न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल/नर्मदापुरम Published by: दिनेश शर्मा Updated Wed, 14 Aug 2024 11:06 PM IST
नर्मदापुरम सहित हरदा जिले में हरित क्रांति लाने वाले जिले की इटारसी तहसील में स्थित तवा डैम (बांध) को भारत के रामसर स्थलों की सूची में जोड़ा गया है। वहीं तवा डेम मध्यप्रदेश का पांचवां रामसर साइट बन गया है।
प्रदेश के नर्मदापुरम जिले में स्थित तवा जलाशय को रामसर कंवेंशन, 1971 के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि के रूप में मान्यता दी गई है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री, भूपेंद्र यादव ने कहा कि तवा जलाशय को रामसर साइट के रूप में नामित किया गया है। तमिलनाडु के नांजारायन और काझुवेली पक्षी अभयारण्य, और मध्य प्रदेश का तवा जलाशय रामसर साइट्स में शामिल हो गए हैं। इसके साथ ही, देश में रामसर साइट्स की कुल संख्या 85 हो गई है। ये स्थल जैव विविधता और आर्द्रभूमि संरक्षण के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने ट्वीट कर सभी प्रदेशवासियों को बधाई देते हुए कहा कि यह भारत के साथ-साथ मध्य प्रदेश के लिए भी गर्व का विषय है कि तवा जलाशय को रामसर साइट घोषित किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण के अंतर्गत आर्द्रभूमि (वेटलैंड) के संरक्षण के हर संकल्प के लिए मध्यप्रदेश वासी भी जागरूक और दृढ़ संकल्पित हैं।
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अब एमपी में पांच रामसर साइट
बता दें, तवा जलाशय के साथ मध्य प्रदेश में अब चार अन्य रामसर साइट्स आर्द्रभूमि भोज वेटलैंड, यशवंत सागर झील, सिरपुर झील और सांख्य सागर झील हैं। तवा जलाशय का निर्माण तवा और देनवा नदियों के संगम पर किया गया था और यह जलाशय मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। इसका कुल डूब क्षेत्र 20,050 हेक्टेयर और जलग्रहण क्षेत्र 598,290 हेक्टेयर है। जलाशय का मुख्य उद्देश्य सिंचाई था, लेकिन बाद में इसका उपयोग बिजली उत्पादन और जलीय कृषि के लिए भी किया जाने लगा। यह जलाशय सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के अंदर स्थित है और सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान और बोरी वन्यजीव अभयारण्य की पश्चिमी सीमा बनाता है। तवा जलाशय जलीय वनस्पतियों और जीवों के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर प्रवासी पक्षियों के लिए। यह कई दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों का घर है और इसका बैकवाटर पेंटेड स्टार्क जैसे पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण नेस्टिंग साइट है।
तवा की पहचान पिकनिक स्पॉट के रूप में भी
बता दें बैतूल छिंदवाड़ा सहित जिले भर में होने वाली बारिश और नर्मदा की सहायक नदियों का पानी इसी तवा डेम में इकट्ठा होता है। यहां से नहरों के जरिए पानी को नर्मदापुरम सहित हरदा जिले तक भेजा जाता है। इस तवा डैम से लाखों हेक्टेयर की खेती की सिंचाई की जाती है। बारिश के दौरान तवा बांध में जैसे ही जलभराव होता है। यहां सैलानियों का तांता लग जाता है। हजारों की संख्या में सैलानी यहां आकर तवा डैम के गेटों से पानी निकलते हुए देखते हैं। तवा पिकनिक स्पॉट के रूप से जाना जाता है।
तवा का इतिहास
तवा डैम का निर्माण 1967 में शुरू हुआ था। इसमें कुल 13 गेट हैं, वहीं तवा नदी की लंबाई 172 किलोमीटर है। तवा नदी पर निर्मित बांध 58 मीटर ऊंचा एवं 1815 मीटर लम्बा है। बांध की अधिकतम ऊंचाई पृथ्वी की सतह से 58 मीटर है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल के दौरान 1958 में इसे प्रशासकीय स्वीकृति मिली थी, जबकि बांध का निर्माण कार्य 1967 में आरंभ किया गया था। जबकि यह बांध इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान वर्ष 1978 में बनकर तैयार हो चुका था। इस बांध के निर्माण कार्य में लगभग 172 करोड़ रुपए की लागत आई थी, वहीं बांध की संचयन क्षमता 1993 मिलियन घन मीटर है। इसकी वार्षिक अनुमानित सिंचाई क्षमता 3,32,720 हेक्टेयर है।
रामसर साइट का क्या फायदा
रामसर साइट का टैग मिलने से उस वैटलैंड पर पूरी निगरानी रखी जाती है। उसे पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए तैयार किया जाता है। रामसर साइट घोषित होने से पहले ही यह तय कर लिया जाता है कि यहां कितने तरह के पक्षियों की प्रजातियां पोषित हो रही हैं और यहां का इकोसिस्टम क्या है। इसके बाद एक तय वैश्विक मानक के तहत इसे संरक्षित किया जाता है। ऐसी जगहों पर वैसे निर्माण और अन्य गतिविधियों को रोक दिया जाता है, जिससे वेटलैंड की जैव विविधता प्रभावित होती हो।
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