शास्त्रीय संगीत हिंदुस्तान की आत्मा है और इस आत्मा के अमिट हस्ताक्षर थे पंडित जसराज जो अब हमारे बीच नहीं हैं। शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में वो बेगम अख़्तर की गायकी के कारण आए, उनकी गायकी पंडित जी के लिए प्रेरणा थी। बेगम अख्त़र जिनका मूल नाम अख़्तरी बाई फ़ैज़ाबादी था वो भारत की प्रसिद्ध गायिका थीं, जिन्हें दादरा, ठुमरी और गजल में महारत हासिल थी, उन्हें उस दौर में मल्लिका-ए-ग़ज़ल के खिताब से नवाजा गया था।
बेगम अख्तर की गजल गायकी के पंडित जी फनकार थे। समाचार एजेंसी भाषा को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ‘उस समय मेरी उम्र 14 साल की थी, जब मैनें शास्त्रीय गायन सीखना शुरू किया। मैनें अपने बड़े भाई और शास्त्रीय गायक पंडित मणिराम के साथ तबला वादक के तौर पर शुरूआत की। लता मंगेशकर मेरी पसंदीदा गायिका हैं। जब में छोटा था तो हैदराबाद में हर रोज स्कूल आते-जाते समय बेगम अख़्तर की गाई वो गजल जिसके बोल ‘दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे‘ मेरी सबसे पसंदीदा गजल रही है।’
कविता और शास्त्रीय संगीत में रुचि रखने वाले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पंडित जसराज के प्रशंसक थे, उन्होंने रसराज (रस के राजा) की उपाधि से सम्मानित किया। इस बात का जिक्र पंडित जसराज ने अपनी आत्मकथा ‘रसराज: पंडित जसराज’ के विमाचन के दौरान खुद कही थी। आत्मकथा की लेखिका सुनीता बुद्धिराजा ने उस समय कहा था कि ‘संतूर’ वादक पंडित शिवकुमार शर्मा ने उन्हें बताया था कि पंडित जसराज को अपनी उपाधियों और सम्मान में से सबसे ज्यादा प्रिय ‘रसराज’ की उपाधि थी।
पंडित जसराज एक विलक्षण गायक थे। जब अधिकांश गायिकी ध्रुपद, ख्याल और ठुमरी आधारित रहती आई है, ऐसे में पण्डित जी ने वैष्णवता की राह चुनी। उन्होंने पारम्परिक ख्याल गायन की परंपरा में धार्मिक और आध्यात्मिक बन्दिशों को देवी-स्तुतियां और शिव-आराधना के रूप में प्रस्तुत किया। वे वैष्णव परम्परा की पुष्टिमार्गी शाखा की अप्रतिम आवाज़ थे।
गांव पीली मंदौरी, हिसार (हरियाणा) में 28 जनवरी, 1930 को जन्में पंडित जसराज हरियाणा के मेवाती घराने से ताल्लुक रखते हैं। पिता मोतीराम और मां कृष्णा बाई की लिखी बंदिशों को उन्होंने सुमधुर कंठ से गाया। उन्हें शास्त्रीय संगीत की तालीम बड़े भाई पंडित मनीराम से मिली।
जिस मेवाती घराने से वो संबंध रखते हैं उस घराने की नींव उस्ताद घग्गे नजीर खां ने रखी थी। पंडित जसराज के दादा गुरु, पंडित नत्थूलाल और पंडित चिमनलाल, उस्ताद घग्गे नज़ीर खां के पट्ट शिष्य थे। ये दोनों उनके पिता मोतीराम के नाना शिवकुमार की संतान थे। पं.जसराज के पिता मोतीराम ने अपने मामा पंडित चिमनलाल जी से संगीत की शिक्षा ली थी।
पंडित जी अष्टछाप के कवियों को गाते थे, ‘नवधा-भक्ति’ में डूबी हुई ‘आठों-याम’ सेवा के उपासक थे, जिसमें शरणागति की पुकार लगाना उनको काफी प्रिय था। वे रागदारी में भी कठिन रागों, जैसे कि गौरी, आसा मांड, अडाना, विलासखानी तोड़ी, अबीरी तोड़ी, हिण्डोल बसन्त आदि को गाते हुए भी पूरी तरह भक्ति के ताने-बाने में प्रस्तुत करते थे।
पंडित जी को भक्ति गायन के लिए आध्यात्मिक गुरु, साणन्द (गुजरात) के महाराजा जयवन्त सिंह जी वाघेला ने प्रेरित किया।उनकी लिखी ऐसी कई बंदिशें जसराज जी ने गाई हैं, जो दुर्गा स्तुति, राम और कृष्ण महिमा का अनुपम उदाहरण हैं।
पंडित जसराज के परिवार में उनकी पत्नी मधु जसराज जोकि अभिनेत्री संध्या शांताराम की पुत्री हैं, उन्होंने 19 मार्च, 1962 में पंडित जी से विवाह किया। वी. शांताराम उनकी पत्नी के पिता थे, और उनके पास एक हाथी था। ‘नवरंग’ फिल्म में एक गाना ‘अरे जा रे अरे नटखट’ जिस हाथी पर फिल्माया गया था। मधुरा-जसराज के विवाह पर मेहमानों का स्वागत करने के लिए सज-धज कर वह हाथी खड़ा था। पंडित जसराज के एक पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा हैं।
हिंदी सिनेमा में उनका ज्यादा योगदान नहीं है लेकिन जो है वो काफी प्रभावशाली है। पंडित जसराज ने वी. शांताराम निर्देशित फिल्म ‘लड़की शहयाद्री की’ में पहला गीत ‘वंदना करो‘ गया। यह फिल्म 1966 में आई। यह गीत एक भजन था। जबकि संगीत वसंत देसाई ने दिया था। इसके अलावा 1973 में आई फिल्म ‘बीरबल माय ब्रदर’ के लिए वे भीमसेन जोशी के साथ एक जुगलबंदी में शामिल हुए। नए दौर के सिनेमा में उन्होंने निर्देशक विक्रम भट्ट की फिल्म 1920 ‘वादा तुमसे है वादा‘ गाया। इस गाने के संगीतकार अदनान सामी हैं।
पंडित जसराज अपने पीछे पूरी विरासत छोड़ गए हैं। उनके प्रमुख शिष्यों की सूची काफ़ी लंबी और प्रभावशाली है। कुछ प्रमुख नामों में पंडित संजीव अभ्यंकर, तृप्ति मुखर्जी, कला रामनाथ, पंडित रतन मोहन शर्मा, शारंगदेव पंडित, दुर्गा जसराज, शशांक सुब्रमण्यम, सौगात बनर्जी, अरविंद थत्ते, सुमन घोष, अंकिता जोशी, गिरीश वजलवाड, हसमुख चावड़ा, कविता कृष्णमूर्ति, लोकेश आनंद, सुरेश पतकी, विजय साठे हैं।
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