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आत्म-मोह का धुंधलका

कनक तिवारी

 à¤œà¤¨à¤¸à¤¤à¥à¤¤à¤¾ 25 अगसà¥à¤¤, 2014 : कà¥à¤¯à¤¾  à¤¹à¥ˆ इस आतà¥à¤®à¤•à¤¥à¤¾ में? पूरà¥à¤µ नौकरशाह, मंतà¥à¤°à¥€, राजनयिक नटवर सिंह की लगभग चार सौ पृषà¥à¤ à¥‹à¤‚ की आतà¥à¤®à¤•à¤¥à¤¾

‘वन लाइफ इज नॉट इनफ’ अनावशà¥à¤¯à¤• रूप से विवादासà¥à¤ªà¤¦ और महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ बना दी गई। यह आतà¥à¤®à¤•à¤¥à¤¾ होने के बदले यादधà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥€ डायरी के पृषà¥à¤ à¥‹à¤‚ का संगà¥à¤°à¤¹ है। आतà¥à¤®à¤•à¤¥à¤¾ आतà¥à¤®à¤¾à¤µà¤²à¥‹à¤•à¤¨ का दूसरा नाम होता है। लेखक ने अपने विकास, उपलबà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, विफलताओं और जय-पराजय को अपने आंतरिक संदरà¥à¤­ में देखने की रचनातà¥à¤®à¤• कोशिश नहीं की है। सूचनाओं से अटी पड़ी किताब में देश-विदेश की कई हसà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¸à¤‚गों पर टिपà¥à¤ªà¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का कोलाज है। किसी घटना का बयान करते नटवर सिंह सहसा पटाकà¥à¤·à¥‡à¤ª कर देते हैं। समठनहीं आता कि उकà¥à¤¤ घटना का कà¥à¤¯à¤¾ भावारà¥à¤¥ या निहितारà¥à¤¥ लेखक के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° है। 

पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• का कालखंड नटवर सिंह ने अपने जनà¥à¤® 1931 से लेकर 2014 तक विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ तो किया है, बीसवीं सदी के महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ दौर की गतिविधियों, संलिषà¥à¤Ÿà¤¤à¤¾à¤“ं, विरोधाभासों और विचितà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤“ं का सार-संकà¥à¤·à¥‡à¤ª भी देने की कोशिश नहीं है। समृदà¥à¤§ सामंतवादी कà¥à¤² में जनमे, साधारण लोगों की जिंदगी से बेखबर तथा भारत और इंगà¥à¤²à¥ˆà¤‚ड के बेहतर शिकà¥à¤·à¤¾ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में पॠकर भारतीय विदेश सेवा में चयनित नटवर सिंह का बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ भी अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤ धनाढà¥à¤¯ पटियाला के महाराजा की बेटी से हà¥à¤†à¥¤ उनका दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¥‹à¤£ इन वजहों से आसमान से धरती की ओर देखने का रहा है। पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• में साधारण वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, जन समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं, पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¤¿à¤• अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥‹à¤‚, नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤• अनà¥à¤ªà¤²à¤¬à¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, जनोनà¥à¤®à¥à¤– राजनीतिक आगà¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚, लोक आंदोलनों और वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• नागरिक समाज की उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ नहीं है। 

नटवर सिंह कहते हैं कि वे अलà¥à¤ªà¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨-निराशावादी और दीरà¥à¤˜à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨-आशावादी हैं। उसका सामाजिक अरà¥à¤¥ यह भी है कि मौजूदा भारतीय समय अनà¥à¤•à¥‚ल न हो, तब भी देश का भविषà¥à¤¯ उजà¥à¤œà¥à¤µà¤² होगा। वैसे यह जà¥à¤®à¤²à¤¾ बहà¥à¤¤ घिसा-पिटा है। पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• की भूमिका कहती है कि नैतिक पतन, संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं का कà¥à¤·à¤°à¤£, कारà¥à¤¯-अपसंसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, गहराता उपभोकà¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¾à¤¦ और थोक में भà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° जैसे कारण पà¥à¤°à¤—ति का रासà¥à¤¤à¤¾ रोकते हैं। सारà¥à¤µà¤œà¤¨à¤¿à¤• महतà¥à¤¤à¥à¤µ के इन मà¥à¤¦à¥à¥à¤¦à¥‹à¤‚ को नटवर सिंह गंभीर और वैचारिक आतà¥à¤®à¤•à¤¥à¤¾ के शिलà¥à¤ª में भी दे सकते थे। कà¥à¤¯à¤¾ ‘सतà¥à¤¯ के साथ मेरे पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤—’ के मसीहा या अपने भाषणों और लेखों में अपना जीवन कहते विवेकानंद और खà¥à¤¦ नेहरू की कृति ने मानवीय चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का तातà¥à¤¤à¥à¤µà¤¿à¤• विशà¥à¤²à¥‡à¤·à¤£ ‘बहà¥à¤œà¤¨ हिताय’ अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ में नहीं किया है? 

पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• कनफà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¾ करती है कि लेखक विशà¥à¤µ के बड़े राजनयिकों, संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤•à¤®à¤¿à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤‚, लेखकों और पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤•à¥‹à¤‚ की आतà¥à¤®à¥€à¤¯ सोहबत में रहा है। दसà¥à¤¤à¤¾à¤µà¥‡à¤œà¥€ साकà¥à¤·à¥à¤¯ के रूप में उसने पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• को विशà¥à¤µà¤¸à¤¨à¥€à¤¯ और विकà¥à¤°à¤¯-योगà¥à¤¯ बनाने के लिठकई रंगीन चितà¥à¤° भी शामिल किठहैं। पाठकों को केवल चितà¥à¤° देख कर बूà¤à¤¨à¤¾ चाहिठकि नटवर सिंह इंगà¥à¤²à¥ˆà¤‚ड की महारानी à¤à¤²à¤¿à¤œà¤¾à¤¬à¥‡à¤¥, मारà¥à¤—रेट थैचर, रोनालà¥à¤¡ रीगन, जॉरà¥à¤œ बà¥à¤¶, डेंग जिआओ पिंग, फिदेल कासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹, यासिर अराफात, नेलà¥à¤¸à¤¨ मंडेला, गोरà¥à¤¬à¤¾à¤šà¥à¤¯à¥‡à¤µ, जेआर जयवरà¥à¤§à¤¨à¥‡, जियाउल हक और जà¥à¤²à¥à¤«à¤¿à¤•à¤¾à¤° अली भà¥à¤Ÿà¥à¥à¤Ÿà¥‹ सहित मशहूर लेखकों गà¥à¤°à¥ˆà¤¬à¤¿à¤¯à¤² गारà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¾ मारकà¥à¤µà¥‡à¤œ, अहमद अली, मà¥à¤²à¥à¤•à¤°à¤¾à¤œ आनंद, आरके नारायण आदि से लगभग अंतरंग रूप से परिचित रहे हैं।       

यह किताब कोई घनीभूत विचार शà¥à¤°à¥ƒà¤‚खला नहीं बà¥à¤¨à¤¤à¥€à¥¤ आधे से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पृषà¥à¤ à¥‹à¤‚ में तो नेहरू-गांधी परिवार की शासकीय और निजी निकटता का वितान है। जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी नटवर के उपचेतन के मà¥à¤–à¥à¤¯ कबà¥à¤œà¥‡à¤¦à¤¾à¤° हैं। खà¥à¤¦ को भारत-चीन मैतà¥à¤°à¥€ के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– शिलà¥à¤ªà¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ में बताते नटवर सिंह ने माओ तà¥à¤¸à¥‡ तà¥à¤‚ग और चाउ à¤à¤¨ लाई को भी विसà¥à¤¤à¤¾à¤° में रेखांकित करने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया है। वे भूमिका में à¤à¤• वरिषà¥à¤  और अनà¥à¤­à¤µà¥€ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤œà¥€à¤µà¥€ होने का आशà¥à¤µà¤¾à¤¸à¤¨ देते बार-बार फिसल जाते हैं। तब उनकी सà¥à¤µà¤¿à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¤ गà¥à¥€ हà¥à¤ˆ सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ जीवन की गंभीरता का गायन करने के बदले चटखारों में लहलहाने लगती हैं।

