देश में कई समस्याएं हैं, उन समस्याओं का निवारण भी है लेकिन जो निवारण हैं, वो समय के साथ समस्या भी बन जाते हैं और इन्हें हल करने के लिए कोशिश की जाती है। चूंकि समस्या बड़ी होती है तो, यह कोशिश सरकार द्वारा की जाताी है। ऐसी ही एक समस्या है लड़कियों के विवाह की उम्र जिसे अब नए सिरे से फिर तय किया जा रहा है। सरकार द्वारा एक कमेटी बनाई गई जो जल्द ही अपनी रिपोर्ट देगी।
इस बात की चर्चा काफी पहले शुरू हो चुकी ही। बजट 2020 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बात का संकेत दिया है कि, ‘सरकार का इरादा है कि लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र नए सिरे से तय की जाए।
इसके पहले, 1978 में शारदा एक्ट में संशोधन करते हुए लड़कियों के विवाह की उम्र 15 साल से बढ़ाकर 18 साल की गई। जैसे-जैसे भारत तरक्की कर रहा है, लड़कियों के लिए करियर में आगे बढ़ने के अवसर बन रहे हैं। इसके साथ ही लड़कियों के स्वास्थ्य और पोषण के स्तरों में सुधार लाना जरूरी है।
15 अगस्त, 2020 को नई दिल्ली स्थित लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर समीक्षा की जा रही है। शादी के लिए सही उम्र क्या हो, इसके लिए कमेटियां बनाई गई हैं। इसकी रिपोर्ट आते ही बेटियों की शादी की उम्र को लेकर सही फैसले किए जाएंगे।
अब सरकार लड़कियों के लिए इस सीमा को बढ़ाकर 21 करने पर विचार कर रही है। सांसद जया जेटली की अध्यक्षता में 10 सदस्यों के टास्क फ़ोर्स का गठन किया गया है, जो इस पर अपने सुझाव जल्द ही नीति आयोग को देगा।
टास्क फ़ोर्स के साथ इन्हीं सरोकारों पर ज़मीनी अनुभव बांटने और प्रस्ताव से असहमति ज़ाहिर करने के लिए कुछ सामाजिक संगठनों ने ‘यंग वॉयसेस नेशनल वर्किंग ग्रुप’ बनाया गया है। इसके जरिए जुलाई महीने में महिला और बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर 15 राज्यों में काम कर रहे 96 संगठनों की मदद से 12 से 22 साल के 2,500 लड़के-लड़कियों से उनकी राय जानने की क़वायद की गई।
दोनों की उम्र 21 साल होनी चाहिए
सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की डायरेक्टर डॉक्टर रंजना कुमारी ने बताया कि लड़की की शादी की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल रहने का कोई कारण नहीं है। कई लोग मानते हैं कि लड़की जल्दी मैच्योर हो जाती है, जबकि लड़का देर से मैच्योर होता है। लेकिन ये चीजें वैज्ञानिक आधार पर साबित नहीं हैं। यह एक तरह की सामाजिक धारणा है। यह भी जरूरी नहीं है कि लड़की छोटी ही हो। दुनियाभर में ऐसे तमाम विवाह हो रहे हैं, जिनमें लड़कियां बड़ी हैं।
खासतौर से पश्चिमी देशों में तो 90 प्रतिशत शादियों में लड़कियां बड़ी होती हैं। हमारे यहां भी इन चीजों को बदलना चाहिए। मगर लड़के की उम्र कम करने का सवाल ही नहीं है, तो हमारी मांग यह है कि दोनों की उम्र 21 साल होनी चाहिए। अगर दोनों कमाने लायक हो जाएंगे, तो आर्थिक स्थिति भी अच्छी होगी और अर्थव्यवस्था भी।
