- हरि बंश झा।
विश्व में कोई भी अन्य देश एक दूसरे पर इस तरह से आश्रित नहीं है जैसे भारत और नेपाल, फिर चाहे वो सामाजिक, पारंपरिक, आर्थिक रिश्ते हों या फिर राजनीतिक रूप से ही क्यों नहीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि दोनों देशों के बीच के संबंध, सरकार से सरकार के बीच के संबंध के विपरीत बुनियादी रूप से लोगों से लोगों तक के संबंधों पर आधारित है।
केवल इसी वजह से, अगर कभी किसी वजह से दोनों सरकारों के बीच कोई मतभेद होते भी हैं तो वो शीघ्र ही सुलझ भी जाते है। इसीलिए ऐसी स्थिति में, संतुष्ट होने की कोई भी वजह नहीं हैं, जब विभिन्न विध्वंसकारी गुट लगातार ही ऐसे आत्मिक संबंधों को बिगाड़ने के लिए लगातार प्रयासरत हैं।
जैसा की सर्वविदित है कि 2015 के दौरान, जब नेपाल अपना नये संविधान के निर्माण में लगा था, तब नेपाल और भारत के बीच के रिश्ते अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा था, और आगे 2020 में, नेपाल के उत्तर-पश्चिमी प्रांत में सीमा मुद्दे पर उत्पन्न विवाद के बाद, दोनों देशों के बीच के रिश्ते काफी बदतर हुए थे। दोनों देशों में, कोविड-19 संक्रमण के फैलाव के बाद, मार्च 2020 में जब खुले बॉर्डर को लगभग डेढ़ सालों तक बंद कर दिया गया था तब भी दोनों देशों के रिश्तों में पुनःतल्खी आ गई थी।
लेकिन कोविड-19 काल के उपरांत, ख़ासकर जुलाई 2021 में, नेपाल में शेर बहादुर देउबा के प्रधानमंत्री बनने के पश्चात, स्थिति ज़मीनी तौर पर अब धीरे-धीरे पहले से सामान्य होती जा रही है। दोनों ओर की सीमाएं अब खुल चुकी है और वाहनों के अलावा, लोगों की सीमा पार की रोज़मर्रा की गतिविधियां, जो बाधित थीं अब खुल चुकी है। यहां तक की एक दूसरे के बॉर्डर के पार, शादी-ब्याह आदि भी अब सामान्यतः चलन में आ चुकी है। एक देश के कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट को दूसरे देश के संबंधित अधिकारी द्वारा चिन्हित किए जाने की वजह ने भी लोगों और वाहनों के क्रॉस-बॉर्डर गतिविधि को सुगम बना दिया है।
नेपाल और भारत के रिश्तों में दूसरी ऐतिहासिक उपलब्धि ये है कि भारत सरकार ने, रेलवे की जनकपुर-जयनगर सेक्टर को नेपाल सरकार के सुपुर्द कर दिया है। भारत सरकार ने 2014 में जयनगर (भारत) और जनकपुरी/कुरथबरडीबस (नेपाल) के बीच के 69 किलोमीटर लंबी परियोजना के निर्माण की ज़िम्मेदारी ख़ुद ले ली थी, जिसकी 34 किलोमीटर जयनगर-जनकपुर/कुरथा सेक्शन का निर्माण कार्य पहले ही पूरा करके नेपाल को सुपुर्द भी कर दिया है। बाकी बचे रेलवे लाइन के हिस्सों का कार्य प्रगति पर है। इस समूचे प्रोजेक्ट की लागत मूल्य, भारतीय मुद्रा में, लगभग 8.8 बिलियन है,और इसका सारा भार भारत सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है।
जनकपुर – जयनगर रेलवे नेपाल में एकमात्र पैसेंजर रेलवे है, जिसने 1937 से जनवरी 2014 तक लोगों को अपनी सेवा प्रदान की है. ये नैरो गेज की रेलवे लाइन 2014 में बंद कर दी गई थी जिसके बाद भारत सरकार ने विभिन्न जगहों पर 8 रेलवे स्टेशन बनाने के अलावा, इसे भी ब्रॉड-गेज रेलवे लाइन में बदल दिया।
भारत और नेपाल के बीच व्यापार
गौरतलब है कि, कोविड-19 की महामारी के बाद, नेपाल और भारत के बीच वाणिज्यिक, व्यापारिक, ट्रेड और आर्थिक मुद्दों में काफी सुधार आया है। भारत सरकार द्वारा दर्शाये गए रुख़ में नरमी के परिप्रेक्ष्य में, नेपाल ने संभवतः पहली बार भारत को अपने यहां पैदा होने वाली अतिरिक्त बिजली भारत को बेचने पर राज़ी हुआ है। इससे पहले, नेपाल भारत से बिजली आयातित करता था।
अब, चूंकि कुछ और हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट शीघ्र ही उत्पादन शुरू करने वाले हैं, इसलिए बाद में, नेपाल द्वारा भारत को हाइड्रोपावर निर्यात करने की काफी संभावना हैं। भारत को निर्यात किए जाने वाले हाइड्रो-पॉवर ने, भारत से राजस्व कमाने की संभावना को और मज़बूती प्रदान की है, जो किसी हद तक भारत के साथ के व्यापार को बेहतर संतुलन प्रदान कर सकेगा। अब तक, दोनों देशों के बीच के व्यापार का संतुलन, भारत के ही हित में रहा है।
इसके अलावा, भारत में नेपाल से आयातित किये जाने सामानों में पर्याप्त बेहतर उछाल दर्ज किया गया है। 2018-19 के दौरान, नेपाल से आयातित वस्तुओं में भारत का योगदान 64.6 प्रतिशत था। 2021-22 के पहले 4 महीनों के दौरान, भारत में नेपाल से आयातित वस्तुओं का योगदान बढ़कर 81.5 प्रतिशत हो गया। उसी समय, वर्तमान फिस्कल ईयर के पहले चार महीनों में, भारत से नेपाल निर्यात किए जाने वाले वस्तु, घटकर 59 प्रतिशत हो गई। जो की 2018–19, 2019–20 and 2020–21 के दरम्यान लगभग 66 प्रतिशत थी. नेपाल अगर चाहता तो भारत को और काफी मात्रा में, वस्तु आयात कर सकता था, परंतु- बड़ी मात्रा में, वस्तुओं के उत्पादन में उनकी असमर्थता की वजह से यह आंकड़ा सिमटकर 81,5 प्रतिशत रह गया।
