Press "Enter" to skip to content

रिपोर्ट : स्वच्छता मिशन में कितना स्वच्छ हुआ भारत?

चित्र: भारत का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर (मध्यप्रदेश)।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में जहां लाल किले के प्राचीर से स्वच्छता मिशन की शुरूआत की, तो अब प्लास्टिक मुक्त भारत, गांधी जयंती से शुरू किया जाएगा। तो क्या देश स्वच्छ हुआ? स

सरकार ने 1986 में केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम शुरू किया था। उस समय गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों द्वारा निजी पारिवारिक शौचालय के लिए उन्हें वित्तीय सहायता भी दी गई। अब वो वित्तीय सहायता उस समय लोगों के पास कितनी पहुंची। इसका आंकलन करना काफी मुश्किल है। लेकिन स्वच्छता कार्यक्रम उस समय शुरू हो चुका था। नई दिल्ली में 2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की 145 वीं जयंती पर पीएम नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की नींव रखी जिसे स्वच्छ भारत मिशन और स्वच्छता अभियान भी कहा जाता है। राष्ट्रीय स्तर के इस अभियान में शौचालय का निर्माण, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, गलियों व सड़कों की सफाई, देश के बुनियादी ढांचे को बदलना आदि शामिल है।

दावा : स्वच्छ भारत मिशन के तहत केंद्र सरकार ने एक करोड़ शौचालय बनाने की घोषणा की। पीएम मोदी का अपने पहले कार्यकाल (2014-19) में दावा किया कि अब भारत के 90 फ़ीसदी घरों में शौचालय हैं, जिनमें से तक़रीबन 40 फीसदी 2014 में नई सरकार के आने के बाद बने हैं।

हकीकत : ये सच है कि मोदी सरकार के समय घरों में शौचालय बनाने का काम तेजी से हुआ, लेकिन ये बात भी सही है कि अलग-अलग कारणों से नए बने शौचालयों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है।

खबरें कहती हैं : मीडिया में आई कुछ खबरों से खुलासा हुआ कि शौचायल का उपयोग लोग कुछ ओर ही काम में कर रहे थे। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा ही एक मामला मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले में आया। यहां के करैरा विकासखंड सिलानगर पोखर में एक आंगनवाड़ी केंद्र में बच्चों का खाना बनाने के लिए रसोई का स्थान नहीं होने पर शौचालय को ही रसोई में बदल दिया गया। तो वहीं कुछ दिन पहले ही भोपाल से बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि ‘साफ-सफाई और शौचालय साफ करने के लिए सांसद नहीं चुनी गई हूं।’

तो क्या केंद्र सरकार की स्वच्छ शहर प्रक्रिया है गलत?

पर्यावरण पर काम करने वाले संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) का कहना है कि केंद्र द्वारा स्वच्छ शहरों को चुने जाने की प्रक्रिया को बदलने की ज़रूरत है। सीएसई का कहना था कि देश के शुमार स्वच्छता सर्वेक्षण के शीर्ष तीन शहर इंदौर, भोपाल और विशाखापट्टनम कचरे को उठाकर सीधे मलबा स्थल (लैंडफिल) पर ले जाते हैं। यानी ये शहर कचरे के निपटान के जिन तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं वह पर्यावरण के अनुकूल नहीं है।

बेहतर नीति है लेकिन नहीं मिला कोई इनाम

रिपोर्ट में कहा गया कि केरल के अलाप्पुझा शहर में कचरा प्रबंधन के विकेंद्रीकृत मॉडल का इस्तेमाल होता है। उसे सर्वेक्षण में 380वां स्थान दिया गया तो इसी तरह गोवा में पणजी शहर 90वें स्थान पर है, जिसने कचरा प्रबंधन के लिए सबसे बेहतर नीति अपनाई है। अलाप्पुझा और पणजी में कोई भी लैंडफिल साइट नहीं है। साथ ही इन शहरों में कचरे से ऊर्जा पैदा करने वाले संयंत्र भी नहीं लगे हैं। इन शहरों के ज्यादातर कचरे का इस्तेमाल कम्पोस्ट खाद या फिर बायोगैस बनाने में होता है। इसके अलावा प्लास्टिक, धातु और पेपर आदि को रिसाइक्लिंग के लिए भेज दिया जाता है।

संगठन के अनुसार, ये शहर कचरे से पैसा बना रहे हैं जबकि दूसरे शहर कचरे को इकट्ठा करने और लैंडफिल तक ले जाने के लिए करोड़ो रुपये खर्च कर रहे हैं, फिर भी इन शहरों को स्वच्छता सर्वेक्षण में बहुत नीचे स्थान दिया गया है। ये बात विचार करने वाली है वैसे भोपाल देश का दूसरा स्वच्छ शहर है लेकिन यहां के हालात (गंदगी के लिहाज से) कुछ ओर ही बयां करते हैं।

क्या कहती है सरकारी रिपोर्ट

भारत के ग्रामीण इलाक़े, कितने खुले में शौच मुक्त हो पाए हैं, उस पर NARSS नाम की एक स्वतंत्र एजेंसी ने सर्वे किया है। नवंबर 2017 और मार्च 2018 के बीच किए गए इस सर्वे में 38.70% फीसदी ग्रामीण घरों में शौचालय पाए गए और ये भी बताया गया कि भारत में 93.4 फ़ीसदी लोग शौचालय का इस्तेमाल करते हैं। इस सर्वे में 6,136 गांवों के 92,000 घरों को शामिल किया गया।

स्वच्छ भारत मिशन की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि देश भर के 36 में से 27 राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश खुले में शौच मुक्त हो गए हैं, जबकि 2015-16 में केवल सिक्किम ही एकमात्र ऐसा राज्य था, जो खुले में शौच मुक्त था।

इसी साल जनवरी में प्रकाशित स्वच्छ भारत के सर्वे में भी ये बात सामने आई कि बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में लोगों की ‘आदत में बदलाव’ नहीं आ पा रहा है। सर्वे में कहा गया है कि इन राज्यों में एक चौथाई घरों में शौचालय होने के बाद भी लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं।

More from राष्ट्रीयMore posts in राष्ट्रीय »

Be First to Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *