भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हालही में कहा कि ‘भारत परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल न करने की नीति पर अभी भी कायम है लेकिन भविष्य में क्या होता है यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है।’ दरअसल ये सब शुरू हुआ अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त किए जाने के बाद ऐसे में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है।
भारत और पाकिस्तान दोनों ही परमाणु शक्ति संपन्न वाले राष्ट्र हैं। ऐसे में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को लेकर भारतीय रक्षा मंत्री का बयान एक महत्वपूर्ण बात है। राजनाथ सिंह भारत के दूसरे रक्षा मंत्री हैं जिन्होंने ‘पहले इस्तेमाल न करने’ की नीति के बारे में कहा है। हालांकि इससे पहले पूर्व रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर यह बात कह चुके हैं, लेकिन उन्होंने इस अपनी निजी राय बताया था।
अगर भारत अपनी नीति में बदलाव लाता है तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिक्रियाएं आ सकती हैं। इसलिए नीति बदलने की स्थिति में ये बहुत गंभीर बात होगी क्योंकि भारत की अभी की नीति है वो है ‘पहले इस्तेमाल न करने’ की नीति, जिसे रिटैलिएटरी डॉक्ट्रिन कहते हैं।
क्या है भारत की परमाणु नीति
भारत ने 2003 में अपना परमाणु सिद्धांत स्वीकार किया। भारत की परमाणु नीति का मूल सिद्धांत पहले उपयोग नही है। इस नीति के अनुसार भारत किसी भी देश पर परमाणु हमला तब तक नहीं करेगा जब कि वह देश भारत के ऊपर हमला नही कर देता है। भारत के पास परमाणु हथियारों की संख्या लगभग 110-130 के बीच मानी जाती है जबकि पाकिस्तान के पास 130 से 150 के बीच परमाणु हथियार हैं।
मई 1974 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासनकाल में भारत में पहला परमाणु परीक्षण किया गया था। परमाणु परीक्षण का नाम ‘स्माइलिंग बुद्धा’ है। इसके बाद पोखरण-2 परीक्षण 11 और 13 मई, 1998 को राजस्थान के पोरखरण परमाणु स्थल पर 5 परमाणु परीक्षण किए थे।ये पांच परमाणु बम परीक्षणों की श्रृंखला का एक हिस्सा था। उस समय भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी थे।
भारत पहला ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश बना जिसने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इन परीक्षणों के बाद विश्व समुदाय ने भारत के ऊपर कई तरह के प्रतिबंध लगाए। तब भारत ने विश्व समुदाय से कहा था भारत एक जिम्मेदार देश है और वह अपने परमाणु हथियारों को किसी देश के खिलाफ ‘पहले इस्तेमाल’ नही करेगा, जो कि भारत की परमाणु नीति का हिस्सा है।
किसने शुरू किया था परमाणु कार्यक्रम
भारत में परमाणु कार्यक्रम की नींव रखने का श्रेय डॉ. होमी जहांगीर भाभा को जाता है, पर डॉ. राजा रामन्ना का योगदान भी इस कार्य में कम नहीं था। 18 मई, 1974 में देश के पहले सफल परमाणु परीक्षण कार्यक्रम में अहम भूमिका निभाने के लिए राजा रामन्ना को याद किया जाता है। रामान्ना उन आरंभिक भारतीय वैज्ञानिकों में से हैं, जिन्होंने ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए नाभिकीय ऊर्जा के उपयोग के लिए पथप्रदर्शक कार्य किए और देश के स्वदेशी परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए कार्य किया।
क्या होगा यदि परमाणु युद्ध होगा
न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार यदि भारत-पाक के बीच परमाणु युद्ध हुआ तो 1.5 करोड़ लोग इसके प्रभाव में आएंगे और आने वाले करीब 20 साल तक इसके गंभीर परिणाम होंगे। आफ्टर इफेक्ट्स ऑफ न्यूक्लियर वॉर इन अरबन पॉपुलेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिस जगह परमाणु विस्फोट होगा उस क्षेत्र में तीक्ष्ण चमक के साथ भयानक आग का गोला उठेगा जो कई मील तक सबकुछ जलाकर राख कर देगा। हालांकि यह परमाणु प्रक्षेपास्त्र की क्षमता पर निर्भर होगा।
तो वहीं, परमाणु विस्फोट से निकलने वाला कार्बन से बना बादल थोड़े ही समय में उस क्षेत्र में आने वाली सूर्यकिरणों को पृथ्वी पर आने से रोकेगा। इस काले-घने बादल से होने वाली अम्ल वर्षा से लाखों लोग मारे जाएंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार इस बादल को छंटने में कई साल लगते हैं और इस प्रक्रिया में इससे निरंतर अम्लवर्षा होती है, यह बेहद खतरनाक साबित होगी।
यदि परमाणु युद्ध होता है तो विस्फोट से ओजोन परत में भारी नुकसान होगा। कार्बन से बने बादल धरती की कुल 25-40 से लेकर 70 प्रतिशत ओजोन परत को नष्ट कर देंगे जिसके पश्चात अंतरिक्ष से आनी वाली पराबैंगनी किरणों से मानवजाति और वनस्पति के अस्तित्व पर गंभीर परिणाम होंगे।
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