प्रतीकात्मक चित्र।
- संत राजिन्दर सिंह, आध्यात्मिक गुरु।
आत्मा बिना शर्त प्रेम करती है। वो कोई भेदभाव, कोई पक्षपात, और कोई अलगाव नहीं जानती। प्रभु हमारी आत्मा से बिना शर्त प्रेम करते हैं। बदले में हम भी उस प्रेम को प्रतिबिंबित कर सकते हैं, और अपने मिलने वालों में बिना किसी शर्त के प्रेम बांट सकते हैं।
हमारे रोज़मर्रा के रिश्तों में, बिना शर्त प्रेम के गिने-चुने उदाहरण ही देखने को मिलते हैं। इस संसार की महानतम प्रेम-कहानियों के उदाहरणों में भी देखा जाए, तो कोई न कोई शर्त होती ही है। माता-पिता का अपने बच्चों से जो प्रेम होता है, उसमें भी कुछ अपेक्षाएं, कुछ उम्मीदें जुड़ी होती हैं।
हो सकता है माता-पिता चाहते हों कि उनका बच्चा उनके कहे अनुसार चले। जब बच्चा बड़ा हो जाता है और माता-पिता वृद्ध हो जाते हैं, तो हो सकता है कि वो उम्मीद रखें कि बच्चा हमारी देखभाल करे। इसीलिए, ये प्रेम भी पूरी तरह से बिना शर्त नहीं होता।
प्रेमी-प्रेमिका और पति-पत्नी के आपसी प्रेम में भी हमेशा यह अपेक्षा होती है कि सामने वाला हमें खुश रखेगा। हम चाहते हैं कि हमारा जोड़ीदार हमें वो परिपूर्णता, वो संतुष्टि दे जिसकी हमें तलाश है। यदि हमारे साथी का व्यवहार हमारी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता, तो हमारे बीच बहस या लड़ाई हो जाती है, और कई बार तो हमारा रिश्ता टूट भी जाता है।
आत्मा बिना शर्त प्रेम करती है, क्योंकि प्रभु बिना शर्त प्रेम करते हैं। आत्मा और परमात्मा एक ही हैं। यदि हम अपनी आत्मा के संपर्क में आएंगे और दुनिया को उसकी नज़रों से देखेंगे, तो हम न केवल बिना शर्त प्रेम करने लगेंगे, बल्कि अपने लिए प्रभु के बिना शर्त प्रेम को भी महसूस कर पाएंगे।
सूरज यह भेदभाव नहीं करता कि वो किन फूलों पर अपनी रोशनी डालेगा और किन पर नहीं। वो सभी पर अपना प्रकाश एक समान बिखेरता है। इसीलिए, गुलाब का फूल हो या जंगली घास, सभी को एक समान रोशनी मिलती है। प्रभु के प्रेम के साथ भी ऐसा ही है। वो प्रेम हम सभी को समान रूप से रोशन करता है। हमारे बालों, त्वचा, या आंखों का रंग चाहे जो भी हो, वो प्रेम हम सबको रोशन करता है। जब हम अपनी आत्मा का अनुभव कर लेते हैं और ख़ुद को आत्मा के रूप में ही देखने लगते हैं, तो हम भी सबसे प्रेम करने लगते हैं।
आज विश्व को बिना शर्त प्रेम की बहुत आवश्यकता है। जिस तरह हम चाहते हैं कि कोई हमसे बिना शर्त प्रेम करे, उसी तरह हम भी अपने आसपास के लोगों को बिना शर्त प्रेम दे सकते हैं। सच्चे प्रेम का अर्थ है सबसे प्रेम करना। संत-महापुरुष हमें यही समझाते आए हैं कि यदि हम सच में प्रभु से प्रेम करते हैं, तो हम प्रभु की सभी संतानों से भी प्रेम करेंगे।
जब हम अपनी जागृत आत्मा के संपर्क में आ जाते हैं, तो हमें बाहरी फ़र्क दिखने बंद हो जाते हैं। हम सभी को प्रभु के एक ही परिवार के रूप में देखने लगते हैं, और अपने सभी मिलने वालों में अपनी जागृत आत्मा का प्रेम फैलाने लगते हैं।
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