इसके बावजूद आतà¥à¤®à¤•à¤¥à¤¾ को नटवर सिंह ने दिलचसà¥à¤ª ढंग से कहने का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ तो किया है। उसमें किसà¥à¤¸à¤¾à¤—ोई का तराशा हà¥à¤† फन है। सामंती पालन-पोषण, बौदà¥à¤§à¤¿à¤• विकास और सांसारिक उतà¥à¤•à¤°à¥à¤· का संयà¥à¤•à¥à¤¤ अकà¥à¤¸ आतà¥à¤®à¤•à¤¥à¤¾ में आना तो चाहता है, लेकिन कथा-दà¥à¤µà¤¾à¤° पर अनिशà¥à¤šà¤¯ की मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में बैठे आशंकित नटवर सिंह उन सबको पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ देकर भी बार-बार बेदखल कर देते हैं।

इस पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ में ही नटवर सिंह ने महान गà¥à¤°à¥€à¤• विचारक पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¥‹ का यह कथन उदà¥à¤§à¥ƒà¤¤ किया है कि अपरीकà¥à¤·à¤¿à¤¤ जीवन जीने के लायक ही नहीं है। इस आपà¥à¤¤ कथन का पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• के कथाविनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ से कोई रिशà¥à¤¤à¤¾ उदà¥à¤˜à¤¾à¤Ÿà¤¿à¤¤ नहीं होता। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने खà¥à¤¦ को जांचने-परखने या आतà¥à¤®à¤ªà¤°à¥€à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ करने की जरूरत नहीं समà¤à¥€à¥¤ जवाहरलाल नेहरू की तारीफ में कà¥à¤› विशेषणों के कसीदे काà¥à¤¨à¥‡ के बाद नटवर सिंह नेहरू की तीन बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ गलतियों का खà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¾ मनोयोग और विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से करते हैं। खà¥à¤¦ को किसी जमाने में नेहरूवादी घोषित करने वाले नटवर सिंह ने नेहरू के योगदान को लेकर कोई वैचारिक तरà¥à¤•à¤®à¤¹à¤² अजà¥à¤žà¤¾à¤¤ कारणों से खड़ा नहीं किया। 

नटवर सिंह जैसे वरिषà¥à¤  कूटनीतिजà¥à¤ž से कà¥à¤› महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾à¤“ं की उमà¥à¤®à¥€à¤¦ भी उतà¥à¤¸à¥à¤• पाठक करना चाहते होंगे, लेकिन वैसा कोई खà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¾ या तफसील नहीं है। मसलन ईरान, पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨, अमेरिका, इंगà¥à¤²à¥ˆà¤‚ड, चीन, रूस आदि देशों से भविषà¥à¤¯ की कूटनीति को पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ अनà¥à¤­à¤µà¥‹à¤‚ के आधार पर किस तरह संयोजित किया जाठइसका कोई संकेत नहीं है। नटवर सतà¥à¤¯ और साहस के सà¥à¤µà¤˜à¥‹à¤·à¤¿à¤¤ पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ हैं। पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• में तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का विवरण किसी बड़े नैसरà¥à¤—िक सतà¥à¤¯ की ओर ले जाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ लेकिन नहीं करता। उनके खà¥à¤¦ के विवरण में कई बार साहसिक हो जाने की संभावनाà¤à¤‚ दरà¥à¤œ हैं, पर हकीकत में उनसे बच निकलने के दृषà¥à¤Ÿà¤¾à¤‚त हैं। 

किताब का सबसे पठनीय अंश उसकी भूमिका है। पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• पतà¥à¤¨à¥€ हेम को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ है। उनके बिना

