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युद्ध : क्या है रूस की, ‘यूक्रेन रणनीति’, क्या ये निर्णायक साबित होगी?

चित्र : रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन।

  • कार्तिक बोम्मकांति, लेखक, अंतरिक्ष और सैन्य मुद्दों से संबंधित विशेषज्ञ हैं।

क्या यूक्रेन युद्ध को, रूस तेज़ी से और अपनी शर्तों पर अंजाम तक पहुंचा सकेगा, या फिर वो एक लंबे समय तक चलने वाली जंग में फंस जाएगा? रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच कुछ ऐसे सवाल है जो दुनिया में गूंज रहे हैं। इन सवालों का सही उत्तर क्या है सिवाय पुतिन और उनके भरोसेमंद लोगों के सिवाय कोई नहीं जानता लेकिन दुनिया भर के युद्ध विशेषज्ञ अपनी-अपनी राय जाहिर कर रहे हैं।

यूक्रेन पर रूस का हमला दो अहम घटनाओं के बाद हुआ है, जो आठ साल पहले हुई थीं, दक्षिणी पूर्वी यूक्रेन में क्राइमिया पर रूस का क़ब्ज़ा और उसके बाद, यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र में डोनेत्स्क और लुहांस्क के इलाक़ों पर क़ब्ज़ा। यूक्रेन के इन दोनों ही इलाक़ों में रूसी भाषा बोलने वालों का बहुमत है। यूक्रेन पर हालिया आक्रमण से महज़ तीन दिन पहले, राष्ट्रपति पुतिन ने 21 फ़रवरी 2022 को इन दोनों ही क्षेत्रों को स्वतंत्र गणराज्य घोषित कर दिया था।

पुतिन ने यूक्रेन के इन दोनों इलाक़ों पर ये कहते हुए क़ब्ज़ा कर लिया था कि वो यहां के स्थानीय रूसी भाषी जनता को कीव की हुकूमत के शिकंजे से आज़ाद करा रहे हैं। इस इलाक़े में 2014 से ही उग्रवादी हिंसा चली आ रही है जिसमें पंद्रह हज़ार से ज़्यादा लोगों की जान जा चुकी है। सच तो ये है कि इन इलाक़ों को बहाना बनाकर ही रूस ने यूक्रेन पर वो बड़ा हमला किया जो अभी चल रहा है।

रूस इस हमले के लिए कई महीनों से तैयारी कर रहा था। यूक्रेन की सीमा के अहम ठिकानों पर रूस ने एक लाख 90 हज़ार सैनिक जमा कर रखे थे। 14 फ़रवरी को यूक्रेन पर रूस के हमले का पहला चरण शुरू हुआ था, जब तोपखाने की बमबारी, समुद्र, हवा और ज़मीन से चलने वाली मिसाइलों के ज़रिए यूक्रेन के एयर डिफेंस, एयर बेस और कमांड और कंट्रोल केंद्रों पर हमला बोला गया था।

इनमें ख़ारकीव पर बमबारी शामिल है, जो यूक्रेन का दूसरा बड़ा शहर है और उत्तर पूर्व में रूस की सीमा के बेहद क़रीब स्थित है। रूस ने यूक्रेन पर हमले के लिए दूसरे रास्ते पर बेलारूस की सीमा को चुना है, जहां से यूक्रेन की राजधानी कीव को निशाना बनाया जा रहा है। रूसी सेना का तीसरा हमला डोनबास क्षेत्र से हो रहा है और रूसी हमले का चौथा मोर्चा क्राइमिया और वहां पर स्थित नौसैनिक अड्डे सेवास्टोपोल का है, जिस पर 2014 से ही रूस का क़ब्ज़ा है।

