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शिक्षा : मन में होते हैं ‘राम’ सीखिए कैसे किया जाता है ‘रावण का अंत’

राम और रावण त्रेतायुग में जन्में दो चरित्र हैं, जिनके बारे में हमें महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण से जानकारी मिलती है। रामायण के बाद कई ओर रामायण अलग-अलग नाम से लिखी गईं, और संभव है भविष्य में भी लोग लिखते रहेंगे।

राम को हमने भगवान के रूप में स्थापित किया, क्योंकि उनका जीवन उस योग्य था और रावण को एक ऐसे चरित्र के रूप में जो विद्वान होने के बाद भी खुद को बेहतर नहीं बना पाया, हालांकि आज भी कुछ लोग रावण को भगवान की तरह पूजते हैं तो कोई दैत्य की तरह संहार कर उसके दैत्य स्वरूप को नष्ट कर देते हैं। हम उसे हर बार बनाते हैं और सदियों से शारदीय नवरात्रि के बाद 10वें दिन दशहरा उत्सव मनाते हुए, भगवान राम का स्वरूप रख हम रावण का अंत कर देते हैं लेकिन रावण हर साल जिंदा होता है और मार दिया जाता है।

यहां दो बातें ध्यान देने वाली है ये दो बातें हिंदू पौराणिक चरित्रों से जुड़ी हुई हैं। राम यानी मर्यादा पुरषोत्तम ऐसे पुरुष के रूप में प्रकट होते हैं, जिनसे हर उस व्यक्ति को सीख लेनी चाहिए जो इस पृथ्वी पर मनुष्य रूप में जन्मा है और दूसरी बात यह कि रावण के स्वरूप में आपको यह खोजना चाहिए कि जो गलतियां रावण ने उसके काल में कीं वो आप अपने समय में न दोहराएं। हालाकिं ऐसा कहते हैं रावण विद्वान था। यहां विद्वान होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता जब आपके अंदर एक रावण छिपा हो।

मशहूर सिने लेखक जावेद अख्तर कवि, गीतकार हैं। फिल्म ‘स्वदेश’ में उनका लिखा एक गीत ‘पल पल है भारी वो विपदा है आई मोहे बचाने अब आओ रघुराई’ काफी लोकप्रिय है। इसी गीत के एक मुखड़े की पंक्ति हैं, ‘राम ही तो करुणा में है, शांति में राम हैं राम ही हैं एकता में, प्रगति में राम हैं राम बस भक्तों नहीं, शत्रु के भी चिंतन में हैं देख तज के पाप रावण, राम तेरे मन में हैं राम तेरे मन में हैं, राम मेरे मन में हैं। राम तो घर-घर में हैं, राम हर आंगन में हैं मन से रावण जो निकाले, राम उसके मन में हैं।’ यह गीत आज के सामाजिक, राजनीतिक, वैचारिक और पारिवारिक जीवन के लिए सीख देता है कि आज हमें राम को अपने मन में खोजने की जरूरत है ना कि जहां भी आप इसे खोज रहे हैं वहां.. कहने के कई आशय है, जरूरत है आप किन अर्थ में इसे समझते हैं।

‘राम एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में हमारे मन के भीतर मौजूद रहते हैं जो हमें एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरणा देते हैं। लेकिन, लोग राम को मंदिर और किताबों में खोजते हैं। राम से क्या सीखें यह बातें बहुत बार आपने पढ़ी होंगी, लेकिन राम के चरित्र को आत्मसात कितना करते हैं यह बात ज्यादा महत्वपू्र्ण है।’

जब तक राम नाम का यश रहेगा तब तक रावण भी जिंदा रहेगा। वजह यह कि राम जहां अच्छाई के प्रतीक के रूप में पूजे जाते रहेंगे तो रावण बुराई का प्रतीक बन हर बार लोगों के सामने एक सीख बनकर मौजूद रहेगा। राम जिस तरह आज समाज में कई चेहरों में देखे जा सकते हैं तो रावण भी कई चेहरों में कई रूप में मौजदू है जरूरत है हमें इनको समझने की। उनके विचारों को आत्मसात करनी की। तय आपको करना है कि आप राम की तरह बनना चाहते हैं या रावण की तरह बनने की ख्वाहिश रखते हैं।

राम बनना आसान नहीं है त्याग, परिश्रम, सम्मान, मर्यादा और भी कई मानवीय तत्वों का समावेश आपको अपने भीतर जागृत करना होगा। राम राजा होकर भी पिता के वचन को शिरोधार्य करते हैं, वह अपने लिए 14 साल का वो जीवन चुनते हैं जहां कठिनाईयां हैं, चुनौतियां हैं लेकिन वो अपने पथ पर आगे चलते रहते हैं। उनकी पत्नी का अपहरण कर लिया जाता है, वो अकेले ही लोगों से मिलकर अपनी एक सेना बनाते हैं और अपहरणकर्ता रावण का अंत कर उस बुराई का भी अंत कर देते हैं जो उस समय के समाज और परिवेश को दूषित कर रही होती है।