वे अपना असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ अधूरा समà¤à¤¤à¥‡ हैं। पतà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को तो लगभग आधे से अधिक लेखकों ने अपने-अपने गà¥à¤°à¤‚थ समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किठहैं। दिलचसà¥à¤ª है कि पतà¥à¤¨à¥€ का बहà¥à¤¤ संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ उलà¥à¤²à¥‡à¤– ही नटवर सिंह ने किया है। वे निजी कà¥à¤²à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ को सामाजिक कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¶à¥€à¤²à¤¤à¤¾ में अंतरित करने की गà¥à¤¹à¤¾à¤° लगाते हैं। यह उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने जीवन में तो नहीं किया है। वे चांदी का चमà¥à¤®à¤š मà¥à¤‚ह में लेकर पैदा हà¥à¤à¥¤ जीवन की तमाम उपलबà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ं और शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ à¤¿ वरà¥à¤— के अविभाजà¥à¤¯ अंग बने रह कर वे अब तक रजत चटà¥à¤ˆ चूसते ही रहे हैं। उनकी किताब में गरीब का पसीना, à¤à¥‹à¤ªà¥œà¤ªà¤Ÿà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के आसपास बहती मोरियों की बदबू, सांपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• दंगों में चीखती आवाजें़, सरहद पर सिर कटाते जवानों का बहता लहू, निसà¥à¤¸à¤‚ग या बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ का दà¥à¤– बयान करती औरतें, होटलों में जूठी पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¥‡à¤‚ उठाते नाबालिग बचà¥à¤šà¥‡, आतà¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾ करते किसान, असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² के दालान में मौत से लड़ते सहमे मरीज, राशन दà¥à¤•à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की कतारें, रोजगार-कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ के आगे बेरोजगारों के जतà¥à¤¥à¥‡- इन सबका कहीं अता-पता नहीं है। à¤²à¤¿à¤–ने में संकोच हो रहा है, लेकिन नटवर सिंह की किताब में कूटनीतिक सà¥à¤¤à¤° की बैठकें, तमाम देशों की यातà¥à¤°à¤¾à¤à¤‚, वातानà¥à¤•à¥‚लित कमरों के वारà¥à¤¤à¤¾à¤²à¤¾à¤ª, हवाई जहाज या मोटरगाड़ियों की दौड़ती धमक, तरह-तरह के यंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ से चालित दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ की गहमागहमी, कभी-कभी शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤•à¤°à¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, लेखकों से सà¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯ मà¥à¤²à¤¾à¤•à¤¾à¤¤à¥‡à¤‚ वगैरह ठीकठाक वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ हैं। वे भारतीय राजनयिकों में सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पà¥à¥‡-लिखे लोगों में शà¥à¤®à¤¾à¤° हैं। उनका लेखक-मितà¥à¤° परिवार बहà¥à¤¤ बड़ा है। वह शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ à¤¤à¤® पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का भी है। नटवर सिंह गà¥à¤£à¤—à¥à¤°à¤¾à¤¹à¤• और पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•-संगà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤• भी हैं। वे विविध कलाओं के बारे में जानकारी रखने वाले पà¥à¤°à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ हैं। 

बौदà¥à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤—लà¥à¤­à¤¤à¤¾ के चलते नटवर सिंह रूसो के महान कथन ‘पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• मनà¥à¤·à¥à¤¯ आजाद ही पैदा होता है’ को मौजूदा हालात में संशोधित कर देना चाहते हैं। रूसो का कालजयी वाकà¥à¤¯ संशोधन-योगà¥à¤¯ नहीं है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वह नटवर सिंह के संभावित सà¥à¤à¤¾à¤µ को पहले से अंतरà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¤¿à¤¤ किठहà¥à¤ है। थॉमस कारà¥à¤²à¤¾à¤‡à¤² ने दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के इतिहास को केवल महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के जीवन का समानारà¥à¤¥à¥€ बताया था। नटवर उसे भी सà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¨à¤¾ चाहते हैं। कारà¥à¤²à¤¾à¤‡à¤² का कथन अलगनी पर फैलाया हà¥à¤† धà¥à¤²à¤¾ कपड़ा नहीं है जिस पर नटवर की इसà¥à¤¤à¤°à¥€ चल सके। फिर भी लेखक नटवर सिंह के तरà¥à¤• सà¥à¤µà¤¾à¤¯à¤¤à¥à¤¤ हैं। पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• लेखक के होते हैं। वे जिरह मांगते हैं। उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। 

