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युद्ध : यूक्रेन ‘संकट’ में, लेकिन चीन को मिलेगा ये फायदा!

चित्र : रूस के सैनिक जो युद्ध के हथियारों के साथ यूक्रेन के शहर की ओर जा रहे हैं।

  • अंतरा घोषाल सिंह, लेखिका, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में सामरिक अध्ययन में फेलो हैं।

यूक्रेन-रूस संघर्ष ने चीन को एक अजीब स्थिति में डाल दिया है क्योंकि रूस का खुले तौर पर समर्थन कर चीन पश्चिम देशों की नाराज़गी मोल नहीं लेना चाहता है। चीनी सोशल मीडिया में इसे लेकर एक सवाल पर जोरदार बहस छिड़ी हुई है कि क्या यूरोप में सैन्य संघर्ष ‘चीन के लिए अच्छा है या बुरा’, कुछ लोगों का मत है कि मौजूदा यूक्रेन संकट का स्पष्ट विजेता चीन है। हालांकि चीन इस युद्ध को रोकने में मदद कर सकता है।

लेकिन, यूक्रेन में रूस का दाख़िल होना चीन के लिए काफी फ़ायदेमंद है। सबसे पहले, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के पास अब कार्रवाई करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यूक्रेन के मौजूदा हालात पर सभी देश नज़र रखे हुए हैं। अगर अमेरिका रूस पर प्रतिबंध लगाने के अलावा कुछ नहीं करता है तो उसके सहयोगियों के बीच उसकी विश्वसनीयता गंभीर रूप से प्रभावित होगी और उसकी गठबंधन व्यवस्था कमज़ोर पड़ने लगेगी,  जो चीन के लिए बेहतर है।

दूसरी ओर, अगर अमेरिका या नेटो यूक्रेन में सैन्य रूप से सीधे तौर पर शामिल होते हैं, तो यह अमेरिकी संसाधनों को ख़र्च करेगा जिससे अमेरिका की हिंद-प्रशांत क्षेत्र की रणनीति ख़तरे में पड़ सकती है, जो चीन के लिए और भी बेहतर है। वास्तव में, अगर अमेरिका और रूस लंबे समय तक यूक्रेन में उलझे रहते हैं तो यह चीन को  उसके विकास के लिए अगले 5-10 साल तक और ज़्यादा मौक़ा देगा, जिसके बाद चीन को रोक पाना असभंव हो जाएगा।

दूसरी ओर, अगर अमेरिका और रूस ने एक-दूसरे की ताक़त की आज़माइश कर जल्दी से शांति स्थापित कर ली तो हो सकता है कि चीन इस मौक़े का इस्तेमाल ताइवान पर कब्ज़ा कर अपने राष्ट्रीय एकीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए करे। इसके अलावा यूक्रेन संकट का प्रकोप चीन-रूस संबंधों को और मज़बूत करेगा, क्योंकि सख़्त आर्थिक प्रतिबंधों की वज़ह से रूस के पास चीन पर भरोसा करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा।

तीसरा, यूक्रेन संकट का मतलब है पश्चिमी शक्तियों (जर्मन-फ्रांसीसी महाद्वीपीय यूरोप, रूस और अंग्रेजी बोलने वाले देशों के एंग्लो-अमेरिकन समूह) का चीन के ख़िलाफ़ एक साथ आने की सभी संभावनाओं का अंत, जो लंबे समय से चीन की चिंता का कारण रही है और जो पिछले कुछ महीनों से अमेरिका और रूस के बीच यूक्रेन की बातचीत के चलते और तेज़ हो गई है।

लेकिन यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद अब यह समझा जा सकता है कि यूरोप के साथ रूस के शामिल होने का दरवाज़ा अब पूरी तरह से बंद हो चुका है और अमेरिका और रूस के बीच संबंध पूरी तरह से तनावपूर्ण हो चुके हैं, जिसका मतलब यह हुआ कि चीन के ख़िलाफ़ यूएस-यूरोपीय संघ-रूस संयुक्त मोर्चा की संभावना अब ख़त्म समझी जा सकती है।

इस तरह यह चीन-अमेरिका-रूस के रणनीतिक त्रिकोण में सामरिक रूप से चीन को एक ज़्यादा बेहतर स्थिति में स्थापित करता है, जिससे चीन को योजना बनाने और और लगातार विकास के मौके को भुनाने के लिए ज़्यादा गुंजाइश मिलती है, क्योंकि यूरोपीय फंड चीन में लगातार आते रहेंगे और इसी तरह से रूस की सस्ती प्राकृतिक गैस भी मिलती रहेगी।

चीन इस संघर्ष में किस हद तक शामिल

इसे लेकर दूसरा दृष्टिकोण ज्यादा सतर्कता की ओर इशारा करता है क्योंकि यूक्रेन की मौज़ूदा स्थिति अत्यधिक अस्थिर और अनिश्चित है और यह कह पाना बेहद मुश्किल है कि जंग भविष्य में किस दिशा में जाएगा और चीन इस संघर्ष में किस हद तक शामिल हो सकता है, बावजूद इसके कि वह इस जंग में अभी तक किसी के साथ सीधे तौर पर नहीं उतरा है।

