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रूस-यूक्रेन युद्ध : ‘इन 4 तथ्यों से समझें’, भारत का क्या है रुख

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन पर हमले के निंदा प्रस्ताव पर रूस ने वीटो पावर का इस्तेमाल किया है। रूस और यूक्रेन पर भारत ने मतदान में हिस्‍सा क्‍यों नहीं लिया? इसके पीछे बड़ी वजह क्‍या है? इस बारे में कई तरह के मत दिए जा सकते हैं लेकिन सबसे सटीक मत जोकि अंतरराष्ट्रीय डिप्लोमेसी की बुनियादी बातों की इंगित करता है वो हमारे विशेषज्ञ इस आलेख में बता रहे हैं।

  • हर्ष वी. पंत, लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं।

यूक्रेन पर रूसी हमले (लेख लिखने के दौरान तक) जारी हैं। रूस की सेना ने यूक्रेन के कई जगहों और सैन्‍य ठिकानों पर हमला किया है। कई सैन्‍य ठिकानों को तबाह कर दिया है। उधर, दोनों देशों के बीच युद्ध विराम के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन पर हमले के निंदा प्रस्ताव पर रूस ने वीटो पावर का इस्तेमाल किया है। रूस सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है। खास बात यह है कि भारत, चीन और यूएई ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।

सवाल यह है कि रूस और यूक्रेन पर भारत ने मतदान में हिस्‍सा क्‍यों नहीं लिया? इसके पीछे बड़ी वजह क्‍या है?

  • रूस और यूक्रेन संघर्ष में भारतीय विदेश नीति का दृष्टिकोण साफ है। भारत का मत है कि सभी विवादित मुद्दों को बातचीत के जरिए ही सुलझाया जाना चाहिए। सुरक्षा परिषद में भारत का यही दृष्टिकोण दिखा। भारत ने सुरक्षा परिषद में बहुत सधी हुई टिप्‍पणी की है। भारत का मत है कि सभी सदस्‍य देशों को सकारात्‍मक तरीके से आगे बढ़ने के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र के नियमों एवं सिद्धांतों का सम्‍मान करना चाहिए। भारत का मत है कि आपसी मतभेदों और विवादों को निपटाने के लिए संवाद ही एकमात्र जरिया है। भारत ने दुनिया के सबसे बड़े सुरक्षा परिषद के मंच पर बड़ी सहजता से यह बात रखी की किसी भी विवादित मसले का हल युद्ध नहीं हो सकता है। संवाद के जरिए ही विवादों को निपटाया जाना चाहिए।
  • आजादी के बाद भारत की विदेश नीति सदैव से गुटनिरपेक्ष सिद्धांतों पर टिकी रही है। वो शीत युद्ध का दौर था। दुनिया में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भी भारत इस नीति पर कायम है। वह किसी सैन्‍य गुट का हिस्‍सा नहीं है। भारत के अमेरिका से बेहतर संबंध है, तो रूस से उसकी पुरानी दोस्‍ती है। भारत के इजरायल से मधुर संबंध है तो कई खाड़ी देशों से भी उसकी निकटता है। इसकी बड़ी वजह यह रही कि भारत किसी देश के आंतरिक मामलों में हस्‍तक्षेप पर यकीन नहीं करता है न ही अपने आंतरिक मामलों में दुनिया के किसी देश का हस्‍तक्षेप स्‍वीकार करता है। भारतीय विदेश नीत‍ि की आस्‍था दुनिया में किसी भी समस्‍या का समाधान संवाद के जरिए ही हो सकता है। यही कारण है कि सुरक्षा परिषद में उसने मतदान देने के बजाए अपना स्‍पष्‍ट मत रखा।
  • भारत की कथनी और करनी में फर्क नहीं है। भारत चीन के साथ सीमा विवाद की समस्‍या का संवाद के जरिए समाधान खोज रहा है। इसके लिए भारत चीन की 14 चरण की वार्ता हो चुकी है। भारत पड़ोसी देश पाकिस्‍तान की ओर से प्रायोजित आतंकवाद का कई वर्षों से संवाद के जरिए ही समाधान करने की बात करता रहा है, हालांकि, पाकिस्‍तान की कथनी और करनी में फर्क होने के कारण अब तक इसका कोई समाधान नहीं निकल सका है। किसी भी देश के विवाद को युद्ध या जंग के जरिए नहीं वार्ता के जरिए समाधान में यकीन करता है। भारत में सैन्‍य उपकरणों की आपूर्ति हो या चीन के साथ सीमा विवाद का मामला नई दिल्‍ली के लिए मास्‍को बेहद उपयोगी है। आज भी भारतीय सेना में शामिल अधिकतर सैन्‍य उपकरण रूस निर्मित हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारतीय सेना में साठ फीसद शस्‍त्र रूस निर्मित हैं। आजादी के बाद खासकर शीत युद्ध के दौरान रूस और भारत के संबंध काफी मधुर रहे हैं।
  • शीत युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच निकटता रही है। हाल में अमेरिका के तमाम विरोध के बावजूद भारत ने रूस से एस-400 डिफेंस मिसाइल सिस्‍टम हासिल किया है। भारत-चीन सीमा विवाद के मद्देनजर भी रूस के साथ भारत की निकटता बेहद उपयोगी है। भारत-चीन सीमा विवाद में नई दिल्‍ली को रूस से अपेक्षा रही है कि वह मध्‍यस्‍थता की भूमिका निभा सकता है।
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