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नमन : कलयुग में ‘हनुमान जी की मौजूदगी’ इसीलिए है जरूरी

चित्र : भगवान हनुमान जी।

सनातन धर्म में, हनुमान जी एक ऐसे देवता हैं, जिनकी शक्ति की महिमा अपरंपार है। वो श्रीराम भक्त हैं। वो आज्ञाकारी पुत्र हैं। दुनिया की सभी सात्विक बातें उनमें समाहित हैं। वो देवों के देव महादेव का भी अंश हैं। वो सब कुछ हैं। वो परमात्मा हैं। अमूमन हम सभी पौराणिक कहानियों के जरिए, उनके बल से परिचित हैं।

हनुमान जी महान आध्यात्मिक योद्धा हैं, जिन्होंने पौराणिक काल से आज तक के योद्धाओं और सेनाओं को प्रेरित किया है। उन्होंने योग और भक्ति की शक्ति के जरिए अपने हर कार्य सुव्यवस्थित तरह से किया। वह व्यक्तिगत शक्ति के प्रचार या पुरस्कार की तलाश में कभी नहीं रहे। उन्होंने अपने पूरे अस्तित्व के साथ मानवता के लिए धर्म और रामराज्य को बरकरार रखा।

कलयुग में हमें एक ऐसी ही शक्ति की जरूरत है और हनुमान जी हमारे साथ हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि हनुमान जी कलयुग के अंत तक रहेंगे। जहां राम नाम का स्मरण होगा और श्रीराम के जीवन चरित्र रामायण को लयबद्ध तरह से उच्चारित किया जाएगा वहां हनुमान जी हमेशा मौजूद रहेंगे। हनुमान जी एक ऐसी दिव्य शक्ति हैं, जिनकी जरूरत अशांति से भरी दुनिया को है।

हनुमान जी एक आदर्श योद्धा और योगी दोनों के रूप में पूजनीय हैं। महाभारत में, श्री कृष्ण और अर्जुन के रथ पर प्रतीक चिन्ह के रूप में हनुमान जी मौजूद थे। पांडवों में सबसे उग्र योद्धा भीम, हनुमान जी की अभिव्यक्ति के रूप में पहचाने जाते हैं। भीम ने अपनी शक्तियों और शक्तिशाली गदा सहित कई हथियारों का प्रशिक्षण हनुमान जी से प्राप्त किया।

हनुमान जी स्वयं भगवान शिव के अंश हैं। शिव स्वयं भैरव हैं। हनुमान जी उग्र और शांत हैं, वह वायु शिव के रूपों में से एक रुद्र हैं। हनुमान जी अद्भुत शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह केवल चंचल छवि या काव्य रूपक नहीं है, बल्कि वो स्वयं उस परमशक्ति के अनंत आयाम हैं।

दुनिया में आज, जब नकारात्मक शक्तियों का आधिपत्य है तब हनुमान जी का स्मरण बेहद जरूरी हो जाता है। हनुमान जी सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों को खत्म करने वाले देवता हैं। हनुमान जी के प्रति जो आस्था रखते हैं वो यह बात बहुत अच्छे से जानते हैं कि हनुमान जी के दर्शन मात्र से क्लेश, दु:ख और मन की नकारात्मकता दूर हो जाती है।

हनुमान जी की महिमा के बारे में इतना कुछ लिखा गया है कि उनके बारे में फिर से लिखना, उनके प्रति ‘आस्था’ प्रकट करने जैसा है। आस्था, अध्यात्म का ही गुण है। आस्था आपके मन से जुड़ी हुोती है, मन अवचेतन मन से और अवचेतन मन, सूक्ष्म मन से, जहां सिर्फ ईश्वर पहुंचते हैं, इंसान सिर्फ महसूस करते हैं।

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