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आजादी > 1 : ‘व्यापार या सत्ता’, आखिर अंग्रेज ‘भारत’ क्यों आए थे?

हिंदुस्तान का मुगल शासक शाह आलम, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों से समीक्षा करते हुए। चित्र : अलामी।

अंग्रेजों के जुल्म की दास्तां के वो किस्से हमने सिर्फ सुने हैं, जिन्होंने सामना किया है, वो बहादुर थे और वो, जो उनके खिलाफ आवाज उठाते थे, मार दिए गए वो शहीद कहलाए। आजादी के इन वीरों को हम महापुरुष कहते हैं। आजादी अनगिनत शहीदों की कुर्बानी के बाद मिली है।

15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ, और 15 अगस्त, 2022 को हम आजादी का 75वां वर्ष मना रहे हैं। आजादी मिले हमें 75 साल हो चुके हैं, लेकिन सत्य घटनाओं पर आधारित ये अमिट कहानियां हर समय अमर रहेंगी।

ये बात है, उस सयम की जब, मुगल जा रहे थे और अंग्रेज हिंदुस्तान की सरज़मी पर आ चुके थे। अंग्रेज भारत में व्यापारी बनकर आए। जब ईस्ट इंडिया कंपनी को सन् 1600 में भारत में, ब्रिटिश महारानी से कारोबार की इजाजत मिली तब तक भारत में फ्रेंच, पुर्तगाली और डच कब्जा जमा चुके थे।

अंग्रेज भारत से, मसाले, सूती कपड़े, रेशम, काली मिर्च, लौंग, इलायची और दालचीनी यूरोप के कई देशों में ले जाने लगे। अंग्रेजों ने मुगल शासक जहांगीर से अपने व्यापारिक रिश्ते मजूबत किए और बाद में कूटनीति के जरिए राजनीतिक मामलों में शामिल हो गए। वो ताकत बढ़ा रहे थे।

यहीं नहीं अंग्रेजों ने उस समय तक मुगल से कंपनी ने टैक्स में छूट भी हासिल कर ली। अंग्रेजी अफसर निजी कारोबार कर रहे थे और टैक्स भी नहीं चुकाते थे। मुगल ये बात जानते थे, लेकिन विरोध की शुरूआत बंगाल के नवाब मिर्जा मोहम्मद सिराजुद्दौला ने की।

अंजाम यह हुआ कि कलकत्ता को ब्रिटिश संपत्ति घोषित कर दिया गया। तब कंपनी का एक और गढ़ था मद्रास (चेन्नई) में था। वहां से रॉबर्ट क्लाइव नौसेना लेकर आए और 1757 में सिराजुद्दौला से प्लासी का युद्ध लड़ा। सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफर ने विश्वासघात किया और युद्ध में नवाब की मौत हो गई।

आधुनिक इतिहास की प्रमाणिक किताबों के मुताबिक, अंग्रेजों के सामने दो चुनौतियां थीं। दक्षिण में टीपू सुल्तान और विंध्य के दक्षिण में मराठा। टीपू सुल्तान ने फ्रेंच व्यापारियों से दोस्ती कर ली थी। सेना को आधुनिक बना लिया था। वहीं, मराठा दिल्ली के जरिए देश पर शासन करना चाहते थे।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने टीपू सुल्तान और उनके पिता हैदर अली से चार युद्ध लड़े। लेकिन 1799 में टीपू श्रीरंगपट्टनम की जंग में मारे गए, इसी तरह, पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद मराठा साम्राज्य टुकड़ों में बंटा था। 1819 में अंग्रेजों ने पेशवा को पुणे से लाकर कानपुर के पास बिठुर में नजरबंद कर दिया।

इस बीच, पंजाब बड़ी चुनौती बना रहा था। महाराजा रणजीत सिंह जब तक रहे, तब तक उन्होंने अंग्रेजों के सामने हार नहीं मानी। लेकिन 1839 में उनकी मौत के बाद हालात बदल गए। दो लड़ाइयां और हुई और दस साल बाद पंजाब पर अंग्रेजों ने सत्ता हासिल की।

सन् 1848 में लॉर्ड डलहौजी विलय नीति लेकर आए। जिस शासक का कोई पुरुष उत्तराधिकारी नहीं होता था, उस रियासत को कंपनी अपने कब्जे में ले लेती। इस आधार पर सतारा, संबलपुर, उदयपुर, नागपुर और झांसी पर अंग्रेजों ने कब्जा जमाया। इस तरह 1857 की क्रांति की नींव तैयार की।

इस बीच अंग्रेज आधुनिक बंदूकों का उपयोग करने लगे। लेकिन जब यह खबर आई कि नई बंदूकों के कारतूसों पर गाय और सूअर की चर्बी का लेप है तो कंपनी में सिपाही भड़क गए। 1857 में मेरठ में सिपाही विद्रोह के चलते मंगल पांडे को फांसी पर चढ़ाया गया।

वहां से उठी चिंगारी ने झांसी, अवध, दिल्ली, बिहार में क्रांति को हवा दी। रानी लक्ष्मीबाई, बहादुर शाह जफर, नाना साहेब आदि ने मिलकर एक साथ बगावत कर दी। अंग्रेजों को काफी नुकसान उठाना पड़ा।

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