विनोद कà¥à¤®à¤¾à¤°
जनसतà¥à¤¤à¤¾ 26 अगसà¥à¤¤, 2014 : आदिवासी समाज के बारे में इधर हमारी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ बदली है। बावजूद इसके आदिवासी
बहà¥à¤² इलाकों के बाहर आदिवासी समाज के बारे में अब à¤à¥€ à¤à¤• कौतूहल का à¤à¤¾à¤µ रहता है। इस परिपà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ में यह जानना दिलचसà¥à¤ª होगा कि गैर-आदिवासी समाज आज à¤à¥€ आदिवासी समाज को किस रूप में देखता है। राजनेताओं की नजर में आदिवासी समाज की अहमियत कà¥à¤¯à¤¾ है, इसे हम कà¥à¤› उदाहरणों से समठसकते हैं।
बिहार को विशेष राजà¥à¤¯ का दरà¥à¤œà¤¾ इसलिठचाहिठकि उसके हाथ से आदिवासी-बहà¥à¤² इलाका निकल गया, जिसका दोहन कर बिहार की अरà¥à¤¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ चल रही थी और नीतीश कà¥à¤®à¤¾à¤° का सà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ उस आरà¥à¤¥à¤¿à¤• संकट से बिहार को बाहर नहीं निकाल पाया। ओड़िशा को विशेष राजà¥à¤¯ का दरà¥à¤œà¤¾ इसलिठचाहिठताकि वह आदिवासी-बहà¥à¤² इलाकों में चल रही योजनाओं को जारी रख सके। तेलंगाना को अलग राजà¥à¤¯ का दरà¥à¤œà¤¾ इसलिठचाहिठथा, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उसके आदिवासी-बहà¥à¤² इलाके पिछड़ेपन के शिकार थे। अब चंदà¥à¤°à¤¬à¤¾à¤¬à¥‚ नायडू को आंधà¥à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ को विशेष राजà¥à¤¯ का दरà¥à¤œà¤¾ इसलिठचाहिठकि उनके यहां रह गठरायलसीमा और आंधà¥à¤° के तटीय इलाकों के आदिवासियों के बीच वे ओड़िशा के ‘कोरापà¥à¤Ÿ-बलांगीर-कालाहांडी’ की तरà¥à¤œ पर विशेष योजनाà¤à¤‚ चला सकें। à¤à¤¾à¤°à¤–ंड तो बना ही आदिवासियों के उतà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के नाम पर। आदिवासी असà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ और उनकी विशिषà¥à¤Ÿ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की रकà¥à¤·à¤¾ के लिà¤à¥¤ यानी आदिवासी सदियों से कà¥à¤ªà¥‹à¤·à¤¿à¤¤ कोई शिशॠहै, जिसे सà¤à¥€ पौषà¥à¤Ÿà¤¿à¤• आहार खिलाने में लगे हैं और बचà¥à¤šà¤¾ है कि खा-पीकर सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ होता ही नहीं।
हम सबको इस बात की तो जानकारी है कि आदिवासी-बहà¥à¤² इलाकों में चले रहे सैकड़ों à¤à¤¨à¤œà¥€à¤“, जिनके मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ दिलà¥à¤²à¥€, मà¥à¤‚बई, मदà¥à¤°à¤¾à¤¸, हैदराबाद, बंगलà¥à¤°à¥ जैसे महानगरों में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं, आदिवासियों के उतà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के लिठतीन-चार दशक से सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ हैं। वे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जीने का सलीका बताते हैं, शौचालय में ही मल तà¥à¤¯à¤¾à¤— को पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ करते और खाने से पहले और शौच के बाद हाथ धोने की सलाह देते हैं। उनकी à¤à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– सलाह यह रहती है कि बचà¥à¤šà¤¾ सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥ केंदà¥à¤° में ही पैदा करना चाहिठऔर जचà¥à¤šà¤¾-बचà¥à¤šà¤¾ को सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥, विटामिन से à¤à¤°à¤ªà¥‚र खाना खाना चाहिà¤à¥¤ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनकी समठहै कि आदिवासी का à¤à¥‚खा और नंगा रहना अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ का मामला है। और उनके इस सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पिछड़ेपन और à¤à¥‚खे रहने के अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मà¥à¤•à¥à¤¤ करना बहà¥à¤¤ जरूरी है।