राम को भगवान के रूप में देखने की वजह यदि इंसान के रूप में देखा जाए तो वो एक तरह से ऐसे इंसान हैं जो अपने कर्म, ज्ञान और अपने व्यक्तित्व से इतने ऊपर उठ चुके थे कि वो अब भगवान कहलाने के काबिल हैं। हालांकि हिंदू पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि वो भगवान विष्णु के 7वें अवतार थे। राम एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में हमारे मन के भीतर मौजूद रहते हैं जो हमें एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरणा देते हैं। लेकिन, लोग राम को मंदिर और किताबों में खोजते हैं। राम से क्या सीखें यह बातें बहुत बार आपने पढ़ी होंगी, लेकिन राम के चरित्र को आत्मसात कितना करते हैं यह बात ज्यादा महत्वपू्र्ण है।

‘ऐसा कहा जाता है कि क्रोध बुद्धि को खा जाता है और क्रोध तब आता है जब आपके मन पर आपका काबू नहीं होता और ये तब होता है जब आप ईर्ष्या के समुंदर में गोते खा रहे होते हैं और ईर्ष्या का उदय तब होता है जब आप किसी विशेष ज्ञान या किसी विशेष बात से अहंकार के समक्ष अपने मन की शक्ति से हार जाते हैं।’

आप सिर्फ राम की मूर्ति के दर्शन कीजिए उनके मूर्ति स्वरूप को उस समय देखने भर से जो भाव आपके मन में जन्म लेते हैं, वही आप के अंदर छिपे हुए राम का अंश हैं जो आपको मार्गदर्शित करते हैं। अब ये आप पर निर्भर करता है कि राम के व्यक्तित्व के उस अंश को आप कितने समय तक अपने अंदर संजो कर रख पाते हैं।

बात राम की हो और रावण का जिक्र ना हो ये ठीक उसी तरह है जैसे आग और धुंआ यानी जहां आग है वहां धुंआ तो होगा ही यानी जहां अच्छाई है तो बुराई भी होगी हो सकता है वो कम स्तर पर हो, लेकिन वो जरूर होगी। जरूरत है उस बुराई के मूल तत्व को नष्ट करने की। जिसकी कोशिश हर साल दशहरे पर रावण दहन के साथ हम सभी करते हैं। रावण एक विद्वान चरित्र है। वह तब – तक, जब-तक कि वह सीता का अपहरण नहीं करता है। ऐसा हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित है।

विद्वान होने के साथ रावण अहंकारी भी था। ऐसा कहा जाता है कि क्रोध बुद्धि को खा जाता है और क्रोध तब आता है जब आपके मन पर आपका काबू नहीं होता और ये तब होता है जब आप ईर्ष्या के समुंदर में गोते खा रहे होते हैं और ईर्ष्या का उदय तब होता है जब आप किसी विशेष ज्ञान या किसी विशेष बात से अहंकार के समक्ष अपने मन की शक्ति से हार जाते हैं। रावण के साथ भी यही होता है। उस समय जब मैं और आप नहीं थे, लेकिन हमारे वैदिक ग्रंथ, रामायण हमें यह बताती हैं। वो प्रमाणिक हैं।

    हम रावण के उस पक्ष को देखते हैं जो बुरा है, यह एक सीख की तरह हमें आत्मसात कर लेना चाहिए। लेकिन हमें रावण के उस पहलू को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए जो उसकी, उस छबि की ओर इंगित करता है जो वो था। तब-तक, जब-तक वो अहंकारी नहीं था। मृत्यु के कुछ समय पहले वो लक्ष्मण को काफी कुछ नीतिगत बातें बताता है, राम स्वयं लक्ष्मण जो कि उनके अनुज हैं। उनसे कहते हैं कि रावण विद्वान है, उससे तुम्हें कुछ नीतिगत सीख लेनी चाहिए। इस बारे में प्रमाणिकता के साथ आप रामायण में पढ़ सकते हैं, या किसी ऐसे वैदिक ग्रंथ में जो प्रमाणिक हैं।

    रावण के चरित्र से इंसान को सीख लेनी चाहिए कि यदि आप राम बनने के राह पर 1 प्रतिशत से भी कम उनके बताए गए मार्ग पर चल सकें तो एक बेहतर इंसान बन सकते हैं। रावण विद्वान था लेकिन अहंकारी, अहंकार के कारण (और भी कई कारण) उसका अंत हुआ। तय आप कीजिए आपको कैसा बनना है ‘भगवान श्रीराम’ की तरह या ”दैत्यअसुर लंकापति रावण की तरह बनकर अंत को प्राप्त करना है।

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