बीजिंग इसे अच्छी तरह समझता है कि चीन से दीर्घकालिक रणनीतिक चुनौती पर पश्चिमी रणनीतिक हलकों के भीतर आम सहमति, यूरोप में मौजूदा संकट के कारण रातोंरात कम नहीं हो सकती है और पश्चिम में यह धारणा बनाई जा रही है कि यूक्रेन में रूस की आक्रामक कार्रवाई में आंशिक रूप से चीन का मौन समर्थन है।

हाल में चीन-रूस के साझा बयान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस चिंता के साथ रेखांकित किया है जैसे दोनों देश एक वैकल्पिक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था बनाने के इच्छुक हों और कई अमेरिकी सांसद, अधिकारी, प्रभाव रखने वाले थिंक टैंक प्रमुख और यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने यूक्रेन संकट में चीन की भूमिका को लेकर सार्वजनिक रूप से आलोचना की है।

उन्होंने इस संकट के लिए संयुक्त रूप से रूस-चीन को ज़िम्मेदार घोषित करने की वकालत करने के साथ ही दोनों पर दंडात्मक कार्रवाई करने की भी बात कही है। 24 फरवरी 2022 को चीनी विदेश मंत्रालय की नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, जिस दिन रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया या यूक्रेन में अपने विशेष सैन्य अभियान को अंजाम दिया, चीन के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग से अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने सवालों की बौछार कर दी।

जैसे, क्या चीन राष्ट्रपति पुतिन के यूक्रेन पर आक्रमण का समर्थन करता है? क्या रूस ने चीन से यूक्रेन पर हमला करने के लिए स्वीकृति ली थी जब कुछ सप्ताह पहले उन्होंने चीन का दौरा किया था? क्या चीन, रूस से अपने सैनिकों को वापस लेने के लिए कहेगा? क्या चीन ने यूक्रेन में शांति को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त कदम उठाए हैं?

यूक्रेन संकट को लेकर चीन की रणनीति

लेकिन यूक्रेन संकट को लेकर चीन की रणनीति, जैसा कि कुछ चीनी टिप्पणीकारों ने कहा है, वास्तव में ज़्यादा बोलना और कम करना  जैसा है, और रूस का समर्थन करते हुए एक बेहतर संतुलन बनाना है, जबकि यह भी सुनिश्चित करना है कि रूस के लिए उसका समर्थन अमेरिका और यूरोपीय संघ को ज़्यादा ना उकसाये।

चीन की अब तक की आधिकारिक प्रतिक्रिया सभी पक्षों के बीच बातचीत को प्रोत्साहित करना है, जबकि कमोबेश संघर्ष में रूस का समर्थन करते रहना है और यह उसकी रणनीति की ओर इशारा करती है। चीन के लिए सबसे ख़राब स्थिति में यह तर्क दिया जाता है कि रूस, यूरोपीय संघ और अमेरिका सभी अलग-अलग कारणों से चीन से नाराज़ हैं और सबसे अच्छी स्थिति में कहा जाता है कि रूस, यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका सभी चीन की स्थिति को समझेंगे और स्वीकार करेंगे।

इसलिए चीनी विश्लेषक अधिक से अधिक सतर्कता की वकालत करते हैं, जिसे अलग-अलग हितधारकों के ट्रेंड के रूप में समझा जाता है कि वो अपनी शिकायतें चीन पर थोपना चाहते हैं, जब उन्हें लगता है कि चीन-यूरोपीय संघ, चीन-रूस, या चीन-अमेरिका संबंध बिगड़ रहे हैं।

यूक्रेन संकट के संदर्भ में चीन की दूसरी चिंता उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के भविष्य, यूरोप के लिए चीन के आर्थिक और व्यापार मार्गों की सुरक्षा, चीन-यूरोप ट्रेन का संचालन के भविष्य को लेकर है, ख़ास तौर पर अगर यह लड़ाई लंबे समय तक चलती है।

इसके अलावा चीन को इस बात की भी चिंता है कि सैन्य संघर्ष का असर आपूर्ति श्रृंखलाओं के बाधित होने पर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर क्या होगा, वैश्विक संपत्ति के उपभोग पर क्या असर होगा, उत्पादन क्षमताओं में कमी जो चीन की पटरी पर आती अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगी।

कुल मिलाकर बीजिंग में एक बात को लेकर व्यापक सहमति है कि मौजूदा परिस्थितियों में चीन के राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए यूक्रेन संकट से होने वाले लाभ इससे होने वाले नुकसान से ज़्यादा है।

