प्रतीकात्मक चित्र।
- अंबर कुमार घोष।
जुलाई 2017 में जब केंद्र सरकार ने वस्तु और सेवाएं कर (GST) लागू किया था, तो इसे भारत में टैक्स प्रणाली को एकजुट करने का इंक़लाबी क़दम बताया गया था। लेकिन आज मौजूदा घटनाक्रम बदलता जा रहा है।
केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग तहत, भारत के सभी राज्यों ने दलगत राजनीति से ऊपर उठते हुए, केंद्र सरकार के GST लागू करने के क़दम में अपना सहयोग दिया था। इसी वजह से ये बड़ा टैक्स सुधार मुमकिन हो सका था। उसके बाद से पांच वर्ष बीत चुके हैं, और इस दौरान GST व्यवस्था की अच्छाइयां भी सामने आई हैं और इसकी कमज़ोरियां भी उजागर हुई हैं। भारत के वित्तीय संघवाद (फेडरेलिज्म) पर इन बातों का गहरा असर पड़ा है।
GST का लागू होना, भारत में केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग की बड़ी मिसाल था। क्योंकि अलग-अलग राज्यों में अलग अलग दलों की सरकार थी और केंद्र और राज्यों के बीच ज़बरदस्त राजनीतिक अविश्वास और मतभेद था। लेकिन, देश के सभी राज्यों ने अपनी मर्ज़ी से कर लगाने के अपने अधिकार को छोड़ा और उस वक़्त लगने वाले कई तरह के टैक्स को GST के दायरे में एकजुट करने पर सहमति जताई थी।
इसका नतीजा ये हुआ कि भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले बहुत से विषय बेअसर हो गए व राज्यों की विधानसभाएं अब सामानों की ख़रीद फ़रोख़्त पर कोई टैक्स लगाने की अधिकारी नहीं रहीं। इससे पेट्रोलियम जैसे गिने-चुने उत्पादों को ही छूट दी गई थी। जैसा कि GST एक्ट 2017 में प्रावधान है कि नई व्यवस्था के तहत राज्यों को स्टेट GST (SGST) और एकीकृत GST (IGST) का एक हिस्सा, वसूले गए टैक्स के रूप में मिलना था।
इसके अलावा ये भी माना गया था कि पुरानी व्यवस्था से अप्रत्यक्ष करों की नई टैक्स प्रणाली अपनाने के दौरान राज्यों की आमदनी में कमी आएगी, तो आम सहमति से ये बात तय हुई थी कि अगले पांच वर्षों तक, राज्यों को होने वाले टैक्स के इस नुक़सान की भरपाई एक साझा GST मुआवज़ा फंड के ज़रिए दी जाएगी। ये समय सीमा इस साल जून में ख़त्म हो गई।
GST एक्टिव की धारा 297 (A) के तहत एक GST परिषद के गठन का प्रावधान किया गया था। इसमें केंद्रीय वित्त मंत्री, केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री और सभी राज्यों के वित्त मंत्री शामिल होंगे। इस GST परिषद की ये ज़िम्मेदारी थी, कि वो केंद्र और राज्यों को लगाए जाने वाले टैक्स की दरों के बारे में मिलकर सुझाव दें, जिसके आधार पर एक मॉडल GST क़ानून बने।
GST परिषद की ये ज़िम्मेदारी भी तय की गई थी कि वो उन वस्तुओं और सेवाओं के नाम सुझाए जिन्हें इस मॉडल GST क़ानून के दायरे में लाया जाना चाहिए। इसीलिए, GST सुधारों का फल, केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और संवाद पर निर्भर था, जो संसाधनों के वितरण और फ़ैसले लेने की शर्तों के लिहाज़ से बेहद ज़रूरी था।
This article first appeared on Observer Research Foundation.
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