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Masoud Pezeshkian: कौन हैं ईरान के नए राष्ट्रपति पेजेशकियान, जानिए भारत के प्रति कैसा रहेगा उनका रुख

मसूद पेजेशकियान – फोटो : अमर उजाला

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ईरान के चुनाव नतीजों का एलान हो गया है और सुधारवादी नेता मसूद पेजेशकियान को नया राष्ट्रपति चुन लिया गया है। इब्राहिम रईसी की हेलीकॉप्टर हादसे में मौत के बाद ईरान में नए राष्ट्रपति के लिए 28 मई को पहले चरण का मतदान हुआ। वहीं 5 जुलाई को हुए दूसरे चरण के मतदान के बाद मसूद पेजेशकियान ने जीत हासिल की है। पेजेशकियान की पहचान एक उदारवादी और सुधारवादी नेता के रूप में हैं। अपने चुनाव अभियान के दौरान पेजेशकियान ने सख्त हिजाब कानून को आसान बनाने का वादा किया था। तो आइए जानते हैं कि कौन हैं मसूद पेजेशकियान और उनके राष्ट्रपति बनने से भारत के साथ ईरान के रिश्तों पर क्या असर होगा।

पहले भी राष्ट्रपति पद के लिए पेजेशकियान ने किया था नामांकन
ईरान के नए राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान पेशे से डॉक्टर हैं और ईरान की तबरीज मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रमुख रहे हैं। पेजेशकियान साल 1997 में ईरान के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में सेवाएं दे चुके हैं। मसूद पेजेशकियान पहली बार राष्ट्रपति चुनाव में नहीं उतरे बल्कि साल 2011 में उन्होंने पहली बार राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन किया था, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी। पेजेशकियान की पहचान एक उदारवादी नेता की है और वह पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी के करीबी माने जाते हैं। पेजेशकियान को हिजाब के सख्त कानून का विरोधी माना जाता है। 

भारत-ईरान संबंधों पर क्या होगा असर?
भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत आर्थिक संबंध रहे हैं। पेजेशकियन के राष्ट्रपति बनने के बाद इन संबंधों के और भी मजबूत होने की संभावना है। पेजेशकियान एक सुधारवादी नेता हैं और वह पश्चिमी देशों से भी संपर्क बढ़ाने के पक्षधर हैं। ऐसे में वह भारत के साथ संबंधों को प्राथमिकता नहीं देंगे, ऐसा होने की आशंका कम ही है। खासतौर पर रणनीतिक रूप से अहम चाबहार बंदरगाह पर दोनों देशों का फोकस रहेगा। भारत ने इस परियोजना में भारी निवेश किया है और यह बंदरगाह, भारत को पाकिस्तान को दरकिनार कर मध्य एशिया तक कनेक्टिविटी प्रदान करेगा। भारत ने चाबहार बंदरगाह टर्मिनल के विकास के लिए 12 करोड़ डॉलर देने का वादा किया है और ईरान में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए 25 करोड़ डॉलर की क्रेडिट लाइन देने की भी पेशकश की है। विशेषज्ञों का मानना है कि चाहे सत्ता में कोई भी रहे, ईरान की विदेश नीति में बदलाव की संभावना नहीं है।

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