भारत में इन दिनों बेरोजगारी काफी बड़े स्तर पर है। केंद्र और राज्य सरकार भले ही कई दावे करें, लेकिन हक़ीकत कुछ और ही बयां कर करती है। बेरोजगारी को बताने वाली कई रिपोर्ट इंटरनेट पर गूगल सर्च के दौरान मिल जाएंगी, लेकिन देश में बेरोजगारी के अलावा एक ओर समस्या है, उन लोगों के लिए जो कम पूंजी में अपना स्टार्टअप शुरु कर रहे हैं।
भारत में स्टार्टअप समुदाय के हितधारक पिछले कुछ महीनों से खतरनाक एंजल टैक्स और अन्य कानूनों का व्यापक उल्टा असर होने की आशंकाएं जताते रहे हैं। ओआरएफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन सभी पर व्यक्त की जा रही तीखी प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए सरकार ने यह सुनिश्चित करने का वादा किया था कि स्टार्टअप्स में एंजल इन्वेस्टरों या निवेशकों द्वारा निवेश की गई वैध रकम पर कर लगाने के लिए टैक्स अधिकारियों को अधिकृत करने संबंधी आयकर अधिनियम की धारा 56 और 68 के कारण गैर वाजिब मुश्किलें अथवा संकट उत्पन्न नहीं होने दिया जाएगा।
क्या सरकार वाकई में दे रही है स्टार्टअप्स को राहत
हालांकि, सच्चाई यही है कि पूंजी या धनराशि जुटाने वाले 70 प्रतिशत से भी ज्यादा भारतीय स्टार्टअप्स को कर विभाग की ओर से एक या उससे भी अधिक नोटिस प्राप्त हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि स्टार्टअप्स को राहत देने के लिए सरकार द्वारा जताई गई प्रतिबद्धता अब भी महज खोखली ही है।
आईएनसी 42 की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक बेहद दुर्भाग्यपूर्ण कदम उठाते हुए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने दो अत्यंत काबिल एवं भरोसेमंद स्टार्टअप्स ‘ट्रैवलखाना’ और ‘बेबीगोगो’ के खातों से एंजल टैक्स के मद में क्रमशः 33 लाख और 72 लाख रुपए की कटौती करके उनके खजाने को खाली कर दिया।
क्या है एंजल टैक्स?
दरअसल, एंजल टैक्स उन स्टार्टअप्स पर लगाया जाता है जिन्हें उनके वाजिब मूल्यांकन से कहीं अधिक पूंजी इक्विटी के रूप में प्राप्त हुई है क्योंकि निवेशकों द्वारा भुगतान किए जा रहे प्रीमियम को उनकी आय माना जाता है। यह अनूठा कराधान केवल भारत में ही है और इसके तहत पूंजीगत प्राप्तियों और निवेश को आय मानते हुए उस पर टैक्स लगाया जाता है।
यह देखा गया है कि टैक्स का आकलन करने वाले अधिकारियों ने अब खुद भी किसी निवेशक की तरह कंपनी का मूल्यांकन करना शुरू कर दिया है। यह किसी निर्धारिती या कंपनी का मूल्यांकन करने की कानूनी व्यवस्था के ठीक विपरीत है।
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ठीक यही काम सीबीडीटी ने इस मामले में किया है। इस बारे में संबंधित स्टार्टअप्स का दावा है कि उन्हें कर नोटिसों और विभिन्न सवालों का जवाब देने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया था। सीबीडीटी ने अपने वक्तव्य में कहा था कि औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग की ओर से प्राप्त कोई भी ऐसा प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है जो कंपनी के एक स्टार्टअप होने के दावे को प्रमाणित करता है।
सीबीडीटी ने अपने पिछले वक्तव्य में यह स्पष्ट किया कि इनके खातों में डाली गई ‘अघोषित या बगैर लेखा-जोखा वाली नकदी’ के मद में ही इनके खातों से पैसा निकाला गया है। अत: कंपनी का यह मामला 24 दिसंबर को जारी उस अधिसूचना के दायरे में नहीं आता था जिसमें कहा गया था कि कर विभाग से नोटिस प्राप्त करने वाले स्टार्टअप्स के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाएगी। बहरहाल, कर आकलन करने वाले अधिकारियों ने इस अधिसूचना की अनदेखी कर दी और इनके खातों से पैसा निकाल लिया है।
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इस कार्रवाई से भारत में स्टार्टअप समुदाय को तगड़ा झटका लगा है। अब तो कई उद्यमियों और निवेशकों ने यह दलील देनी शुरू कर दी है कि कंपनियों का निगमन या गठन सिंगापुर जैसे देशों में करने की आवश्यकता है। अत: इससे साफ जाहिर है कि भारत में ‘कारोबार करने में आसानी’ के सरकारी दावों पर अब सवालिया निशान लगाए जा रहे हैं।
अंतरिम बजट में भी स्टार्टअप को कोई राहत नहीं
हाल ही में अपने एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समुदाय की आशंकाओं को उस दौरान कम करने की भरसक कोशिश की थी जब उन्होंने नई अर्थव्यवस्था के प्रति संवेदनशील होने और नए नजरिए से इसे देखने की आवश्यकता जताई थी। इसके अलावा, कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने संसद में कहा था कि सरकार वैध माध्यमों या तरीकों से फंड जुटाने वाले स्टार्टअप्स को परेशान नहीं करेगी। हालांकि, नई अर्थव्यवस्था को नए नजरिए से देखने की प्रतिबद्धता वास्तविकता में तब्दील नहीं हो पाई है। यहां तक कि अंतरिम बजट ने भी स्टार्टअप समुदाय को इस मामले में कोई राहत नहीं दी।
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हालांकि, इन मुश्किलों के बावजूद इस बात में बहुत कम संदेह है कि सरकार ने स्टार्टअप इंडिया योजना, अटल इनोवेशन मिशन और इसी तरह की अन्य पहलों के जरिए देश में उद्यमशीलता के माहौल पर फिर से फोकस करने का सराहनीय काम किया है। लेकिन, आज भी स्टार्टअप्स के बीच भारी असंतोष का माहौल बना हुआ है।
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