यदि घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो ऐसी जगहों पर जाइए जहां जाकर आजादी का असली अहसास क्या होता हैं इस बात पर आप गर्व महूसस कर सकें। देश को आजाद कराने के लिए कई लोगों ने अपने प्राणों की आहुति हंसते-हंसते दी, जिनके स्मारकों पर जाकर नतमस्तक होना उनके लिए सबसे अनुपम श्रद्धांजली इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकती, क्योंकि उनके बलिदान के कारण हम आज स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक हैं।
झांसी का किला, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में झांसी जाएं, तो रानी लक्ष्मीबाई का किला जरूर देखें, जो अब म्यूज़ियम बन गया है। साल 1858 में किले से जाने के दौरान वो बादल (उनका घोड़ा) पर सवार थीं। दत्तक पुत्र दामोदर राव पीठ पर बंधे थे और झांसी की रानी ने कई फुट ऊंची जगह से नीचे छलांग लगा दी। वो जगह आज भी देखी जा सकती है। इस घटना में मां-बेटे बच गए थे, लेकिन बादल ने बाद में दम तोड़ दिया था।
अल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद
गुलाम हिंदुस्तान में एक ऐसे व्यक्ति थे। जो हमेशा आजाद ही रहे। महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने इसी पार्क में अंतिम सांस ली थी। इसी पेड़ के पीछे काकोरी कांड में पुलिस को उनकी तलाश थी और किसी गद्दार ने उनके छिपे होने की खबर अंग्रेजों को दे दी। पुलिस से घिरने के बावजद अंतिम वक्त तक मुकाबला किया और जब सिर्फ एक गोली बची थी, तो मां भारती की जयकार लगाकर अपने प्राणों की आहुति दी।
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काकोरी, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 15 किलोमीटर फासले पर बसा छोटा सा कस्बा काकोरी हिंदुस्तान के स्वतंत्रता संग्राम में काफी अहमियत रखता है। 9 अगस्त,1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ जा रही एक रेलगाड़ी को क्रांतिकारियों ने इसी जगह निशाना बनाया था। अंग्रेज सरकार को दहलाने के लिए यह योजना अंजाम दी गई और 8 हजार रुपए लूट गए। इस मामले में शामिल कई क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई, जबकि दूसरों को काला पानी भेज दिया गया।
फिरोजशाह कोटला किला, दिल्ली
फिरोजशाह कोटला इन दिनों क्रिकेट मैदान के लिए जाना जाता है, लेकिन खंडहरों में तब्दील हो चुके इस किले में छिपकर भगत सिंह और उनके साकभी अंग्रेजों मुकाबला करने की योजना बनाया करते थे। उस समय यहां हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन की कई बैठक हुआ करती थीं।
जलियांवाला बाग, अमृतसर, पंजाब
साल 1919 में जलियांवाला बाग निहत्थे हिंदुस्तानियों पर अंग्रेजों के जुल्म का गवाह बना। यहां वो कुएं दिख जाएंगे, जिनमें कई महिलाएं जान बचाने के लिए कूदी थीं और गोलियों से छलनी दीवारें जो आज भी अंग्रेजों के अत्याचार की गवाह हैं।
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गांधी स्मृति, बिड़ला हाउस, दिल्ली
मोहनदास करमचंद्र गांधी से महात्मा तक सफर करने वाले गांधीजी के जीवन से प्रेरणा लेने के लिए यूं तो बहुत कुछ है लेकिन गांधी स्मृति अहम है, क्योंकि यहां उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 144 दिन गुजारे और प्राण भी त्याग दिेए थे। यह वही जगह है कि जहां शाम की प्रार्थना के वक्त नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या की थी। यहां जब भी जाते हैं तो गांधीजी की मौजूदगी का अहसास आपको जरूर महसूस होगा।
शहीद स्मारक, हुसैनीवाला बॉर्डर, फिरोजपुर
शहीद स्मारक सरहद के नजदीक है, जहां एक तरफ पंजाब का फिरोजपुर और दूसरी तरफ पाकिस्तान का कसूर। सतलुज आज भी शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की कहानी कहती है। यह वही जगह है, जहां अंग्रेजों ने इन क्रांतिकारियों को सुबह के बजाय शाम को फांसी देकर उनके शव को गुप्त रूप से छिपाने की शर्मनाक कोशिश की थी। लेकिन गांव वालों को जब यह खबर पता लग गई और वह वक्त पर पहुंच गए। इसके बाद इन शहीदों का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। यहीं पर भगत की मां की समाधि भी है, जिन्हें पंजाब माता के नाम से जाना जाता है।
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शहीद स्मारक चौरी चौरा, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
5 फरवरी, 1922 जब असहयोग आंदोलन में हिस्सा ले रहे प्रदर्शनकारियों का एक समूह हिंसक हो उठा और पुलिस ने गोलीबारी कर दी। इससे नाराज लोगों ने थाने में आग लगा दी, जिसमें भीतर मौजूद सभी लोग मारे गए। इसमें तीन नागरिकों और 23 पुलिसकर्मियों की मौत हुई। कांग्रेस को इस घटना की वजह से देश भर से असहयोग आंदोलन वापस लेना पड़ा था।
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