इसके अलावा वे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वनों की रकà¥à¤·à¤¾ की à¤à¥€ नसीहत देते हैं, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वन रहेंगे तà¤à¥€ वे à¤à¥€ जीवित रहेंगे। इसके लिठवे दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¤° से पैसे लाते हैं। विमानों से यातà¥à¤°à¤¾ कर राजधानियों के आलीशान होटलों में ठहरते और आदिवासी संघरà¥à¤· और नेतृतà¥à¤µ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में उà¤à¤° रहे यà¥à¤µà¤¾ नेता और नेतà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को फांस कर इस पà¥à¤¨à¥€à¤¤ कारà¥à¤¯ में लगाते हैं। इस कà¥à¤°à¤® में होता यह है कि यà¥à¤µà¤¾ नेतृतà¥à¤µ किसी à¤à¤¨à¤œà¥€à¤“ का वेतनà¤à¥‹à¤—ी समाजसेवी-à¤à¤•à¥à¤Ÿà¤¿à¤µà¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ बन जाता है।
आदिवासियों के बारे में सामानà¥à¤¯ गैर-आदिवासी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ यह है कि वे असà¤à¥à¤¯ और जंगली लोग हैं, जो मानवजाति के विकास के कà¥à¤°à¤® में पीछे रह गà¤à¥¤ अगर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मà¥à¤–à¥à¤¯à¤§à¤¾à¤°à¤¾ में नहीं लाया गया तो उनका विनाश अवशà¥à¤¯à¤‚à¤à¤¾à¤µà¥€ है। à¤à¤¸à¤¾ मानने वालों में आज के दौर के पà¥à¤°à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§ समाजशासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ आनंद कà¥à¤®à¤¾à¤° हैं, तो दूसरी तरफ कई दशक पूरà¥à¤µ के पà¥à¤°à¤–र समाजशासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ और हमारे संविधान निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ à¤à¥€à¤®à¤°à¤¾à¤µ आंबेडकर। आंबेडकर ने जाति उनà¥à¤®à¥‚लन वाले अपने पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ और बहà¥à¤šà¤°à¥à¤šà¤¿à¤¤ आलेख में à¤à¤• नहीं, कई जगह आदिवासियों को ‘जंगली’ और ‘असà¤à¥à¤¯â€™ कहा है। वे ‘सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾, समानता और à¤à¥à¤°à¤¾à¤¤à¥ƒà¤¤à¥à¤µâ€™ के आधार पर हिंदू समाज का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤—ठन करना चाहते थे, लेकिन आदिवासी समाज में ये जीवन मूलà¥à¤¯ पहले से विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हैं, यह नहीं देख पाà¤à¥¤
वे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ असà¤à¥à¤¯ और जंगली मानते हैं और वरà¥à¤£ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से आकà¥à¤°à¤¾à¤‚त हिंदू समाज से इसलिठनाराज हैं कि वह आदिवासियों को सà¤à¥à¤¯ बनाने का काम नहीं कर रहा। वे यह नहीं देख पाते कि आदिवासी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ हिंदू सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾-संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के समांतर चलती है और इनके बीच निरंतर संघरà¥à¤· चलता रहा है।
यह वे नहीं देख पाते कि हिंदू धरà¥à¤® वरà¥à¤£-वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ पर टिका है, जबकि आदिवासी समाज में वरà¥à¤£-वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नहीं। हिंदू धरà¥à¤® सतीपà¥à¤°à¤¥à¤¾ और विधवा विवाह जैसी समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं से गà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ रहा है, जबकि आदिवासी समाज औरत-मरà¥à¤¦ के रिशà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से आदरà¥à¤¶ समाज है। हिंदू धरà¥à¤® में शारीरिक शà¥à¤°à¤® अपमान की वसà¥à¤¤à¥ है और यह सिरà¥à¤« दलित के जिमà¥à¤®à¥‡ है, जबकि आदिवासी समाज में पाहन-पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ à¤à¥€ अपना अनà¥à¤¨ खà¥à¤¦ उपजाता है। बावजूद इसके वे आदिवासियों को असà¤à¥à¤¯ मानते हैं और हिंदà¥à¤“ं से इसलिठरà¥à¤·à¥à¤Ÿ हैं कि वे उन असà¤à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सà¤à¥à¤¯ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं बना रहे?