चीन का नज़रिया

उपरोक्त चर्चा की पृष्ठभूमि के तौर पर, यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि नवंबर 2021 से यूक्रेन संकट के बढ़ने के साथ, चीन-रूस की बातचीत में तेज़ी आई है। अक्टूबर 2021 में पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में पहली बार चीन-रूस संयुक्त नौसैनिक अभ्यास के बाद, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 15 दिसंबर 2021 को वीडियो बैठक की, जो इस वर्ष के दौरान अपनी तरह की दूसरी चर्चा थी, जहां उन्होंने दोनों देशों के मूल हितों की रक्षा और अंतर्राष्ट्रीय निष्पक्षता और न्याय को बनाए रखने के लिए और अधिक सहयोग करने के लिए संकल्प को दोहराया।

इससे पहले चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग और रूसी प्रधानमंत्री मिख़ाइल मिशुस्तीन ऊर्जा, कृषि और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए ज़मीन तैयार करने के लिए वर्चुअल मुलाक़ात की थी। इस वर्ष के अंत तक उच्च स्तरीय बैठकें जारी रहीं क्योंकि चीन-रूस ने निवेश सहयोगरक्षा सहयोग और प्रौद्योगिकी सहयोग को मज़बूत करने पर बल दिया है।

दोनों पक्षों ने 2021 में वैज्ञानिक और तकनीकी नवीनीकरण को कामयाब बनाने में साल 2022 में स्पोर्ट्स एक्सचेंज कार्यक्रम का वर्ष शुरू करने और बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति पुतिन के शामिल होने की पुष्टि करने पर संतोष जताया और एक-दूसरे को बधाई संदेश भी दिए गए थे।

इस वर्ष की शुरुआत में जब यूक्रेन पहले से ही एक प्रमुख फ्लैशपॉइंट बन चुका था, तो चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने 27 जनवरी को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से बात की और उन्होंने पहली बार सार्वजनिक रूप से रूस की वैध सुरक्षा चिंताओं के लिए चीनी समर्थन व्यक्त किया था।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 31 जनवरी को रूस के साथ चीन ने यूएनएससी में यूक्रेन पर अमेरिका द्वारा प्रस्तावित सार्वजनिक बैठक के साथ आगे बढ़ने के ख़िलाफ़ मतदान किया था। संयुक्त राष्ट्र में चीन के स्थायी प्रतिनिधि झांग जूं ने इस मुद्दे पर चीनी रुख़ को साफ किया जिसने न्यू मिन्स्क समझौते को अपनाने की वकालत की, जो वार्ता के माध्यम से प्रभावी और टिकाऊ यूरोपीय सुरक्षा तंत्र के साथ ही रूस की वैध सुरक्षा चिंताओं को गंभीरता से ध्यान में रखने की बात को आगे बढ़ाता है।

जैसे ही रूस-यूक्रेन सीमा पर तनाव और बढ़ा, जिनपिंग-पुतिन की मुलाक़ात 4 फरवरी 2022 को आयोजित शिखर सम्मेलन में हुई जहां दोनों पक्षों ने ताइवान और नेटो पर अन्य समझौतों के बीच एकजुटता दिखाई।

19 फरवरी को, मंत्री वांग यी ने 58वें  म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन के दौरान यूक्रेन संकट पर सवालों का उत्तर देते हुए ‘सभी पक्षों से उचित ज़िम्मेदारी लेने और यूक्रेन मुद्दे पर शांति की दिशा में प्रयास करने का आग्रह किया, जिससे ना केवल तनाव बढ़ाने, आतंक पैदा करने और यहां तक ​​कि युद्ध की धमकी देने के माहौल में कमी आए’।

आख़िरकार जब रूस ने पूर्वी यूक्रेन में दो अलग-अलग क्षेत्रों को स्वतंत्र और संप्रभु राज्यों के रूप में मान्यता दी तो चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने इस वर्ष की शुरुआत के बाद से दूसरी बार, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ अपनी टेलीफोन वार्ता में इस पर जोर डाला कि चीन सभी पक्षों के साथ मुद्दे के सही और ग़लत होने के अनुसार ही संपर्क बनाए रखेगा, उसी दिन संयुक्त राष्ट्र में चीन के स्थायी प्रतिनिधि, झांग जूं ने बातचीत और परामर्श जारी रखने की भी वकालत की और ‘एक दूसरे की चिंताओं को दूर करने के लिए उचित समाधान’ की मांग की।

यूक्रेन में अब जंग के हालात लगातार ख़राब हो रहे हैं, राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 25 फरवरी 2022 को अपने रूसी समकक्ष के साथ टेलीफोन पर बातचीत में कहा कि चीनी पक्ष यूक्रेनी पक्ष के साथ बातचीत के जरिए इस मुद्दे को हल करने में रूसी पक्ष का समर्थन करता है।

26 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र काउंसिल में अमेरिकी नेतृत्व वाले मतदान से भारत और यूएई की तरह चीन ने वोटिंग से दूरी बना ली। जबकि उसी दिन मंत्री वांग यी ने कुछ यूरोपीय अधिकारियों को बताते हुए यूक्रेन संकट पर चीन के वर्तमान नज़रिए को और साफ किया, कि वह यूक्रेन की संप्रभुता और रूस की सुरक्षा चिंताओं, दोनों का सम्मान करता है।

This article first appeared on Observer Research Foundation.

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