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MP News: मध्य प्रदेश में 526 बाघ, 3421 तेंदुए और अब 8 चीते भी, जानें कूनो नेशनल पार्क को क्यों चुना

विस्तार मध्य प्रदेश टाइगर, तेंदुआ और घड़ियाल के बाद चीता स्टेट भी बन गया है। प्रधानमंत्री ने कूनो में चीतों को छोड़ दिया। प्रदेश में सबसे ज्यादा 526 बाघ और 3421 तेंदुए हैं और अब 8 चीते भी आ गए हैं। मध्य प्रदेश में 30 प्रतिशत से अधिक जंगल है। 10 राष्ट्रीय उद्यान, 6 टाइगर रिजर्व, 25 वन्य जीव अभयारण्य हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 से तीन चीतों को बाड़े में छोड़ दिया। इनकी मॉनीटरिंग और ट्रेकिंग के लिए रेडियो कॉलर पहनाया गया है। इसके अलावा लगातार निगरानी के लिए मचान भी बनाए गए हैं। जहां रोस्टर अनुसार ड्यूटी लगाकर मॉनीटरिंग की जाएगी। इनको अभी एक महीने तक छोटे बाड़े में रखा जाएगा। इसके बाद बड़े बाड़े में छोड़ा जाएगा। यहां के पर्यावरण में ढलने के बाद चीतों को खुले जंगल में छोड़ दिया जाएगा। 

 
कूनों को इसलिए चुना-
लंबी घास के जंगल और मैदानी इलाका
कूनो पालपुर अभयारण्य को एक दशक पहले गिर के शेर को लाने के लिए तैयार किया था, लेकिन वह नहीं लगा जा सके। उस समय की तैयारी चीतों के लिए काम आ रही है। चीतों को लंबी घास का जंगल और खुला मैदान पसंद है। कूनो में यह दोनों ही है। चीता 80 से 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ते हैं।   

 
शिकार के लिए भरपूर मौका
कूनों में चीतल लाकर छोड़ा जा रहा है। इसके अलावा यहां सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर, चिंकारा, चौसिंघा, शाही, भालू, सियार, मंगूज जैसे कई जीव मौजूद हैं। इससे चीते को शिकार का भरपूर मौका मिलेगा।
 
सर्वाइव करने की संभावना ज्यादा
कूनो नेशनल पार्क का बफर एरिया 1235 वर्ग किलोमीटर है। पार्क के बीच में कूनो नदी बहती है। कूनो नेशनल पार्क 748 वर्ग किमी का इलाका है। यहां इंसानों का आना-जाना बेहद कम है। यहां पर चीतों के सर्वाइव करने की संभावना बहुत ज्यादा है।

ब्रीडिंग सेंटर बनाने की भी योजना
केंद्र सरकार की वर्तमान योजना के अनुसार पांच साल में 50 चीते लाए जाएंगे। इसके अलावा कूनो नेशनल पार्क में चीतो का ब्रीडिंग सेंटर बनाने की भी योजना है। सबकुछ ठीक रहा तो यह सेंटर जल्द स्थापित होगा। इसके बाद यहां से चीतों को दूसरे राज्यों में बसाने की योजना है।

 
1948 में आखिरी बार देखा गया था चीता
भारत में आखिरी बार चीता 1948 में देखा गया था। इसी वर्ष कोरिया राजा रामनुज सिंहदेव ने तीन चीतों का शिकार किया था। इसके बाद भारत में चीतों को नहीं देखा गया। इसके बाद 1952 में भारत में चीता प्रजाति की भारत में समाप्ति मानी गई।  
 
1970 में एशियन चीते लाने की हुई कोशिश
भारत सरकार ने 1970 में एशियन चीतों को ईरान से लाने का प्रयास किया गया था। इसके लिए ईरान की सरकार से बातचीत भी की गई, लेकिन यह पहल सफल नहीं हो सकी।
 

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