पांच पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ पर नागरी लिपि के पांच अकà¥à¤·à¤° उकेरे हà¥à¤ मिलते हैं!

‘सà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤Ÿâ€™ कहने में मà¥à¤–सà¥à¤– मिलता हो तो कह लें, पर मà¥à¤à¥‡ तो कà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥‹ ‘सà¥à¤µà¤šà¥à¤›â€™ दिखलाई देता है, और अपनी पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ काशी सà¥à¤µà¤šà¥à¤› ही नहीं, सà¥à¤«à¥‚रà¥à¤¤ भी! और यह गांव भी कà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥‹ जितना ही सà¥à¤µà¤šà¥à¤› है। 

à¤à¤¸à¤¾ इसलिठकि यहां मनà¥à¤·à¥à¤¯ ही नहीं, हर वसà¥à¤¤à¥ ठीक-ठिकाने पर है। घरों की दो पटà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के à¤à¤• सिरे पर जालियों से घिरा हà¥à¤† घूरा है, जिस पर हफà¥à¤¤à¥‡ के नियत दिन, नियत रंग की थैली में नियत किसà¥à¤® का कूड़ा रखा जाता है- नियत समय पर गाड़ी कूड़ा उठा ले जाती है। हर परिवार की पारी बंधी है, à¤à¤• माह घूरे को धोकर साफ रखने की। वैसे ही हर मनà¥à¤·à¥à¤¯ का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ और काम भी नियत है। थोड़ी समठआ जाने के बाद बचà¥à¤šà¤¾ भी जानता है कि घर में भोजन की चौकी पर बैठने का उसका सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ कहां है, वà¥à¤¯à¤‚जन परसे जाने पर उसकी बारी कब आà¤à¤—ी। किसे माफी कराना चाहिà¤, और किसे माफ करना, यह भी पूरà¥à¤µ निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ है। 

डाक टिकट लिफाफे के ऊपरी दाà¤à¤‚ कोने पर लगाना है। दूध के डिबà¥à¤¬à¥‡ पर जहां निशान बना है, डिबà¥à¤¬à¤¾ वहीं से खोला जाता है। ऊंची इमारत से कूदकर आतà¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾ करने वाले भी जूता हो या सैंडिल, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जोड़ा बनाकर छोड़ जाते हैं। बà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ टà¥à¤°à¥‡à¤¨ नियत समय से 10 सेकेंड देरी कर सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर पहà¥à¤‚चे तो उसके डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° पर कà¥à¤¯à¤¾ बीतेगी, कभी पता करें। सड़क किनारे सिगरेट के बà¥à¤à¥‡ हà¥à¤ टोटे नहीं दिखाई देते कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि कोई फेंकता नहीं, इस डर से कि कोई दूसरा वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ उसका चेहरा देखेगा- ‘चेहरा दिख जाना’ नकà¥à¤•à¥‚ बनना है। à¤à¤• जापानी के लिठजीवन पà¥à¤°à¤¾à¤£ है, ‘चेहरा’!

सारा जापान कैसे और कितने समय में यों सà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤Ÿ बना होगा, भला! यह अनà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ हà¥à¤† है, पिछले चार-पांच सौ साल लंबी सखà¥à¤¤ तानाशाही शासन के तले रहते हà¥à¤! सनॠ1868

से पहले आम जापानी का नाम ही होता था, मोदी, अबे या मालवीय जैसे उपनाम से रहित! जापान में ‘मैं’ कहीं है ही नहीं, सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° ‘हम’ है- ‘हमारा देश’, ‘हमारी जापानी भाषा’।इसे थोड़ा विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से इसलिठलिखा कि हम भारतवासियों का ‘जैसी पड़ै सो सहि रहै’ का सà¥à¤µà¤­à¤¾à¤µ इतना बदà¥à¤§à¤®à¥‚ल है कि किसी दूसरे के लिठनिज हित का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करना तो बहà¥à¤¤ दूर, वह अपने ही हित के लिठभी हाथ-पांव नहीं डà¥à¤²à¤¾à¤¨à¤¾ चाहता! जापानवासियों ने जो भी हासिल किया है, वह बहà¥à¤¤ सारे सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का बलिदान कर!

