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मुद्दा : तो क्या नोटबंदी से बिगड़ रहे हैं देश के आर्थिक हालात

  • अरुण पांडे। लेखक पत्रकार है। वह आर्थिक विषयों के जानकार हैं।

न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम यानी न इधर के हुए न उधर के हुए, करीब तीन साल में नोटबंदी से कुछ यही हासिल हुआ है। न जीडीपी ग्रोथ बढ़ी, न जाली नोट छपने का गोरखधंधा थमा और ना ही हम कैशलेस इकोनॉमी बनने का लक्ष्य हासिल कर पाए। हाल ये है कि ताजा जीडीपी ग्रोथ 6 साल में सबसे खस्ता हाल में है। नए नोटों में नकली नोटों की तादाद में 100 परसेंट से ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है और नकदी करीब 6.5 लाख करोड़ बढ़ गई है।

8 नवंबर,2016 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषाण याद है ना, यह वही भाषण था जिसमें पीएम मोदी ने एक झटके में पांच सौ और हजार के नोट बंद करने का ऐलान किया था। उस वक्त उन्होंने एलान किया था कि सिस्टम में फैले नकली नोट खत्म करने के लिए, जीडीपी ग्रोथ बढ़ाने और इकोनॉमी को कैशलेस बनाने के लिए ये सब कर रहे हैं ताकि कालेधन पर लगाम लग सके।

अब नतीजा आपके सामने है नोटबंदी की वजह से एक बार इकोनॉमी की कमर ऐसी टूटी की हालात सुधर ही नहीं रहे हैं। 2015-16 में जो जीडीपी ग्रोथ करीब 8 प्रतिशत थी, वो घटते-घटते वित्तीय साल 2019 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में घटकर सिर्फ 5 प्रतिशत रह गई। मैन्युफैक्चरिंग यानी फैक्ट्री की ग्रोथ सिर्फ आधे प्रतिशत रह गई। मारुति, महिंद्रा, ह्युंदई सबने अपना प्रोडक्शन घटा दिया, क्यों ऑटो सेक्टर की ग्रोथ 20 साल के सबसे निचले स्तर पर है। कहां तो वादा था नोटबंदी से नक्सलियों, काला धन, रखने वालों, नकली और जाली नोट तैयार करने वालों की कमर टूट जाएगी, हालत उलट हो गए हैं।

वर्तमान में नोटबंदी ने जीडीपी ग्रोथ और कैशलेस इकोनॉमी की ही कमर तोड़ डाली। नोटबंदी का विनाशकारी असर, जीडीपी स्वाहा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि नोटबंदी इकोनॉमी को तबाह करने वाली ऐतिहासिक भूल साबित होगी। इससे जीडीपी 2 प्रतिशत तक गिरेगी।

नोटबंदी के पहले 8 प्रतिशत की रफ्तार से दौड़ रही जीडीपी ग्रोथ अब अप्रैल-जून में 5 प्रतिशत तक आ गई यानी 6 साल में सबसे खराब। नोटबंदी के वक्त एक वादा ये भी था कि सिस्टम में करोड़ों रुपए के जाली नोट एक झटके में खत्म हो जाएंगे। लेकिन रिज़र्व बैंक की ताजा सालाना रिपोर्ट तो कहती है बंद होने के बजाए जाली नोट साल दर साल बढ़ने लगे हैं। 500 के नए नोट पिछले साल के 121 प्रतिशत बढ़ गए हैं। सेफ्टी फीचर के साथ दावा किया गया था कि 2000 रुपए के नए नोट के जाली नोट तैयार करना बहुत मुश्किल होगा, लेकिन उसमें जाली नोटों की तादाद करीब 22 प्रतिशत बढ़ गई है।

हैरानी की बात है कि जालसाज धड़ल्ले से 2000 रुपए के नोट की तरह पहली बार उतारे गए 200 रुपए के नोट के नकली नोट तैयार कर पा रहे हैं। रिपोर्ट खास तौर पर टेंशन इसलिए बढ़ा रही है क्यों जाली नोट इस सफाई से बनाए जा रहे हैं इसमें से सिर्फ 94 प्रतिशत ही बैंकों की पकड़ में आ पाते हैं और करीब 6 प्रतिशत तो रिज़र्व बैंक तक पहुंच जाते हैं।

नोटबंदी से कैशलेस इकोनॉमी का दावा भी फैल

नोटबंदी पर सरकार का दूसरा दावा भी बुरी तरह फेल हो गया है। नोटबंदी का बड़ा लक्ष्य डिजिटल भुगतानों को बढ़ावा देना और नकदी का लेन-देन कम करना बताया गया था। लेकिन नवंबर 2016 में करीब पौने 15 लाख करोड़ रुपए की नकदी अब नोटबंदी के दो साल 9 महीने के बाद 21 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा पहुंच गई है। नोटबंदी के बाद मन की बात में 27 नवंबर, 2016 को नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी को ‘कैशलेस इकोनॉमी’ के लिए जरूरी बताया था, लेकिन कैश इतना बढ़ गया है मतलब कैशलेस इकोनॉमी का दावा भी फैल हो गया है।

टैक्स वसूली लक्ष्य से बहुत दूर

टैक्स वसूली में कमी की इकोनॉमी का बुरा हाल बयां करती है यह जीएसटी कलेक्शन के मोर्चे पर बुरी बर है। गौर करें तो 2018-19 में लक्ष्य से 1,62,300 करोड़ रुपए कम वसूली हुई है यानी इनकम टैक्स वसूली 56,300 करोड़ रुपए कम हुई है।

हैरान करने वाली बात है कि प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर वित्तमंत्री तक सभी यही कह रहे हैं कि मामूली संकट है जल्द ठीक हो जाएगा। वादा 5 साल में 5 ट्रिलियन की इकोनॉमी बनाने का है लेकिन कैसे? सरकार में बैठे आलाकमान को समझ नहीं आ रहा है कि ये सब कैसे होगा। बजट के बाद शेयर बाजार में भारी गिरावट आ चुकी है, विदेशी निवेशक पैसा निकल रहे हैं, रुपया रिकॉर्ड स्तर के निचले पायदान पर है। कुल मिलाकर इकोनॉमी की तस्वीर डराने वाली है। 2016 में रफ्तार वाली इकोनॉमी को नोटबंदी करके जिस तरह ब्रेक लगाया गया वो दोबारा स्पीड पकड़ ही नहीं पा रही है।

यदि कम शब्दों में कहा जाए तो नोटबंदी हर तरह से भारत के लिए विनाशकारी और ऐतिहासिक भूल साबित हुआ है। जाली नोट के चलन में बेतहाशा बृद्धि, कैश फ्लो का बढ़ जाना और जीडीपी का गर्त में चले जाना इससे ज्यादा और क्या प्रमाण चाहिए।

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