चित्र : रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन। सैनिक। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की।
नोट : विश्लेषण रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर यूक्रेन का नज़रिया है, रूस इस जंग को जायज़ ठहरा रहा है लेकिन यहां रूस के गढ़े हुए झूठे क़िस्सों का पर्दाफ़ाश है।
- नतालिया ब्यूटिस्का, लेखिका अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ हैं, वह कीव, यूक्रेन में रहती हैं।
रूस ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ एक अनुचित युद्ध छेड़ रखा है, पिछले कई महीनों से पश्चिमी ख़ुफ़िया एजेंसियां एक बड़े युद्ध की संभावना को लेकर चेतावनी दी जा रही थीं। बहुत से देशों ने यूक्रेन की राजधानी कीव से अपने राजनयिकों को निकालकर ल्वीव शहर पहुंचा दिया था, जो पोलैंड की सीमा के क़रीब है।
हालांकि, तब विवाद के कूटनीतिक समाधान की उम्मीद लगाए बैठे यूक्रेन के अधिकारी कह रहे थे कि घबराने की ज़रूरत नहीं है। यूक्रेन को भी इस बात पर विश्वास नहीं था कि रूस एक स्वतंत्र और संप्रभु देश के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर हमला बोल देगा। वो सभी उम्मीदें अब ग़लत साबित हो चुकी हैं।
यूक्रेन पर रूस का हमला 24 फ़रवरी को तड़के उस वक़्त शुरू हुआ जब यूक्रेन की जनता सुकून से सो रही थी। इस दौरान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन को निरस्त्र करने और राष्ट्र के तौर पर उसका अस्तित्व खत्म करने का अभियान शुरू करने की घोषणा कर दी।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन की इस घोषणा के साथ ही यूक्रेन के छोटे-बड़े तमाम शहरों पर रूसी रॉकेट बरसने लगे थे। उनमें से कई रॉकेट, यूक्रेन के पड़ोसी देश बेलारूस से दाग़े गए थे। हालांकि, इससे पहले बेलारूस के राष्ट्रपति लुकाशेंको ने यूक्रेन के अधिकारियों को बार-बार ये भरोसा दिया था कि उनकी सीमा के भीतर से यूक्रेन पर हमला अस्वीकार्य है, ज़ाहिर है कि ये वादे ग़लत साबित हो चुके हैं।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के रूस दौरे के फ़ौरन बाद पुतिन ने यूक्रेन के दोनेत्स्क और लुहान्स्क के उन क्षेत्रों को स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर मान्यता देने का एलान कर दिया था, जिन पर रूस 2014 से ही क़ब्ज़ा किए हुए है। इस क़दम से ही ज़ाहिर था कि यूरोप की कूटनीति, पुतिन को संतुष्ट कर पाने में नाकाम रही है।
रूस ने अपने इन क़दमों को ‘डोनबास क्षेत्र में शांति स्थापित करने की ख़्वाहिश’ बताया था। पुतिन के मुताबिक़ ये दोनों इलाक़े ‘नरसंहार’ का सामना कर रहे थे। ये ऐसा दुष्प्रचार था जिसे रूसी मीडिया बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा था।
इस दावे के समर्थन में रूस के क़ब्ज़े वाले इलाक़ों से महिलाओं और बच्चों को निकालकर रूस के रोस्तोव-ऑन डॉन क्षेत्र में ले जाया गया था। इस क़दम के बाद रूस को यूक्रेन पर हमला करने का एक बहाना मिल गया था। इसके अलावा, रूस और लुहान्स्क व दोनेत्स्क की कठपुतली सरकारों ने यूक्रेन के क़ब्ज़े वाले कुछ इलाक़ों को भी दोनेत्स्क और लुहान्स्क का बताकर उस पर अपना दावा ठोक दिया था।
कई दिनों की भयंकर लड़ाई, रॉकेट के ज़बरदस्त हमलों, उत्तर, पूरब और दक्षिण से बढ़ रही रूसी सेना की प्रगति देखकर ये निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि रूस का तेज़ी से यूक्रेन पर क़ब्ज़ा करने की कोशिशें नाकाम हो गई हैं।
तेज़ी से कब्ज़ा करने में नाक़ाम
ज़ाहिर है कि यूक्रेन पर तेज़ी से क़ब्ज़ा करने में नाकाम रहने पर अगला क़दम उठाया गया है और अब पुतिन परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की धमकी दे रहे हैं। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने मध्य यूरोप में एक ऐसे राष्ट्र के ख़िलाफ़ परमाणु युद्ध की संभावना को स्पष्ट कर दिया है, जिसने वर्ष 1994 में ख़ुद ही दुनिया में परमाणु हथियारों का अपना तीसरा सबसे बड़ा ज़ख़ीरा नष्ट कर दिया।
