चित्र : गूगल मेप, भोपाल।
आज से 30 साल पहले, ‘भोपाल’ में प्राकृतिक सुंदरता जितनी थी, उतनी ’30 साल बाद’ नहीं होगी। कारण कई हैं, निवारण लोग कर रहे हैं। यदि साल 2009 से 2019 तक के आंकड़ों को देखा जाए तो 26 प्रतिशत कांक्रीट से बने जंगल खड़े कर दिए गए हैं। जनसंख्या में 5 लाख से ज्यादा लोगों की मौजूदगी दर्ज की गई। 4 लाख से ज्यादा पेड़ काटे गए। 45 प्रतिशत से ज्यादा वाहनों से प्रदूषण बढ़ा और वन क्षेत्र कम होते गए, वनों में मौजूद नीम, पीपल, महुआ, इमली, आम, जामुन और बरगद जैसे लंबी आयु के वृक्ष काट दिए गए।
आज से 4 साल पहले, यानी 2016 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलोर ने एक रिसर्च किया था। (ये उस समय के पहले का रिसर्च था) जिसमें कहा गया था कि भोपाल पिछले दो दशक के अंतराल में 66% से 22% तक सिकुड़ गया है। विशेषज्ञ कहते हैं कि 2019 तक, यह 11% होगा और 2030 तक सिर्फ 4.10% तक पहुंच सकता है।
हालांकि, मध्यप्रदेश सरकार ने पेड़ काटने के लिए गाइडलाइन भी जारी की है, इसे उन लोगों को जरूर पढ़ना चाहिए जो बेतहाशा पेड़ कटाई कर भारी मुनाफा कमाते हैं।
बहरहाल, भोपाल के वन क्षेत्र में (2009 से 2019 तक 35%) पेड़ काटे गए। शहरी क्षेत्र को 2025 तक केवल 3% वन छोड़ दिए जाएंगे और प्राकृतिक जंगल को कंक्रीट के जंगल में बदल दिया जाएगा। यह रिपोर्ट पिछले साल ग्लोबल अर्थ सोसाइटी फॉर एनवायरनमेंट एनर्जी एंड डेवलपमेंट (जी-सीड) ने जारी की थी।
इसका एक बड़ा कारण भोपाल में शुरू की गई कई विकास परियोजनाओं भी हैं। इस दौरान जितने पेड़ काटे गए, उतने रोपित नहीं किए गए। पर्यावरणविद सुभाष पांडे कहते हैं, ‘हमने भोपाल और स्मार्ट सिटी परियोजना आदि में बीआरटीएस कॉरिडोर और उनसे जुड़े पेड़ों को काटने जैसे कुछ और मापदंडों को जोड़ा और जब हमने इसका विश्लेषण किया, तो परिणाम चौंकाने वाले थे।’
रिसर्च में पाया गया कि पार्क में पेड़ों की संख्या काफी कम थी जबकि बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय परिसर और स्वर्ण जयंती पार्क में, अध्ययन अवधि के दौरान पेड़ उम्मीद से बेहतर थे। शहर में कई जगह पर अनियोजित प्रबंधन है, जिसके जिम्मेदार कई ग्रीन और विकास एजेंसियां हैं और इसको रोकने का एकमात्र विकल्प है ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जाएं।
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जी-सीड के अनुसंधान अधिकारी कहते हैं, ‘भोपाल में होशंगाबाद रोड, कालियासोत डैम तक जाने वाली सड़क (बीआरटीएस), उत्तर भोपाल के स्मार्ट सिटी क्षेत्र, हबीबगंज प्लेटफॉर्म के दोनों तरफ सड़क पर अध्ययन किया गया था। 1 हबीबगंज रेलवे स्टेशन, गैमन इंडिया परियोजना में शामिल टिन शेड के सामने का क्षेत्र, वन भवन में लिंक रोड 2 के पास का क्षेत्र और जागरण लेक सिटी यूनिवर्सिटी के पास का क्षेत्र। इन बिंदुओं के अध्ययन को जब पिछले एक दशक की गूगल इमेजरी के साथ तुलना की गई और हमने पाया कि नौ बिंदुओं पर, 225 एकड़ वन क्षेत्र या पेड़ों को पूरी तरह से हटा दिया गया था, इन स्थानों पर इन क्षेत्रों में लगभग 1 लाख पेड़ 50 साल पुराने थे, जिन्हें काट दिया गया था।’
मेट्रो रेल कंपनी द्वारा तैयार एन्वायर्नर्मेंट इम्पैक्ट असेसमेंट (ईआईए) रिपोर्ट के अनुसार, ‘मेट्रो ट्रेन के पहले चरण में करोंद चौराहा से एम्स के रूट में 30 सेमी से अधिक गोलाई के तने वाले 1199 और भदभदा से रत्नागिरि तक रूट पर 993 पेड़ हैं। यह संख्या कुल 2,192 होती है। शेष 30 पेड़ ऐसे हैं जिनका तना 30 सेमी से कम है। नियमानुसार 30 सेमी वाले एक पेड़ की एवज में 4 और इससे कम गोलाई वाले की एवज में दो पेड़ लगाना होते हैं। इस तरह कुल 8,828 पेड़ लगाने होंगे।’
मप्र मेट्रो रेल कॉर्पोरशन लिमेटिड के इस ऑफिशियल वीडियो को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं, कि इस प्रोजेक्ट में पेड़ों के लिए कितनी जगह मौजूद है, शायद बहुत कम? इकोनॉमिस्ट टाइम्स की एक खबर में कहा गया कि, भोपाल स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (BSCDCL) ने 1,800 पेड़ों को काटने के बजाय उन्हें बदलने का फैसला किया। पिछले साल की यह रिपोर्ट, और आज जब आप वहां जाएं कुछ भी नहीं बदला है, कोशिश शुरू हो सकती थीं।
बीएससीडीसीएल ने टीटी नगर में पेड़ों का सर्वेक्षण किया, इसे बदलने में निगम को 30 लाख रुपए की जरूरत बताई गई थी। इस बड़े बदलाव के लिए शिमला हिल्स और कलियासोत के साथ सड़क को चिह्नित किया है। लगभग 300 पेड़ों को सबसे पहले कलियासोत में तब्दील किए जाने का दावा किया गया।
वन विभाग के एक अधिकारी (नाम ना प्रकाशित करने की शर्त पर) कहते हैं, स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट एरिया में 70 प्रजातियों के करीब 5,700 पेड़ हैं। कई पहले ही काटे जा चुके हैं। कई काटे जा रहे हैं। जुलाई में कोर स्मार्ट डेवलपमेंट साइट के साथ सैकड़ों पेड़ों के नुकसान पर बड़े पैमाने पर रिपोर्ट की गई थी।
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