रूसी सेना के सामने हैं भयंकर चुनौतियां

माना जा रहा है कि इस युद्ध में दोनों ही पक्षों को भारी जनहानि हुई है, हालांकि ये तादाद कितनी है इसे लेकर तस्वीर साफ़ नहीं है। रूस का पहला मक़सद ज़ेलेंस्की की अगुवाई वाली सरकार का ख़ात्मा करना, यूक्रेन में अपनी पसंद की कठपुतली सरकार स्थापित करना और यूक्रेन की सेना और सैनिक साज़-ओ-सामान की ताक़त को पूरी तरह से ख़त्म करना है।

इसके लिए रूस को अपना विरोध कर रहे इलाक़ों को पूरी तरह से नष्ट करना होगा। स्वतंत्र रूप से मिली जानकारी के मुताबिक़, रूस ने अब तक अपनी सैन्य ताक़त का महज़ एक छोटा सा हिस्सा ही यूक्रेन में इस्तेमाल किया है। रूस, यूक्रेन के ख़िलाफ़ और अधिक सैन्य ताक़त का इस्तेमाल कर सकता है, जिससे वो यूक्रेन की रक्षा पंक्ति पर पूरी तरह से हावी हो जाए।

हालांकि, यूक्रेन पर पुतिन के हमले के सामने कई अनिश्चितताएं और चुनौतियां खड़ी दिखाई दे रही हैं। रूसी सेना के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि वो 4.4 करोड़ आबादी वाले देश को दबाने की कोशिश कर रहा है, जबकि यूक्रेन की आबादी का एक बड़ा हिस्सा रूस के सख़्त ख़िलाफ़ है।

दूसरी बात ये कि रूस एक ऐसे देश पर अपना दबदबा क़ायम करना चाहता है, जो क्षेत्रफल के लिहाज़ से यूरोप में ख़ुद रूस के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है। भौगोलिक आकार और रूस से नफ़रत करने वाली यूक्रेन की आबादी के अलावा, यूक्रेन में बड़े पैमाने पर शहरी आबादी का होना, उसे शहरी इलाक़ों में जंग का मोर्चा बना देती है।

रूस की ज़मीनी सेनाओं और यूक्रेन के सैनिकों और हथियारबंद नागरिकों के बीच शहरों की गलियों की जंग, रूसी सेना को एक दलदल में फंसा देगी. इसके अलावा, अगर यूक्रेन की सरकारी सेना अंदरूनी इलाक़े में अपनी रक्षा पंक्ति स्थापित कर पाने में कामयाब रही है, तो फिर रूस एक खुली और लंबे समय तक चलने वाली जंग में फंस जाएगा।

यूक्रेन की नेटो (NATO) के पूर्वी देशों, जैसे कि पोलैंड, हंगरी, रोमानिया और स्लोवाकिया से मिलने वाली सीमा, यूक्रेन की सेना के लिए ट्रेनिंग और सीमा पार से अभियान चलाने का ठिकाना बन सकती है, जो फिर रूसी सेना के ख़िलाफ़ गुरिल्ला युद्ध छेड़ सकते हैं।

निश्चित रूप से नेटो, यूक्रेन में तैनात रूसी सेना के ख़िलाफ़ यूक्रेन को पैसे से, हथियारों से और प्रशिक्षण देकर मदद करेगा, जिससे वहां पर बग़ावत की चिंगारी सुलगती रहे। इससे यूक्रेन में मौजूद सेना को लगातार चुनौतियों का सामना करना होगा और नुक़सान उठाना पड़ सकता है।

अगर स्थितियां अलग हुईं तो फिर ये युद्ध आने वाले कई हफ़्तों, महीनों या फिर बरसों तक खिंच सकता है। ज़ाहिर है आक्रमणकारी रूसी सेना के सामने भयंकर चुनौतियां खड़ी दिख रही हैं। इसके उलट रूस पहले से ही यूक्रेन के शहरों में अपने सैनिकों को नागरिक के भेष में घुसपैठ करा रहा है, जिससे वो यूक्रेन के सैन्य बलों और विरोध करने वाले लड़ाकों की पहचान करके उनका सफाया कर सकें। हालांकि, ये तो गुज़रते हुए वक़्त के साथ ही पता चलेगा कि रूस की सैन्य रणनीति क्या रहने वाली है।

…तो क्या गुरिल्ला युद्ध लड़ना होगा?