उम्र बढ़ने से लड़की के पास पढ़ाई के लिए समय होगा। अमूमन 21 साल तक लड़की ग्रेजुएट हो जाएगी, फिर नौकरी करने के अवसर भी मिलेंगे। उम्र बढ़ जाएगी, तो वह शिक्षित और हेल्दी होंगी। वहीं लड़कियों के स्वास्थ्य के नजरिए से देखा जाए तो लड़की की शादी की उम्र बढ़ाने का फायदा यह भी होगा कि बच्चों का लालन-पालन कम उम्र की लड़कियां कर नहीं पाती हैं और इस वजह से हमारी शिशु मृत्यु दर ज्यादा है। अपरिपक्व (इम्मैच्योर) शरीर से बच्चा इतना मजबूत नहीं पैदा होता। तो नैचुरली बच्चे की हेल्थ का भी एक पहलू है कि वह स्वस्थ्य नहीं रहता है।
लेकिन समाज ने इसे नहीं अपनाया
भारत में प्रसव के दौरान या उससे जुड़ी समस्याओं की वजह से मां की मृत्यु होने की दर में काफ़ी गिरावट दर्ज की गई है। यूनिसेफ़ के मुताबिक भारत में साल 2000 में 1,03,000 से गिरकर ये आंकड़ा साल 2017 में 35,000 तक आ गया फिर भी यह देश में किशोरावस्था में होने वाली लड़कियों की मौत की सबसे बड़ी वजह है।
भारत में ‘एज ऑफ़ कन्सेंट’, यानी यौन संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र 18 है। अगर शादी की उम्र बढ़ गई, तो 18 से 21 के बीच बनाए गए यौन संबंध, ‘प्री-मैरिटल सेक्स’ की श्रेणी में आ जाएंगे। शादी से पहले यौन संबंध कानूनी तो है, लेकिन समाज ने इसे नहीं अपनाया है।
देशभर से लड़कियों से की गई रायशुमारी में कई लड़कियां न्यूनतम उम्र को 21 साल तक बढ़ाए जाने के हक़ में भी हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि कानून की वजह से वो अपने परिवारों को शादी करने से रोक पाएंगी। साथ ही वो ये भी मानती हैं कि उनकी ज़िंदगी में कुछ और नहीं बदला और वो सशक्त नहीं हुईं तो ये कानून बाल विवाह को रोकेगा नहीं, बल्कि वो छिपकर किया जाने लगेगा।
उम्र में फासले से ये होगें परिणाम
अगर दो लोगों के बीच उम्र में बहुत अधिक फासला है तो उसके अलग-अलग तरह के परिणाम देखने को मिलते हैं। जैसे अगर लड़की की उम्र 40 से अधिक हो जाए और तब वह रिश्ते में आती है तो प्रेगनेंसी से जुड़ी समस्याएं हो सकती है। इसी तरह मानसिक रोग भी अधिक उम्र के साथ बढ़ने लगते हैं।
अगर दो लोग एक उम्र के नहीं हैं तो उन्हें आपस में तालमेल बैठाने की समस्या का सामना करना पड़ता है। अमूमन देखा गया है कि कम उम्र के व्यक्ति के सोचने का तरीग अलग होता है जबकि अधिक उम्र वाले व्यक्ति की सोच अलग होती है। ऐसे में कई बार सोच-समझ में मतभेद हो जाते हैं, यह तलाक का कारण बनते हैं।
अमेरिका की इमोरी यूनिवर्सिटी की एक स्टडी बताती है कि अगर उम्र का फ़ासला बहुत अधिक होता है तो उनके बीच तलाक़ के आंकड़े बढ़ जाते हैं। रैंडल ओल्सन ने इमोरी यूनिवर्सिटी की इस स्टडी पर What makes for a stable marriage? नाम से दो हिस्सों में रिपोर्ट जारी की थी, इन दोनों हिस्सों में बताया गया था कि किसी कपल के बीच उम्र का फ़ासला जितना बढ़ता जाता है तलाक़ की संभावनाएं उतनी अधिक बढ़ जाती हैं।
हालांकि ये रिपोर्ट अमरीकी जोड़ो पर आधारित है, लेकिन भारत में जिस तरह पाश्चात्य जीवन-शैली अपनाई जा रही है, यह परिणाम भारत में भी हो सकते हैं। बहरहाल, सरकार की रिपोर्ट आने पर ही यह पता चलेगा कि आखिर ऊंट किस करवट बैठेगा।
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