इतिहास नटवर सिंह का पà¥à¤°à¤¿à¤¯ विषय है। वहां वे वामपंथी डीडी कोसांबी, इरफान हबीब और रोमिला थापर की तà¥à¤°à¤¿à¤®à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ को सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करते हैं। बà¥à¤¦à¥à¤§, अशोक, गà¥à¤°à¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤•, अबà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤® लिंकन, महातà¥à¤®à¤¾ गांधी, सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विवेकानंद, नेलà¥à¤¸à¤¨ मंडेला उनके पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤• हैं, मैकियावली और मारà¥à¤•à¥à¤¸ नहीं। नटवर ने पूरी जीवन कथा में खà¥à¤¦ को अमेरिका-विरोधी पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¤ किया है। यहां तक कि राजीव गांधी की मंतà¥à¤°à¤¿à¤ªà¤°à¤¿à¤·à¤¦ में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शामिल किठजाने को लेकर अमेरिका ने अड़ंगे लगाठथे। कहते हैं कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कई बार अपने दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ को धता बताई, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ ने भी उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ नीचा दिखाया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने समय-समय पर अरà¥à¤œà¥à¤¨ सिंह और जयराम रमेश को सोनिया के कोप से बचाने का भी दावा किया है। यह हैरत की बात है कि लालबहादà¥à¤° शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ से नटवर सिंह बेरà¥à¤– रहे। 

à¤à¤• जगह नटवर सिंह ने लिखा है कि सोनिया और पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤‚का उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ संकेत देने आई थीं कि 2004 में सोनिया गांधी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ बनने से इनकार करने की पृषà¥à¤ à¤­à¥‚मि का खà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¾ न किया जाà¤à¥¤ नटवर सिंह ने लेखकीय सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ से समà¤à¥Œà¤¤à¤¾ नहीं किया। पर उनका तथाकथित खà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¾ ‘खोदा पहाड़ निकली चà¥à¤¹à¤¿à¤¯à¤¾â€™ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ कà¥à¤› नहीं है। à¤à¤• पà¥à¤¤à¥à¤° ने अपनी मां को भावनातà¥à¤®à¤• आधार पर पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ नहीं बनने दिया तो कà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤¤à¥à¤° पà¥à¤°à¥‡à¤® भी मां की अंतरातà¥à¤®à¤¾ का हिसà¥à¤¸à¤¾ नहीं हो सकता? यह शोशा छोड़ कर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने भाजपा-सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ के निकट जाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया है à¤à¤¸à¤¾ आरोप लग सकता है। उनकी बहà¥à¤šà¤°à¥à¤šà¤¿à¤¤ और सà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¤ आतà¥à¤®à¤•à¤¥à¤¾ खतà¥à¤® करते हà¥à¤ दिमाग के सीडी पà¥à¤²à¥‡à¤¯à¤° पर लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ फिलà¥à¤®à¥€ गीत बजने लगता है ‘अजीब दासà¥à¤¤à¤¾à¤‚ है ये, कहां शà¥à¤°à¥‚ कहां खतम, ये मंजिलें हैं कौन सी, न वो समठसके न हम।’ यहां ‘वो’ से अरà¥à¤¥ पाठकों से है। 

नटवर सिंह की किताब में आतà¥à¤®à¤ªà¥à¤°à¤¶à¤‚सा की हिचकियां लेती भà¥à¤°à¤­à¥à¤°à¥€ है। आलोचनाà¤à¤‚ निंदा की परिधि तक निसà¥à¤¸à¤‚कोच चली जाती हैं। गणित के सूतà¥à¤°à¥‹à¤‚ की तरह कई निषà¥à¤•à¤°à¥à¤· निकाले गठहैं। वहां साधन के गलत हो जाने के कारण साधà¥à¤¯ तक पहà¥à¤‚चने का भà¥à¤°à¤® भी है। अंतरà¥à¤µà¤¿à¤°à¥‹à¤§, असंगतियां, विरोधाभास और असà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿà¤¤à¤¾à¤à¤‚ भी महान साहितà¥à¤¯à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ का लकà¥à¤·à¤£ हो सकती हैं, अगर उनमें मानवीय उदातà¥à¤¤à¤¤à¤¾ की छौंक लगा दी जाà¤à¥¤ नटवर सिंह कई बार à¤à¤¸à¤¾ जोखिम उठाते तो हैं लेकिन à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• लेखक होने के बदले भावनाओं के उदà¥à¤°à¥‡à¤• में बह कर उसे ही आतà¥à¤®à¤¾ का बयान समठलेते हैं।

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