अब पौराणिक कथाओं और साहितà¥à¤¯-जगत की परिघटनाओं पर à¤à¤• नजर डालें। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ उपमहादà¥à¤µà¥€à¤ª के जà¥à¤žà¤¾à¤¤ इतिहास में दानव, राकà¥à¤·à¤¸, असà¥à¤° जैसे जीव नहीं मिलते, लेकिन à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वांगà¥à¤®à¤¯- रामायण, महाà¤à¤¾à¤°à¤¤, पà¥à¤°à¤¾à¤£ आदि à¤à¤¸à¥‡ जीवों से à¤à¤°à¥‡ पड़े हैं।
ये दानव à¤à¥€à¤®à¤¾à¤•à¤¾à¤°, काले और मायावी शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से à¤à¤°à¥‡ हà¥à¤ à¤à¤¸à¥‡ जीव हैं, जो देवताओं और मृतà¥à¤¯à¥à¤²à¥‹à¤•, यानी इस à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• संसार में रहने वाले à¤à¤¦à¥à¤° लोगों को परेशान करते रहते हैं। इस बारे में मान कर चला जाता है कि ये गाथाà¤à¤‚ सदियों तक चले आरà¥à¤¯-अनारà¥à¤¯ यà¥à¤¦à¥à¤§ से उपजी छायाà¤à¤‚ हैं।
बहà¥à¤§à¤¾ यह à¤à¥€ देखने में आता है कि धारà¥à¤®à¤¿à¤• गà¥à¤°à¤‚थों, पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ में दà¥à¤·à¥à¤Ÿ तो दानवों को बताया जाता है, लेकिन धूरà¥à¤¤à¤¤à¤¾ करते देवता दिखते हैं। मसलन, समà¥à¤¦à¥à¤° मंथन तो देवता और दानवों ने मिल कर किया, लेकिन उससे निकली लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ सहित मूलà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¨ वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ देवताओं ने हड़प लीं। यहां तक कि अमृत à¤à¥€ सारा का सारा देवताओं के हिसà¥à¤¸à¥‡ गया और राहू-केतॠने देवताओं की पंकà¥à¤¤à¤¿ में शामिल होकर अमृत पीना चाहा तो उन दोनों को सिर कटाना पड़ा।
महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ में लाकà¥à¤·à¤¾à¤—ृह से बच निकलने और जंगलों में à¤à¤Ÿà¤•à¤¨à¥‡ के बाद पांडव पà¥à¤¤à¥à¤° à¤à¥€à¤® किसी दानवी से टकराà¤à¥¤
उसके साथ कà¥à¤› दिनों तक रहे, फिर वापस अपनी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में चले आà¤à¥¤ बेटा घटोतà¥à¤•à¤š कैसे पला-बà¥à¤¾, इसकी कà¤à¥€ सà¥à¤§ नहीं ली। हालांकि उस बेटे ने महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ यà¥à¤¦à¥à¤§ में अपनी कà¥à¤°à¥à¤¬à¤¾à¤¨à¥€ देकर पिता के करà¥à¤œ को चà¥à¤•à¤¤à¤¾ किया। à¤à¤•à¤²à¤µà¥à¤¯ की कथा तो इस बात की मिसाल ही बन गई है कि à¤à¤• गà¥à¤°à¥ ने अगड़ी जाति के अपने शिषà¥à¤¯ के à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ के लिठà¤à¤• आदिवासी यà¥à¤µà¤• से उसका अंगूठा गà¥à¤°à¥ दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ में मांग लिया। तो यह थी आदिवासियों के बारे में पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¥¤ आधà¥à¤¨à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤°à¤¤ का दौर आजादी के संघरà¥à¤· से शà¥à¤°à¥‚ होता है, लेकिन उसके इतिहास और साहितà¥à¤¯ में आदिवासी समाज ओà¤à¤² है। हॉफमैन, गियरà¥à¤¸à¤¨, हंटर, जॉन रीड जैसे विदेशी लेखक जब आदिवासी समाज और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के उदातà¥à¤¤ और संघरà¥à¤·à¤ªà¥‚रà¥à¤£ पहलà¥à¤“ं का उदà¥à¤˜à¤¾à¤Ÿà¤¨ कर रहे थे, उस वकà¥à¤¤ हिंदी के पà¥à¤°à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§ लेखकों की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से आदिवासी जीवन ओà¤à¤² रहा। à¤à¤¾à¤‚सी की रानी तो याद रहीं, ओà¤à¤² रहा तिलका मांà¤à¥€, सिदà¥à¤§à¥‹ कानà¥à¤¹à¥‚ं और बिरसा मà¥à¤‚डा के अबà¥à¤† राज का संघरà¥à¤· और बलिदान।