हम भारतीयों का मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• तो भरा है शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ से, उससे हम मनन, चिंतन और तरà¥à¤• करते हैं- à¤à¤•-à¤à¤• शबà¥à¤¦ के दरà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ हैं- हम à¤à¤• ही अकà¥à¤·à¤° में मातà¥à¤°à¤¾à¤à¤‚ लगाकर उसे दस गà¥à¤¨à¤¾ कर लेते हैं। जापानी भाषा में मातà¥à¤°à¤¾ तो दूर, अकà¥à¤·à¤° भी गिनती के हैं! हमारे वरà¥à¤—ीय बारह अकà¥à¤·à¤°à¥‹à¤‚ ‘क’ ‘का’ आदि की जगह केवल पांच। परà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤µà¤¾à¤šà¥€ शबà¥à¤¦ तो सूरà¥à¤¯ और जल के भी नहीं! जापान में ‘वाकà¥à¤ªà¤Ÿà¥â€™ को लबार à¤à¥‚ठा और दगाबाज माना जाता है। इस देश में बहस तो दूर, बोलने तक की जरूरत कम ही पड़ती है! वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ जिस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर नियà¥à¤•à¥à¤¤ है, वहां वह अपना करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ पूरा कर रहा है- इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° सारा जापान à¤à¤• विशाल यंतà¥à¤° के समान है, जिसका हर पà¥à¤°à¥à¤œà¤¾ ठीक से काम कर रहा है। जापानी लोग भाषा के सहारे विचार न कर, अपनी कलाई के आगे की हथेलियों और उंगलियों से ‘करà¥à¤®â€™ करते हैं, भूलें करके भी उससे सीखते हैं। फिर फिर करà¥à¤® करने की पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ में करà¥à¤® और करà¥à¤¤à¤¾ मिलकर à¤à¤• हो जाते हैं! वह चाहे सामà¥à¤°à¤¾à¤ˆ की तलवार बनाने वाला लोहार हो या डेॠहजार वरà¥à¤· अडिग खड़े रहने वाले पंचखंडा मंदिर शिखर का निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ सिदà¥à¤§à¤¹à¤¸à¥à¤¤ बà¥à¤ˆ- लोहार पृथक नहीं रहा, वह तलवार में है। à¤à¤¸à¥‡ ही बà¥à¤ˆ भी। जापानी जन के जीवन में यही है ज़ेन (धà¥à¤¯à¤¾à¤¨)!

जिस देश के केवल à¤à¤• पांचवें हिसà¥à¤¸à¥‡ पर सारी आबादी बसती हो, जहां कोई भी खनिज पदारà¥à¤¥ न हो, जहां आठदिन भूकंप से धरती डोलती हो, जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾à¤®à¥à¤–ी का विसà¥à¤«à¥‹à¤Ÿ, भà¥à¤°à¤­à¥à¤°à¥‡ परà¥à¤µà¤¤ तूफानी बारिश में ढह-ढह पड़ते हों, वहां सदा चौकनà¥à¤¨à¥€ रहने वाली वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ कायम न रखी जाठतो आदमी जिठतो कैसे?

हमारी और जापानियों की बनावट कितनी जà¥à¤¦à¤¾-जà¥à¤¦à¤¾ है! शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में जीने वाले हम, इससे शबà¥à¤¦ जब अपनी पहचान खो देते हैं तो शिव शव हो जाता है। काशी में यही हà¥à¤† है और अनà¥à¤¯à¤¤à¥à¤° भी। इससे कूड़ा नजर के सामने होने पर भी नजर में नहीं आता! हमारे देश का हिंदी भाषी भाग ही मदà¥à¤°à¤¾à¤ˆ, गोवा और केरल की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में इतना अधिक गंदा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ है!

भगवानॠशेष के अवतार पतंजलि ने इसी से ‘शबà¥à¤¦â€™ को इहलोक-परलोक की कामनाà¤à¤‚ पूरी करने वाला कहा है-

à¤à¤•: शबà¥à¤¦: समà¥à¤¯à¤•à¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¤: संपà¥à¤°à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤: सà¥à¤µà¤°à¥à¤—े लोके च कामधà¥à¤—ॠभवति