उस वक़्त रूस उन पांच देशों में शामिल था, जिन्होंने अपने परमाणु हथियार नष्ट करने के एवज़ में यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की गारंटी दी थी। हालांकि, रूस ने ही इस गारंटी का तब उल्लंघन किया था, जब वर्ष 2014 में उसने यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के देश छोड़कर भागने से पैदा हुए संस्थागत संकट का फ़ायदा उठाकर, यूक्रेन के क्रीमिया और डोनबास क्षेत्र के एक हिस्से पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया था।
अब रूस, यूक्रेन पर अपने ताज़ा आक्रमण को नेटो से पैदा हुए ख़तरे का जवाब कहकर इसे जायज़ ठहराने की कोशिश कर रहा है। रूसी सरकार लगातार इस झूठ को प्रचारित कर रही है कि अमेरिका, यूक्रेन को लगातार नेटो में शामिल करने की कोशिश कर रहा है, जिससे कि वो रूस के लिए ख़तरा पैदा कर सके। यहां ये बात ध्यान देने लायक़ है कि नेटो देशों, जिनमें फ्रांस और जर्मनी ने ख़ास तौर पर यूक्रेन के नेटो का सदस्य बनने की इच्छा पर लगाम लगाई, ताकि रूस के साथ उनके रिश्ते न ख़राब हों, और वर्ष 2014 में रूस की कार्रवाई के बावजूद, यूक्रेन को नेटो का सदस्य बनने का साफ़ संकेत हासिल करने में कामयाबी नहीं मिल सकी।
अपने ऊपर मंडरा रहे ख़तरों को लेकर रूस के बड़े-बड़े दावे अजीब लगते हैं, क्योंकि वो पिछले आठ साल से यूक्रेन की सीमा के भीतर जंग छेड़े हुए है। इसके अलावा, इस दौरान यूक्रेन ने सैन्य ताक़त से अपने इलाक़े रूस के क़ब्ज़े से छुड़ाने की कोशिश भी नहीं की है।
यूक्रेन का समाज इस संघर्ष का कूटनीतिक हल निकालने के विकल्प को तरज़ीह दे रहा था। यूक्रेन की जनता ये उम्मीद भी कर रही थी कि आर्थिक तरक़्क़ी के लालच के चलते रूस के क़ब्ज़े वाले दोनेत्स्क और लुहान्स्क के ग़रीब इलाक़े ख़ुद ही शांतिपूर्ण तरीक़े से दोबारा यूक्रेन का हिस्सा बनने की प्रक्रिया शुरू करेंगे।
इसी वजह से यूक्रेन के अधिकारी, इन क्षेत्रों के साथ संपर्क बनाए रखने में जुटे रहे थे, और वहां के लोगों को पेंशन देना भी जारी रखा था, जबकि ये ज़िम्मेदारी उस इलाक़े पर क़ाबिज़ देश की होनी चाहिए थी।
यूक्रेन पर रूस का मौजूदा हमला अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का ख़ुला मख़ौल उड़ाने वाला है। रूस एक स्वतंत्र देश में सत्ता परिवर्तन की मांग कर रहा है और वो इस बात की अनदेखी कर रहा है कि यूक्रेन की मौजूदा सरकार लोकतांत्रिक तरीक़े से चुनी गई है।
इस वक़्त रूसी मिसाइलों का हमला झेल रहे यूक्रेन के अलावा रूस की मिसाइलों के निशाने पर पूर्व वॉर्सा पैक्ट के देश भी हैं। इस समय यूक्रेन के जो हालात हैं, उन्हें देखकर ऐसा लग रहा है कि रूस, एक देश के तौर पर यूक्रेन का अस्तित्व मिटा डालने पर आमादा है।
व्लादिमीर पुतिन अपने उस इरादे पर पर्दा डालने की कोशिश भी नहीं करते हैं, क्योंकि वो पूर्व सोवियत संघ को दोबारा खड़ा करना चाहते हैं और इसके साथ वो वार्सा पैक्ट को भी ज़िंदा करना चाहते हैं। अपने इस मक़सद को हासिल करने के लिए पुतिन ने 4.2 करोड़ लोगो को बंधक बना लिया है, और उनसे रूसी प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा बन जाने की मांग कर रहे है।
हालांकि, जनवरी 2022 के सामाजिक आंकड़े के मुताबिक़, यूक्रेन की 67.1 फ़ीसद आबादी यूक्रेन के यूरोपीय संघ का सदस्य बनने का समर्थन करती है। जबकि, 59.2 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि उनका देश नेटो का सदस्य बन जाए।
यूक्रेन पर हमले की रूस को अप्रत्याशित रूप से भारी क़ीमत चुकानी पड़ रही है। पुतिन की ग़लती ये थी कि उन्होंने ये अंदाज़ा नहीं लगाया था कि रूस के हमले का यूक्रेन की जनता इतने बड़े पैमाने पर विरोध करेगी।
