- अखिल पाराशर, ल्हासा/तिब्बत।
तिब्बत का पठार दुनिया का सबसे ऊंचा पठार है। यहां मैदानी इलाकों की तुलना में हवा में ऑक्सीजन की मात्रा कम है। अमूमन देखा जाता है कि अधिकांश पर्यटकों को ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ऑक्सीजन की कमी के कारण तबीयत खराब हो जाती है। उनमें मस्तिष्क संबंधी बीमारी का खतरा बना रहता है लेकिन आमतौर पर तिब्बती लोगों में ऐसी समस्या नहीं होती है। वे आराम से रहते हैं।
दरअसल, तिब्बत वासियों की कम ऑक्सीजन क्षेत्रों में रहने की क्षमता का राज उनके डीएनए में छिपा हुआ है। पहली बात कि तिब्बत के स्थानीय लोग ऐसे वातावरण में रहने के आदी हैं, जिसकी वजह से उन्हें ऑक्सीजन संबंधी कोई समस्या नहीं होती।
दरअसल, उनके शरीर में ख़ून को पतला करने वाली एक विशेष प्रकार की जीन पाई जाती है। इस जीन की वजह से ऑक्सीजन कम होने पर भी इंसान सांस ले सकता है। डीएनए की बनावट की वजह से तिब्बत वासियों के अंदर इस बीमारी से जुझने की क्षमता पाई जाती है।
लेकिन जो मैदानी क्षेत्र से तिब्बत आता है उनके लिए ऑक्सीजन संबंधी किसी भी समस्या से निपटने के लिए तमाम बंदोबस्त होते हैं। तिब्बत में लगभग सभी दुकानों पर ऑक्सीजन कैन उपलब्ध होती हैं। यदि किसी को सांस लेने में दिक्कत हो रही होती है, तो वो ऑक्सीजन कैन खरीदकर इस्तेमाल कर सकता है।
इतना ही नहीं, लगभग हर बड़े होटल या शॉपिंग मॉल में 24 घंटे खुला रहने वाला ऑक्सीजन स्टेशन भी होता है, जहां ऑक्सीजन सिलेंडर के माध्यम से ऑक्सीजन ले सकते हैं। इसके अलावा, जिस तरह से हर चौराहा और हर शापिंग मॉल के पास कोई न कोई एटीएम मशीन होती है, उसी तरह से हर जगह ऑक्सीजन कैन खरीदने की वेंडिंग मशीन भी होती है।
हालांकि, तिबब्त के स्थानीय लोगों को इन ऑक्सीजन कैन या ऑक्सीजन सिलेंडर की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन ऑक्सीजन का इंतजाम पर्याप्त रखा जाता है, क्योंकि चीन के भीतरी क्षेत्र से काफी लोग तिब्बत घुमने के लिए आते हैं।
और जो लोग तिब्बत आते हैं उन्हें शुरुआती दिनों में कुछ बातों का ध्यान रखना होता है, जैसे बहुत ज्यादा भोजन नहीं करना चाहिए, ज्यादा तीखा या मसालेदार भोजन भी नहीं करना चाहिए, ज्यादा तेज गति से नहीं चलना या भागना चाहिए, और शुरू के 2-3 दिनों तक स्नान भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि उससे छाती पर प्रेशर पड़ता है और ऑक्सीजन की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
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