चित्र : तमिलनाडु में दशहरे के दिन मां दुर्गा के रूप चामुंडेश्वरी की पूजा होती है। इस पर्व को वहां ‘गोलू’ के नाम से संबोधित किया जाता है।
दशहरा शब्द का संस्कृत में अर्थ होता है ‘सूर्य का उदय ना होना’ और विजयादशमी का अर्थ विजया + दशमाई यानी दसवें दिन जीत।किंवदंती है कि रावण वध के आखिरी दिन जब तक राम ने रावण को मार नहीं दिया तब तक सूर्य नहीं उगा था। दशहरा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि हमारे दो पड़ोसी देश बांग्लादेश और नेपाल में भी मनाया जाता है। तो वहीं, मलेशिया में दशहरे के दिन राष्ट्रीय छुट्टी भी होती है।
भारत के निचले हिस्से यानी दक्षिण में दशहरे को भव्यता के साथ 17वीं सदी में मैसूर (कर्नाटक) के राजा ने मनाया। तभी से मैसूर का दशहरा पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हुआ। यहां दशहरा उत्सव के दौरान चामुंडेश्वरी मंदिर और मैसूर महल को भव्य तरीके से सजाया जाता है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। विजयदशमी के दिन मैसूर का राज दरबार आम लोगों के लिए खोल दिया जाता है। यह उत्सव पूरे 10 यानी नवरात्रि के नौ दिन और दशहरा तक धूमधाम मनाया जाता है। 10वें दिन के उत्सव को जम्बू सवारी या अम्बराज कहा जाता है। इस पर्व के कर्नाटक में बेहद प्रसिद्ध होने के कारण साल 2008 में कर्नाटक सरकार ने इस राज्योत्सव घोषित किया।
व्यास नदी के किनारे लंका दहन
तो वहीं, मैसूर की तरह भारत के ऊपरी हिस्से यानी कुल्लू (हिमाचल प्रदेश) का दशहरा भी काफी प्रसिद्ध है। सात दिन तक चलने वाले दशहरे में विजयदशमी के दौरान 100 से ज्यादा देवी-देवताओं को सजी हुई पालकियों में बैठाया जाता है। सातवें दिन व्यास नदी के किनारे लंका दहन होता है। यहां रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला नहीं जलाया जाता, बल्कि काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के नाश के प्रतीक के तौर पर पांच पशुओं की बलि दी जाती है। तमिलनाडु में दशहरे के दिन मां दुर्गा के रूप चामुंडेश्वरी की पूजा होती है। इस पर्व को वहां ‘गोलू’ के नाम से संबोधित किया जाता है।
नवादा का ‘बर्निंग मैन फेस्टिवल’
कुछ देश ऐसे भी हैं, जहां दशहरे जैसा पर्व मनाया जाता है। उनके अपने रीति-रिवाज होते हैं। जैसे अमेरिका में नवादा का ‘बर्निंग मैन फेस्टिवल’। 8 दिन के इस पर्व में बुराई-अच्छाई की कोई जगह नहीं है। यहां सिर्फ कला की उन्मुक्त अभिव्यक्ति। हर कोई वह काम करता है, जो उसे पसंद होता है।
यहां हजारों लोग कई चीजों से अलग-अलग आकृतियां बनाकर दुनिया को दिखाते हैं। यही नहीं, लोग भी अजीब वेशभूषा में नजर आते हैं। वहां कोई नियम नहीं है कि आप खुद को कैसे अभिव्यक्त करते हैं। इसे संस्कृति के लेन-देन वाला पर्व भी कहते हैं।
यह पर्व अगस्त के अंतिम सप्ताह और सितंबर के पहले सप्ताह तक नवादा की पर्शिंग काउंटी के ब्लैक रॉक डेज़र्ट में मनाया जाता है। वहां के खुले मैदान में दूर से दिखने वाली आकर्षक आकृति लकड़ी से बनाई जाती है, जिसे आखिरी दिन जला दिया जाता है। इस तरह पर्व खत्म होता है। इसे ‘फेस्टिवल ऑफ फायर’ भी कहा जाता है। फेस्टिवल के लिए अस्थायी तौर पर ‘ब्लैक रॉक सिटी’ बनती है।
तीन दोस्तों ने की थी शुरुआत
‘द बर्निंग मैन’ पर्व की शुरुआत 1986 में कलाकार लैरी हार्वे ने मित्र जॉन ला और जैरी जेम्स के साथ सैन फ्रांसिस्को के बेकर तट पर की थी। तब 9 फीट ऊंचा लकड़ी का पुतला जलाया गया था। तब से पुतले जलाने की परंपरा है। मौजूदा वक्त में अमेरिका के अलावा दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, स्पेन, स्वीडन, इजराइल, जापान, दक्षिण कोरिया और कनाडा में भी मनाया जाता है।
चीन में रामायण का मंचन
साल 2021 में चीन की राजधानी बीजिंग में पहली बार रामलीला का आयोजन किया गया। चीन के एक सरकारी फर्म में कार्यरत अखिल बताते हैं, दशहरा से पहले नवरात्रि में ही दशहरा उत्सव मनाया गया। भारतीय दूतावास द्वारा आयोजित इस सांस्कृतिक उत्सव में बड़ी संख्या में बीजिंग स्थित राजनयिकों, चीनी और भारतीय प्रवासी सदस्यों सहित 1,800 से अधिक लोगों ने भाग लिया।
रामायण के सभी मुख्य दृश्यों को समाहित कर एक संक्षिप्त रामायण का प्रदर्शन किया गया। लगभग आधे घंटे के इस रामायण मंचन में सीता स्वयंवर, राम वनवास, रावण की शिव भक्ति, राम-हनुमान मिलन, राम-रावण युद्ध आदि अंशों को एक कहानी के रूप में पिरोकर प्रस्तुत की गई रामलीला चीनी लोगों का मन मोह लिया।
यहां दशहरा मेला आयोजित किया गया। मेला सुबह से रात तक चला, जिसमें लगभग 28 स्टॉल लगाए गए। विभिन्न भारतीय कलाकृतियों, भोजन-मिठाई, हाथ से बनी मोमबत्तियों जैसे स्टॉल पर सुबह से ही लोगों की भीड़ उमड़ी रही। इन स्टॉल्स को भारतीय राजनयिकों के परिवारों और बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासियों ने मिलकर लगाया।
भारतीय राजदूत विक्रम मिश्री की पत्नी डॉली मिश्री ने कहा कि दूतावास के स्पाउस क्लब द्वारा घर में बनाई गई मोमबत्तियों से कमाई गई धनराशि दान में दी जाएगी। मेले का मुख्य आकर्षण भरतनाट्यम, कथक, कुचिपुड़ी, राजस्थानी लोक नृत्य, तमिल लोक गीत और गरबा नृत्य था।
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