हिंदी का शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ साहितà¥à¤¯ उसी दौर में लिखा जा रहा था। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द, जैनेंदà¥à¤°, यशपाल, à¤à¤—वती चरण वरà¥à¤®à¤¾, वृंदावनलाल वरà¥à¤®à¤¾ आदि उसी दौर के लेखक हैं, लेकिन किसी की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ आदिवासियों के अनूठे संघरà¥à¤· की तरफ नहीं गई। रेणॠने मैला आंचल में उनका जिकà¥à¤° किया है। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द की करà¥à¤®à¤à¥‚मि में à¤à¥€à¤² कà¥à¤› जगहों पर अवतरित होते हैं। वृंदावनलाल वरà¥à¤®à¤¾ के उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ वनà¥à¤¯-जीवन की सà¥à¤‚दर छवियां पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करते हैं, लेकिन उनमें आदिवासी नहीं हैं।
गैर-आदिवासी लेखक यह नहीं देख सके कि जिस वकà¥à¤¤ कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ के नेतृतà¥à¤µ में देश अंगरेजों से सीमित सà¥à¤µà¤¾à¤¯à¤¤à¥à¤¤à¤¤à¤¾ की मांग कर रहा था, उसके दो दशक पहले बिरसा मà¥à¤‚डा अंगरेजों को अपने इलाके से खदेड़ने का संघरà¥à¤· कर रहे थे। जिस वकà¥à¤¤ 1857 के सिपाही विदà¥à¤°à¥‹à¤¹ के रूप में राजतंतà¥à¤° के अवशेष अपनी आखिरी लड़ाई लड़ रहे थे, उसके पहले सिदà¥à¤§à¥‹ कानà¥à¤¹à¥‚ं और तिलका मांà¤à¥€ अंगरेजों को अपने इलाके से खदेड़ते हà¥à¤ जंगल के मà¥à¤¹à¤¾à¤¨à¥‡ तक पहà¥à¤‚चा आठथे।
उसी आंदोलन को कà¥à¤šà¤²à¤¨à¥‡ के लिठतो रामगॠमें सैनà¥à¤¯ छावनी बनी थी, जिसने सिपाही विदà¥à¤°à¥‹à¤¹ में अगà¥à¤°à¤£à¥€ à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤ˆà¥¤ दरअसल, आदिवासियों के बारे में गैर-आदिवासी लेखकों और इतिहासकारों की शà¥à¤°à¥‚ से वही दृषà¥à¤Ÿà¤¿ रही है, जिसकी अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ आंबेडकर ने की है। इसलिठहिंदी साहितà¥à¤¯ के गौरव à¤à¤°à¥‡ दिनों की औपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤• कृतियों, कावà¥à¤¯à¤¸à¤‚गà¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚ में आदिवासी जीवन की अतà¥à¤¯à¤‚त सीमित छवियां मिलती हैं।
बाद के वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° आदिवासी जीवन की तरफ मà¥à¤–ातिब तो हà¥à¤, लेकिन इन लेखकों की तीन शà¥à¤°à¥‡à¤£à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ रही हैं। à¤à¤• तो वे, जो आदिवासी समाज के मांसल सौंदरà¥à¤¯ और à¤à¥‹à¤²à¥‡à¤ªà¤¨ पर मà¥à¤—à¥à¤§ रहे हैं, दूसरे वे जो उनकी विपनà¥à¤¨à¤¤à¤¾ से आकà¥à¤°à¤¾à¤‚त रहे हैं और तीसरे वे जो आज à¤à¥€ आदिवासी समाज को असà¤à¥à¤¯ और जंगली मानते हैं। तीनों तरह के लेखकों में समानता यह है कि वे सà¤à¥€ आदिवासियों को विकास का अवरोधक मानते हैं। यहां उनकी आलोचना करना मकसद नहीं है। हम तो आदिवासी समाज के बारे में गैर-आदिवासी समाज की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ की बातें कर रहे हैं।
