विस्तार मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के कूनो नेशनल पार्क में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को चीतों को छोड़ेंगे। नामीबिया से आ रहे 8 चीतों की सुरक्षा के लिए 90 गांव के 460 चीता मित्र बनाए गए है। इसमें एक बड़ा नाम शामिल है 71 वर्षीय रमेश सिकरवार का। रमेश सिकरवार पहले डकैत थे। जिनकी बंदूक की गोली की आवाज से कभी चंबल का बिहड़ थर्राता था। उन्होंने 1984 में सरेंडर कर दिया था। अब 38 साल बाद उन्होंने चीतों के लिए दोबारा बंदूक उठा ली है। अब वह चीतों को लेकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश सरकार ने चीतों की सुरक्षा के लिए आसपास के गांव के लोगों को जागरूक करने के लिए चीता मित्र बनाए है। सिकरवार कहते है कि चीतों को कुछ नहीं होने देंगे। दरअसल रमेश सिकरवार का रूतबा आज भी पहले जैसा है। आसपास के गांव के लोग आज भी उनकी बात मानते है। इसलिए सरकार ने उनको चीता मित्र बनाया है। ताकि वह लोगों को चीतों को लेकर जागरूक करें और उनको कोई हानी नहीं पहुंचाए। रमेश सिकरवार आसपास के गांव घूमकर लोगों को जागरूक कर रहे है। वह लोगों को बता रहे है कि चीता लोगों को नुकसान पहुंचाने वाला जानवर नहीं है। इसलिए उससे डरें नहीं और ना ही उसे नुकसान पहुंचाए।
ऐसे बने सिकरवार डकैत
रमेश सिकरवार अपने चाचा के कारण डकैत बने थे। उन्होंने बताया कि उनके चाचा ने उनकी पैतृक जमीन को हड़प लिया था। पिता को जमीन वापस नहीं की। बड़े होने पर उन्होंने चाचा से जमीन वापस करने का अनुरोध किया, लेकिन चाचा ने उनकी जमीन वापस नहीं की। जिसके बाद उन्होंने 1974 में अपने चाचा की हत्या कर दी और बिहड़ में भाग गए।
1984 में किया था सरेंडर
डकैत रमेश सिकरवार ने 1994 में 18 शर्तों के साथ सरेंडर कर दिया था। हालांकि वह कुछ साल तक जेल में रहे। इसके बाद छूट गए। लेकिन 2012 में सिकरवार का नाम दोहरे हत्याकांड में सामने आया। जिसके बाद वह कुछ समय तक फरार रहे। फिर उन्होंने दोबारा सरेंडर कर दिया। कोर्ट ने 2013 में उनको इस मामले में बरी कर दिया। अब सिकरवार कराहल तहसील के गांव लहरोनी में खेती करते है। और आदिवासी समाज के लोगों की मदद करते है।
70 साल बाद भारत में दौड़ेंगे चीतें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने जन्मदिवस पर शनिवार को कूना नेशनल पार्क में नामीबिया से आ रहे चीतों को छोड़ेंगे। भारत में आखिरी बार चीता 1948 में देखा गया था। इसी वर्ष कोरिया राजा रामनुज सिंहदेव ने तीन चीतों का शिकार किया था। इसके बाद भारत में चीतों को नहीं देखा गया। इसके बाद 1952 में भारत में चीता प्रजाति की भारत में समाप्ति मानी गई। अब दोबारा कूना में चीतें दौड़ेगे। इसके बाद पांच साल में 50 चीतें लाने की योजना है।
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