रूस की सरकार को लगा था कि वो रिहाइशी मुहल्लों, बच्चों और बड़ों के स्कूलों पर बमबारी करके और शहरों व गांवों को बर्बाद करके अपने हमले से यूक्रेन के नागरिकों को डरा देगी और उनके बीच घबराहट फैल जाएगी।
रूस की सेना ने पहले ही यूक्रेन में कई तेल और गैस के ठिकानों और परमाणु कचरे के भंडारों को नष्ट कर पर्यावरण की तबाही पैदा कर डाली है। सबसे ख़तरनाक बात तो ये हुई है कि रूसी सेना ने चेर्नोबिल परमाणु प्लांट (Chernobyl nuclear power plant) और ज़ेपोरेशिया स्थित यूरोप के सबसे बड़े एटमी बिजली प्लांट पर क़ब्ज़ा कर लिया है।
ज़ेपोरशिया एटमी प्लांट पर कब्ज़े के दौरान हुई गोलीबारी से वहां की एक इमारत में आग लग गई थी, राहत की बात यही है कि इससे प्लांट के किसी रिएक्टर को कई नुक़सान नहीं पहुंचा। वहीं रूस, चेर्नोबिल के न्यूक्लियर प्लांट को भी उड़ाने की धमकी दे रहा है।
रूस ये धमकी देते हुए भूल गया है कि, 1986 में चेर्नोबिल के प्लांट में हुए विस्फोट के बाद यूक्रेन और बेलारूस के बहुत बड़े इलाक़े रहने लायक नहीं बचे थे, और रूस के बड़े इलाक़े को भी विकिरण से भारी नुक़सान पहुंचा था।
इस बीच यूक्रेन और रूस के प्रतिनिधिमंडलों के बीच दो दौर की बातचीत हो चुकी है। इस दौरान युद्ध विराम और संघर्ष के बीच का रास्ता निकालने की कोशिशें की जा रही थीं। ज़ाहिर है, दोनों देशों की बातचीत से फ़िलहाल युद्ध रुकने की कोई संभावना नहीं दिख रही है। जब यूक्रेन और रूस के बीच पहले दौर की बातचीत हो रही थी, तब भी राजधानी कीव के उपनगरीय इलाक़ों पर मिसाइलों से हमला किया जा रहा था।
धमकी देना और सैन्य दबाव बनाना रूस की पुरानी चालें हैं। ख़ास तौर से तब से, जब से पुतिन ने मैक्रों के साथ बातचीत के दौरान अपनी सबसे कड़ी शर्तों में किसी भी तरह की रियायत देने से इंकार कर दिया था। पुतिन की तमाम मांगों में क्रीमिया पर रूस की संप्रभुता को स्वीकार करना, यूक्रेन का विसैन्यीकरण और सरकार की नाज़ियों से मुक्ति और यूक्रेन की निष्पक्षता की गारंटी शामिल हैं।
कड़े प्रतिबंध, जिनके चलते रूस की आर्थिक और वित्तीय व्यवस्था पहले ही प्रभावित हो रही है, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच रूस के लगभग अलग पड़ जाने से पुतिन के विकल्प बहुत सीमित रह गए हैं। उन्हें अब रूस की जनता और कुलीन वर्ग को ये समझाना होगा कि आख़िर उन्होंने यूक्रेन पर हमले की ये घातक चाल क्यों चली है। दांव पर बहुत कुछ लगा है, इसलिए रूस के राष्ट्रपति बेहद ताक़तवर सैन्य दबाव से अपनी कुछ शर्तें मनवाने की कोशिश करेंगे।
अब तक सैंकड़ों रूसी सैनिक शहीद
अब तक, युद्ध में रूसी सेना कोई बहुत बड़ी कामयाबी हासिल कर पाने में नाकाम रही है। न तो वो राजधानी कीव पर क़ब्ज़ा कर पाई है और न ही यूक्रेन के किसी और बड़े शहर पर, रूस की सेना के उलट यूक्रेन की सेना अपने वतन की हिफ़ाज़त को लेकर बेहद मज़बूत इरादे रखती है।
यूक्रेन के सूत्रों के मुताबिक़, युद्ध शुरू होने के दो दिनों के भीतर ही क़रीब एक लाख लोग रिज़र्व सेना का हिस्सा बन गए थे। वहीं, छह दिनों के युद्ध में ही रूस की सेना के 5710 जवान शहीद हो गए और उनके काफ़ी सैन्य साज़-ओ-सामान भी तबाह हो गए। सैन्य स्तर पर विरोध के अलावा रूसी सैनिकों को आम यूक्रेनी नागरिकों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। ऐसे बहुत से मामले देखने को मिले हैं, जब गांवों और क़स्बों के निहत्थे लोग रूसी टैंकों, बख़्तरबंद गाड़ियों और सैनिकों के सामने सीना तानकर खड़े हो गए।
इस वक़्त के हालात देखकर ये कहना बहुत मुश्किल है कि यह युद्ध किस अंजाम पर ख़त्म होगा और इसका क्या नतीजा निकलेगा। यूक्रेन का विरोध मोटे तौर पर अपने नागरिकों और सैनिकों के हौसले पर टिका हुआ है। हालांकि, रूस के हमले को जायज़ ठहरना असंभव है, फिर चाहे इसके हक़ में कितने भी तर्क क्यों न दिए जाएं।
This article first appeared on Observer Research Foundation.
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