मैं पिछली बार काशी गया था, तीस वरà¥à¤· से ऊपर होते हैं, सनॠ81 में। मेरी दो बà¥à¤†à¤à¤‚ वहां बà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥€ गई थीं। गà¥à¤¦à¥Œà¤²à¤¿à¤¯à¤¾ मिशà¥à¤°à¥‹à¤‚ के मà¥à¤¹à¤²à¥à¤²à¥‡ में à¤à¤• सजà¥à¤œà¤¨ से मिलने गया। हम बातें कर रहे थे कि बीच में बिजली चली गई। लालटेन थी। लौटने को हà¥à¤† तो लालटेन लेकर वे साथ चले। घूरे का ढेर और गोबर से बचने को लालटेत दिखाते, चौड़ी सड़क तक।

अगले दिन जलà¥à¤¦à¥€ उठकर बनारस का सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ देखने को पैदल गंगा तट तक गया। मणिकरà¥à¤£à¤¿à¤•à¤¾ घाट। जलती हà¥à¤ˆ चिताओं की चिरायंध गंध। गोल चरणपादà¥à¤•à¤¾ को देर तक देखता रहा। नवंबर सनॠ46 में यहां आया था, पितामह की पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ देह इसी चरणपादà¥à¤•à¤¾ पर अगà¥à¤¨à¤¿ संसà¥à¤•à¤¾à¤° पाकर पंचततà¥à¤¤à¥à¤µà¥‹à¤‚ में लीन हà¥à¤ˆ थी! तब तो गंगा में बहते या घाट किनारे लगे सड़े-गले शव दिखलाई न दिठथे। अब सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ हैं, विदेशी सैलानी à¤à¤¸à¥‡ शवों के वीडिओ उतारकर यू-टà¥à¤¯à¥‚ब पर दिखाते हैं! काशी पहले की सी सà¥à¤µà¤šà¥à¤› हो जाठतो हारà¥à¤¦à¤¿à¤• मनोकामना है, à¤à¤• बार फिर किशोर वय वाली अपनी काशी का दरà¥à¤¶à¤¨ करने की!

मेरा अब तक का सारा जीवन हिंदी साहितà¥à¤¯ के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨-अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¨ में बीता है। अब असà¥à¤¸à¥€ वरà¥à¤· की वय में आकर मन किसी दूसरी ओर नहीं जाता। आप हिंदी के समरà¥à¤¥à¤• हैं, यह जानते हà¥à¤ आपसे à¤à¤• अनà¥à¤°à¥‹à¤§ दूर कà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥‹ में रहते हà¥à¤ कर रहा हूं।

à¤à¤• कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸à¥€ नेता ने पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¥€ लगाने के इरादे से नागरी पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€ सभा, काशी, के पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¤¾à¤²à¤¯ की अलमारियां खाली कराने के लिठहजारों हसà¥à¤¤à¤²à¤¿à¤–ित पोथियां और पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ बोरों में भरवा दी थीं! पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¥€ तो हो गई, बोरों में बंद अमूलà¥à¤¯ हसà¥à¤¤à¤²à¥‡à¤– बीस-पचà¥à¤šà¥€à¤¸ वरà¥à¤· बाद अब भी बोरा बंद फरà¥à¤¶ पर पड़े हैं! इससे बड़ी लजà¥à¤œà¤¾à¤œà¤¨à¤• बात और कà¥à¤¯à¤¾ होगी कि जो संसà¥à¤¥à¤¾ हिंदी की उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ के लिठसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हà¥à¤ˆ थी, वह हिंदी के अति दà¥à¤°à¥à¤²à¤­ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ भंडार की कबà¥à¤°à¤—ाह हो गई!

आपसे सागà¥à¤°à¤¹ अनà¥à¤°à¥‹à¤§ करता हूं, दीमकों का आहार बनने से जो भी हसà¥à¤¤à¤²à¥‡à¤– बच रहे हों उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वहां से कैसे भी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न हो, निकलवा कर सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर भिजवा दें। नहीं तो काशी पर वागà¥à¤¦à¥‡à¤µà¥€ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ का शाप लगा रहेगा।

काशी का बांकापन पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। आपने जो बीड़ा उठाया है, वह भी कम टेà¥à¤¾ नहीं। आप चिर यà¥à¤µà¤¾ बने रहें, उदà¥à¤¯à¤® में कभी न थकें- यह मेरी हारà¥à¤¦à¤¿à¤• शà¥à¤­à¤•à¤¾à¤®à¤¨à¤¾ है।  

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