अगर हम ये मान लें कि पुतिन को ये अंदाज़ा है कि यूक्रेन में रूस को लंबे समय तक गुरिल्ला युद्ध लड़ना होगा, तो संभावना इस बात की ज़्यादा है कि रूस, यूक्रेन के बड़े शहरों को पूरी तरह से तबाह करने के बाद, उसे पूर्वी और पश्चिमी टुकड़ों में बांट देगा, जिससे पूर्वी यूक्रेन, रूस और पश्चिमी यूक्रेन के बीच बफर का काम करेगा।

अगर युद्ध में ऐसे भी हालात बनते हैं, तो भी रूसी सेना के लिए चुनौतियां कम नहीं होने वाली हैं। क्योंकि तब भी यूक्रेन के पश्चिम में पड़ने वाले एक बड़े हिस्से में रूस विरोधी उग्रवाद के पनपने और ताक़तवर होने का ख़तरा बना रहेगा। तब नेटो देशों के पास, यूक्रेन के इन उग्रवादियों का इस्तेमाल कीव में रूस की कठपुतली सरकार के ख़िलाफ़ करने का भरपूर मौक़ा होगा।

हालांकि, यूक्रेन पर हमले के लिए रूस की एक लाख 90 हज़ार सैनिको की सेना पर्याप्त है। यूक्रेन पर क़ाबिज़ होने के बाद रूस को अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए और अधिक तादाद में सैनिकों की ज़रूरत होगी, क्योंकि उसके सामने यूक्रेन के बाग़ियों से निपटने की भारी चुनौती होगी। यूक्रेन में किसी भी रूस समर्थक सरकार को जनता का समर्थन मिलने की उम्मीद कम ही है।

इसका नतीजा ये होगा कि जंग के हालिया तजुर्बे इसकी गवाही देते हैं कि रूस की सेना और उसकी समर्थक यूक्रेनी सरकार को यूक्रेन के हथियारबंद लोगों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ेगा। मिसाल के तौर पर 2003 में इराक़ पर अमेरिका के हमले को ही देखिए, जो कामयाब रहा था, लेकिन इराक़ पर क़ब्ज़ा करने वाली अमेरिकी सेना की तादाद कम थी। किसी भी तरह की सैन्य तैयारी पहले हमले का मुक़ाबला नहीं कर पाती है, क्योंकि युद्ध के आख़िरी नतीजे में हमेशा दुश्मन की भी बड़ी भूमिका होती है।

इसलिए, रूस ने भले ही 2014 में लुहांस्क, डोनेत्स्क और क्राइमिया प्रायद्वीप पर निर्णायक रूप से क़ब्ज़ा कर लिया, क्योंकि रूसी सेना ने बेहद कुशलता से अभियान चलाकर ये मोर्चे फ़तह किए थे लेकिन पूरे यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के आक्रमण का भी यही नतीजा निकलेगा, ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है।

आख़िर में, भले ही यूक्रेन की तुलना में रूस की सेना बहुत बेहतर हो लेकिन मज़बूत इरादों और पर्याप्त संसाधनों वाले विपक्षी देश, दुनिया की बड़ी से बड़ी ताक़त को परास्त करने का माद्दा रखते हैं। ये बात हम कई मिसालो के रूप में देख चुके हैं. जैसे कि, हाल ही में तालिबान के हाथों अमेरिका की हार, अफ़ग़ान मुजाहिदीन के हाथों सोवियत संघ की पराजय और वियतनाम के हाथों अमेरिका की शिकस्त।

This article first appeared on Observer Research Foundation.

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