हम इस बात पर अफसोस कर रहे हैं कि अà¤à¥€ तक à¤à¤¸à¥€ à¤à¤• à¤à¥€ औपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤• कृति सामने नहीं आई है, जो संपूरà¥à¤£à¤¤à¤¾ से आदिवासी समाज के सौंदरà¥à¤¯, उनकी जिजीविषा और उनके शà¥à¤°à¤® और आनंद वाली संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का चितà¥à¤°à¤£ करती हो। वैसा उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जो कà¥à¤°à¤®à¥€-महतो समाज पर केंदà¥à¤°à¤¿à¤¤ बांगà¥à¤²à¤¾ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤•à¤¾à¤° ताराशंकर के ‘हंसली बांक की उपकथा’ जैसा हो। इसलिठआदिवासी साहितà¥à¤¯ की संगोषà¥à¤ ियों में यह बात उठने लगी है कि आदिवासी समाज के बारे में आदिवासी ही लिख और समठसकता है। हम इस विवाद में नहीं जाà¤à¤‚गे। लेकिन गैर-आदिवासी लेखकों को पहले आदिवासी समाज के बारे में अपनी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ बदलनी होगी।
मूल सवाल है कि हम सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ की परिà¤à¤¾à¤·à¤¾ किस तरह करते हैं? नागर जीवन, सà¥à¤°à¥à¤šà¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥‹à¤œà¤¨ और कपड़े से? बहà¥à¤¸à¤‚खà¥à¤¯à¤• आदिवासियों के पास यह उपलबà¥à¤§ नहीं। लेकिन उनके पास उचà¥à¤šà¤¤à¤° जीवन मूलà¥à¤¯ हैं, लालच से मà¥à¤•à¥à¤¤ जीवन की संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ है। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥€ अचà¥à¤›à¤¾ à¤à¥‹à¤œà¤¨, रिहायशी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ और आधà¥à¤¨à¤¿à¤• जीवन की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ मिलनी चाहिà¤à¥¤ लेकिन ईमानदारी की बात है कि हमारी अरà¥à¤¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ अà¤à¥€ उस मà¥à¤•à¤¾à¤® पर नहीं पहà¥à¤‚ची है कि सबको अचà¥à¤›à¤¾ à¤à¥‹à¤œà¤¨, शानदार à¤à¤µà¤¨, फà¥à¤°à¤¿à¤œ, टीवी, और नठमॉडल की कार दे सके। यह तो कà¥à¤› लोगों के लिठही संà¤à¤µ है और वह à¤à¥€ तब जब बहà¥à¤¸à¤‚खà¥à¤¯à¤• आबादी मà¥à¤«à¤²à¤¿à¤¸à¥€ में जिà¤à¥¤ पानी à¤à¤¾à¤¤ खाठऔर दो जोड़ा कपड़े में रहे।
अगर हम वासà¥à¤¤à¤µ में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥€ अचà¥à¤›à¤¾ कपड़ा पहनाना चाहते हैं, अचà¥à¤›à¤¾ à¤à¥‹à¤œà¤¨ उपलबà¥à¤§ कराना चाहते हैं और जीवन की आधà¥à¤¨à¤¿à¤• वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ उपलबà¥à¤§ कराना चाहते हैं, तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¤à¥à¤¯ बनाने के मà¥à¤—ालते को छोड़ हमें अपने बदन के कपड़े कम करने होंगे, थोड़ा कम खाना होगा और विलासितापूरà¥à¤£ जीवन का परितà¥à¤¯à¤¾à¤— करना होगा। सबसे बड़ी बात कि महाजनी शोषण पर टिकी इस वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की जगह लालच से मà¥à¤•à¥à¤¤ आतà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤°à¥à¤à¤° और संतोष वाली आदिवासी संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के उदातà¥à¤¤ जीवन मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को अपनाना होगा।
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