भारत में मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में ‘कुंडी भंडार’ नाम से भू-जल संरचना है। मध्यकालीन भारत की इस धरोहर को देखने पर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस समय की तकनीक कितनी विकसित रही होगी।
दरअसल, कुंडी भंडार को सतपुड़ा की पहाड़ियों के पत्थर चीरकर नगर में पानी लाया गया। हैरत की बात यह है कि जब न तो मशीनें थीं और न ही भू-गर्भ में बहते पानी के स्त्रोतों का पता लगाने वाले तकनीकी यंत्र।
अब्दुलरहीम खान-ए-खाना ने की थी पहल
मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में बुरहानपुर एक सैनिक छावनी थी। अकबर ने यहां का सूबेदार अब्दुलरहीम खान-ए-खाना को नियुक्त किया। वह इसलिए कि बुरहानपुर को दक्कन का द्वार माना जाता था। दिल्ली के सुल्तान इसी जगह से दक्कन के भूभाग पर नियंत्रण के लिए सैन्य अभियान संचालित करते थे।
जब अब्दुलरहीम खान-ए-खाना यहां पहुंचे तो सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच बसे इस शहर में पेयजल की भारी किल्लत थी जिसे दूर करने के लिए रहीम ने शहर के आस-पास जल स्रोतों की तलाश शुरू कर दी। उन्हें शहर से 6 किलोमीटर दूर सतपुड़ा की तलहटी में सन् 1612 में इस भूमिगत जल भंडार का पता चला।
मिनरल वाटर से बेहतर पानी
अब्दुलरहीम ने इस जलस्त्रोत के पानी को शहर तक पहुंचाने का विचार किया। उन्होंने इस कार्य के लिए उस समय के बेहतर इंजीनियर और कुशल कारीगरों से सलाह की और पानी को शहर तक लाने के लिए सन् 1612 में जमीन से 80 फीट नीचे घुमावदार नहरों के निर्माण कार्य शुरू करवाया। दो साल चले खनन कार्य और पत्थरों से चिनाई के बाद तीन किलोमीटर लंबी नहर के जरिए शुद्ध पेयजल को सन् 1615 में जाली करंज तक पहुंचाया गया।
सदियों पुरानी यह हैरान कर देने वाली संरचना आज भी न सिर्फ जिंदा है बल्कि मिनरल वाटर से बेहतर गुणवत्ता का पानी उपलब्ध कराती है। इसको बनाते समय मुगल काल में ही शहरभर में छोटी-छोटी कुंडियां बनाई गई थीं इसलिए इसे ‘कुंडी भंडार’ भी कहा जाता है।
Be First to Comment