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आजादी > 2 : काश! ऐसा होता तो ‘भारत 1857 में स्वतंत्र’ हो जाता?

1857 की क्रांति का, प्रतीकात्मक चित्र।

सन् 1857, ये वो साल था, जब एक मौका था भारत आजाद हो सकता था लेकिन भारत कई हिस्सों में बंटा हुआ था। राजे-रजबाड़े, राजा-महाराजा और पेशवाओं की सल्तनत हुआ करती थी। ऐसे में सभी को आजादी के महासंग्राम के लिए एकजुट करना और सही रणनीति से अंग्रेजों को परास्त करना भले ही गंभीर चुनौती थी लेकिन नामुंकिन नहीं था।

1857 का संग्राम 10 मई को मेरठ से शुरू हुआ। ब्रिटिश शासन में इसे बड़ी घटना के तौर पर पहचाना गया। जो इसमें शामिल थे, उन्होंने 1857 की क्रांति नाम भी दिया। दिल्ली, झांसी, कानपुर, बरेली और अवध के अलावा पूरे उत्तर भारत में यह क्रांति ज्वाला की तरह भड़क रही थी।

ब्रिटिश शासन के खिलाफ हिंदुस्तानियों में असंतोषण फैल चुका था। देश के कई हिस्सों में हिंसा की घटनाएं लगातार मौखिक तौर पर सुनी जा सकती थीं। यह क्रांति प्लासी के युद्ध के सौ साल बाद भड़की थी। अंग्रेज हैरान और आक्रमक थे। झांसी की रानी की मदद सिंधिया ने नहीं की और इसी तरह कई राज्य ऐसे थे जो अंग्रेजों के पक्ष में थे।

ये एक बड़ा कारण माना जाता है यदि ऐसा नहीं होता तो आजादी 1857 में मिल गई होती। 1857 के बाद वैसे, 18वीं सदी के अंत में उत्तरी बंगाल में संन्यासी आंदोलन और बिहार एवं बंगाल में चुनार आंदोलन हो चुका था। 19वीं सदी के मध्य में कई किसान आंदोलन हुए जिनमें मालाबार के मोपलाह किसानों और बंगाल के मुस्लिम किसानों द्वारा फराइजी आंदोलन चल रहे थे।

19वीं सदी के पहले 5 दशकों में कई जनजाति विद्रोह भी हुए जैसे मध्य प्रदेश में भीलों, बिहार में संथालों और ओडिशा में गोंड्स एवं खोंड्स जनजातियों का विद्रोह अहम था। लेकिन इन सभी आंदोलन का प्रभाव क्षेत्र बहुत सीमित था यानी ये स्थानीय प्रकृति के थे। अंग्रेजों के खिलाफ जो संगठित पहला विद्रोह भड़का वह 1857 में था। शुरू में तो यह सिपाहियों के विद्रोह के रूप में भड़का लेकिन बाद में यह क्रांति उत्तर भारत में फैल गई।

1857 विद्रोह के कारण

  • 1857 के विद्रोह का प्रमुख राजनीतिक कारण ब्रिटिश सरकार की ‘गोद निषेध प्रथा’ या ‘हड़प नीति’ थी। यह अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति थी जो ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के दिमाग की उपज थी। कंपनी के गवर्नर जनरलों ने भारतीय राज्यों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने के उद्देश्य से कई नियम बनाए।
  • किसी राजा के निःसंतान होने पर उसका राज्य ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन जाता था। राज्य हड़प नीति के कारण भारतीय राजाओं में बहुत असंतोष पैदा हुआ था। रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र को झांसी की गद्दी पर नहीं बैठने दिया गया। हड़प नीति के तहत ब्रिटिश शासन ने सतारा, नागपुर और झांसी को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया।

सामाजिक/धार्मिक कारण

  • भारत में तेजी से फैलती पश्चिमी सभ्यता को लेकर समाज के बड़े वर्ग में आक्रोश था। 1850 में ब्रिटिश सरकार ने हिंदुओं के उत्तराधिकार कानून में बदलाव कर दिया और अब किस्चन धर्म अपनाने वाला हिंदू ही अपने पूर्वजों की संपत्ति में हकदार बन सकता था।
  • मिशनरियों को पूरे भारत में धर्म परिवर्तन की छूट मिल गई थी। लोगों को लगा कि ब्रिटिश सरकार भारतीय लोगों को क्रिस्चन बनाना चाहती है। भारतीय समाज में सदियों से चली आ रही कुछ प्रथाओं जैसे सती प्रथा आदि को समाप्त करने पर लोगों के मन में असंतोष पैदा हुआ।

आर्थिक कारण

  • भारी टैक्स और राजस्व संग्रहण के कड़े नियमों के कारण किसान और जमींदार वर्गों में असंतोष था। इन सबमें से बहुत से ब्रिटिश सरकार की टैक्स मांग को पूरा करने में असक्षम थे और वे साहूकारों का कर्ज चुका नहीं पा रहे थे। आखिर में उनको अपनी पुश्तैनी जमीन से हाथ धोना पड़ता था।
  • बड़ी संख्या में सिपाहियों का इन किसानों से संबंध था और इसलिए किसानों की पीड़ा से वे भी प्रभावित हुए।
  • इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के बाद भारतीय बाजार ब्रिटेन में निर्मित उत्पादों से पट गए। इससे भारत का स्थानीय कपड़ा उद्योग खासतौर पर तबाह हो गया। भारत के हस्तशिल्प उद्योग ब्रिटेन के मशीन से बने सस्ते सामानों का मुकाबला नहीं कर पाए।
  • भारत कच्ची सामग्री का सप्लायर और ब्रिटेन में बने सामानों का उपभोक्ता बन गया। जो लोग अपनी आजीविका के लिए शाही संरक्षण पर आश्रित थे, सभी बेरोजगार हो गए। इसलिए अंग्रेजों के खिलाफ उनमें काफी गुस्सा भरा हुआ था।

सैन्य कारण

  • भारत में ब्रिटिश सेना में 87 फीसदी से ज्यादा भारतीय सैनिक थे। उनको ब्रिटिश सैनिकों की तुलना में कमतर माना जाता था। एक ही रैंक के भारतीय सिपाही को यूरोपीय सिपाही के मुकाबले कम वेतन दिया जाता था। भारतीय सिपाही को सूबेदार रैंक के ऊपर प्रोन्नति नहीं मिल सकती थी।
  • भारत में ब्रिटिशन शासन के विस्तार के बाद भारतीय सिपाहियों की स्थिति बुरी तरह प्रभावित हुई। उनको अपने घरों से काफी दूर-दूर सेवा देनी पड़ती थी। 1856 में लार्ड कैनिंग ने एक नियम जारी किया जिसके मुताबिक सैनिकों को भारत के बाहर भी सेवा देनी पड़ सकती थी।

सबसे बड़ा कारण

1857 के विद्रोह के तात्कालिक कारणों में यह अफवाह थी कि 1853 की राइफल के कारतूस की खोल पर सूअर और गाय की चर्बी लगी हुई है। यह अफवाह हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों धर्म के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचा रही थी। ये राइफलें 1853 के राइफल के जखीरे का हिस्सा थीं।

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