प्रतीकात्मक चित्र।
भारत में नए वेरिएंट ओमीक्रोन और कोरोना वायरस का खतरा हर दिन तेजी से बढ़ रहा है। चुनाव आयोग ने 5 राज्यों में चुनाव की तारीख भी घोषित कर दी गई है। शादियों में और शवदाह के दौराने कितने लोग पहुंच सकते हैं यह भी सरकार ने तय कर दिया है। धार्मिक कार्यक्रमों, नेताओं की रैली पर अंकुश नहीं लागू हुआ है। यहां लोग बिना मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते हुए खुले तौर पर देखे जा सकते हैं।
मध्य प्रदेश में तीसरी लहर आ चुकी है लेकिन राज्य सरकार पूरी तरह से बेखबर है। एक तरफ टेस्टिंग के बाद गणितीय आंकड़े जारी किए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकार की लापरवाही के चलते कोविड-19 के नियमों को अनदेखा किया जा रहा है।
एक दैनिक अखबार को दिए साक्षात्कार में आईआईटी कानपुर के प्रो. मनिंद्र अग्रवाल दावा करते हैं, ‘जनवरी के आखिरी हफ्ते में प्रदेश में कोरोना केस तेजी से बढ़ेंगे। यह संख्या 25 से 30 जनवरी के बीच 19 से 20 हजार हो जाएगी। कोरोना का पीक 1 फरवरी को आ जाएगा। प्रदेश में एक दिन में अधिकतम 38 हजार केस आ सकते हैं। इसके बाद कोरोना की थर्ड वेव डाउन होने लगेगी। तीसरी लहर को लेकर यह अनुमान सही साबित होता है, तो होली का त्योहार (18 मार्च) आते-आते वायरस खत्म होने की उम्मीद है।’
हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोरोना को लेकर 5 दिसंबर को आपात बैठक बुलाई थी। इसमें प्रो. अग्रवाल की रिपोर्ट के आधार पर तैयारी रखने के निर्देश अफसरों को भी दिए गए थे। लेकिन इसका सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है, प्रदेश में कोरोना के मामले तेजी से आने की एक वजह यह भी है।
कोरोना की तीसरी लहर कितनी घातक हो सकती है इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता लेकिन एहतिहात के तौर पर सतर्कता बरती जा सकती है। मौजूदा समय में, जब कोरोना की तीसरी लहर का प्रकोप देशभर में है, तब 5 राज्यों में चुनाव भी होने हैं। ऐसे में कोरोना को लेकर गंभीरता बेहद ज्यादा गंभीर है। भारत में ज्यादातर लोगों को कोविड के दोनों डोज लग चुके हैं।
ताकि लॉकडाउन की जरूरत ना हो
मिशिगन यूनिवर्सिटी में बायोस्टैटिस्टिक्स की प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी, पिछले दो साल से भारत के कोविड -19 महामारी पर नज़र रख रही हैं हैं। वो बताती हैं, उन्होंने द टेलीग्राफ को बताया, भारत के लिए गंभीरता और मृत्यु दर का अनुमान लगाना मुश्किल है क्योंकि हमारे पास अस्पताल में भर्ती होने के सटीक आंकड़े नहीं हैं। यदि हम सार्वजनिक स्वास्थ्य के निरंतर उपायों का जल्द से जल्द पालन करते हैं, तो हम लॉकडाउन से बच सकते हैं।
मुखर्जी कहती हैं, साल 2020 में दूसरी लहर के दौरान जो हुआ उससे नकारा नहीं जा सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर सही डेटा कभी भी जारी नहीं किया गया और भारत में समूची आबादी को दोनो टीके भी नहीं लगाए गए हैं। और यहां बात बूस्टर डोज देने की हो रही है। भारत, दुनिया की आबादी का सातवां हिस्सा है और विज्ञान समुदाय को भारत से टीकाकरण के बाद के आंकड़ों को जानने की जरूरत है। हमें एक एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य डेटा प्रणाली की आवश्यकता है जहां नीति निर्माताओं को वास्तविक समय मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए परीक्षण, टीकाकरण, अनुक्रमण और नैदानिक डेटा को जोड़ा और विश्लेषण किया जा सके।
डेल्टा संस्करण के गुणों की विशेषता वाले अधिकांश रिपोर्ट्स यूके से आई हैं, अमुमन उनके डेटा और विश्लेषणात्मक बुनियादी ढांचे के कारण, स्पष्ट डेटा-संचालित संदेश नीतियों का समर्थन करने और नीति निर्माताओं को विश्वसनीयता प्रदान करने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, क्या रात्रि कर्फ्यू या उड़ान में कटौती वास्तव में प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय हैं? हमारे पास अब दो साल का डेटा है, उम्मीद है भारत में कोविड की स्थिति को आने वाले समय में नियंत्रित करने में इससे काफी सफलता मिलेगी।
चुनाव आयोग ने आलोचनाओं से ली सीख
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान मतदाताओं को वोट डालने की अनुमति देने से पहले भारतीय चुनाव आयोग, कोरोना वैक्सीनकी दोनों डोज यानि पूर्ण टीकाकरण के सबूत को अनिवार्य बनाने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि टीकाकरण नहीं कराने वाले मतदाता वायरस न फैलाएं। इसके अलावा सभी मतदाताओं के लिए मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना अनिवार्य रहेगा।
बीते साल पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान नियमों में कोताही बरतने के कारण चुनाव आयोग की काफी आलोचनाएं की गई थीं, जिसके चलते चुनाव आयोग ने तय किया है कि यदि किसी रैली में कोरोना नियमों का उल्लंघन होता है तो उसे तत्काल रोक दिया जाएगा। इसके अलावा संबंधित अधिकारियों को लापरवाही के आरोपों में सस्पेंड किया जाएगा।
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