नेपाल ने निर्यात व्यापार के मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन किया क्योंकि भारत ने उस वक्त भी नेपाल से भारत को निर्यात की जाने वाली वस्तुओं की अनुमति दी जब कई अन्य देशों ने बढ़ते कोविड-19 संक्रमण के डर से वहां से की जाने वाली सभी प्रकार की आयात-निर्यात सुविधा पर रोक लगा दी थी। नेपाल द्वारा निर्यात किए जाने वाले ज्य़ादातर वस्तुओं का उत्पादन माध्यम और छोटे उद्यमियों द्वारा की जाती है।
उल्लेखनीय है कि, ज्य़ादातर नेपाली नागरिक जो कि कोविड-19 काल के दौरान, जब नेपाल-भारत बॉर्डर को बंद कर दिया जाने की वजह से वापस भारत आ पाने में असमर्थ थे, उनको बाद में, भारत दाखिल होने की अनुमति दे दी गई। अनुमान किया जाता है कि ख़ासकर देश के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लगभग 60 से 80 लाख नेपाली नागरिकों को भारत में रोज़गार के अवसर प्राप्त होते है।
नेपाल को इन लोगों से भारी आमदनी की प्राप्ति होती है। पर्याप्त डेटा नहीं होने की वजह से, यह पता लगा पाना असंभव है कि नेपाल भारत से कितनी आमद कमाता है। परंतु यह सर्वविदित है कि भारत से प्राप्त होने वाली आमद की वजह से देश को गरीबी उन्मूलन में काफी सहायता प्राप्त हुई है। सात सालों के भीतर, नेपाल अपने यहां की व्याप्त गरीबी को आधा कर चुका था।
नेपाल के विकास में, भारत की भूमिका
नेपाल में किए जाने वाले विकास कार्य में भारत की भूमिका सदैव ही उल्लेखनीय रही है। जब से नेपाल को 1951 के दौरान के राणा शासन की गुलामी से मुक्त कराया गया था, भारत तबसे लेकर अब तक नेपाल के सम्पूर्ण विकास में उदारतापूर्वक अपना सहयोग देता आ रहा है। सन् 1950 में, न्याय और व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए भारत ने इस देश में प्रशासनिक ढांचा तैयार किया।
इसके अलावा, 1956 में प्रस्तुत किए गए नेपाल के पहले पंचवर्षीय योजना को पूरी तरह से भारत द्वारा ही वित्त-पोषित किया गया था। यहां तक की दूसरे पंचवर्षीय योजना में भी भारत ने पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान की थी। काठमांडू को नेपाल-भारत सीमा के मध्य जटिल पर्वत शृंखला और तराई के बीच के समीप बीरगंज/रक्सौल पॉइंट के बीच यातायात सुविधा को बेहतर बनाने के लिए त्रिभुवन हाइवे का निर्माण भारत ने ही किया है। इससे पहले, काठमांडू को तराई और भारत से जोड़ने के लिए वाहन चालान के उपयुक्त उचित मार्ग का अभाव था।
उसके बाद भी, भारत ने ख़ुद अकेले ही नेपाल के पूर्व-पश्चिमी हाईवे के तीन-चौथाई हिस्सों का निर्माण किया जो देश के पूर्वी छोर को उसके पश्चिमी छोर से जोड़ता है। नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों में, कई एयरपोर्ट के अलावे काठमांडू में बने त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा में भारत द्वारा किया गया सहयोग काफी महत्वपूर्ण रहा है।
काठमांडू में बने त्रिभुवन विश्वविद्यालय में, भारत की भूमिका कोई कम महत्वपूर्ण नहीं थी। लंबे अरसे तक, इस विश्वविद्यालय के स्फूर्त संचालन हेतु भारत ने अपनी ओर से तकनीकी सहयोग प्रदान किये। चाहे वो शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति, सड़क, हाइड्रो-पॉवर, कृषि, वन, वाणी, यातायात या फिर संचार का क्षेत्र हो, नेपाल में ऐसा शायद ही कोई सेक्टर हो, जिसमें भारत ने नेपाल का सहयोग नहीं किया हो।
ये बड़ी राहत की बात है कि, विशेष रूप से इस कोविड-19 काल के दौरान, धीरे-धीरे ही सही पर नेपाल-भारत के बीच के संबंधों में धीरे-धीरे सुधार आती दिख रही है। इसका श्रेय, सबसे ज्य़ादा दोनों देशों की जनता और सरकारों को ही जाता है, जिन्होंने परस्पर संबंधों में सुधार के लिए और भी काम किए जाने की ज़रूरत को समझा है।
आपसी संबंधों में सुधार के कारण, नेपाल और भारत दोनों ही देश फायदे की स्थिति में है। इस महीने होने वाली नेपाली प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की नई दिल्ली की यात्रा दोनों देशों के सदियों से चले आ रही परस्पर संबंधों को और मज़बूती प्रदान करेगी।
This article first appeared on Observer Research Foundation.
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