चित्र : जोखांग मठ, तिब्बत।
- अखिल पाराशर, ल्हासा/तिब्बत।
जोखांग मठ, तिब्बत की राजधानी राजधानी ल्हासा में स्थित एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ है, जो विश्वभर से आए हजारों यात्रियों और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसका निर्माण 1300 साल पहले तिब्बत के राजा सोंगत्सेन गेम्पो ने करवाया था। यह मठ 25 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला है।
ल्हासा में यह बड़ा प्रचलित है कि पहले जोखांग बना फिर ल्हासा बना। इससे जोखांग मठ के इतिहास का पता चलता है। ईस्वी 7वीं सदी में 33वें तिब्बती राजा सोंगत्सेन गेम्पो ने पूरे तिब्बत को एकीकृत करने के बाद अपने राजमहल को लोका क्षेत्र से स्थानांतरित कर ल्हासा लाए। यही आज का ल्हासा शहर भी है।
जोखांग मठ का तिब्बती भाषा में अर्थ है, ‘बुद्ध प्रतिमा का स्थान’। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस मठ में स्थापित बुद्ध मूर्ति महारानी वनछंग के द्वारा थांग राजवंश की राजधानी छांगआन से लायी गयी थी। किंवदंती है कि यह मूर्ति भगवान बुद्ध की किशोरावस्था की मूर्ति है जो 12 साल की उम्र वाले भगवान बुद्ध जितनी ऊंची है और खुद उन्हीं के द्वारा स्थापित की गयी थी। इस आधार पर कहा जा सकता है कि यह मूर्ति लगभग ईसा पूर्व 544 साल की है जो कि भगवान बुद्ध के महानिर्वाण से पहले की है।
उस समय ल्हासा में बहुत कम इमारत थी। राजा सांगत्सेन गेम्पो ने पड़ोसी देश नेपाल की राजकुमारी भृकुटी देवी और थांग राजवंश की राजकुमारी वनछंग से शादी की थी। भगवान बुद्ध की दो बहुमूल्य मूर्तियां भी इन दोनों महारानियों के साथ तिब्बत आयी। लेकिन उस समय भगवान बुद्ध की इन दोनों मूर्तियों की स्थापना एक समस्या बन गयी थी। वनछंग महारानी की राय से राजा सोंगत्सेन गेम्पो ने दो विशाल मठों का निर्माण करवाया, जिसमें दोनों मूर्तियों को स्थापित किया गया, कहते हैं इस स्थान के इतिहास में कई रहस्य हैं जो आज भी लोगों को हैरान करते हैं।
दोनों मठों के निर्माण के बाद, तिब्बती बौद्ध धर्म के पवित्र स्थल के रूप में यहां पर पूजा करने वाले लोगों की आवाजाही शुरू हो गई। धीरे-धीरे बड़े मठ यानी जोखांग मठ को केंद्र में रखते हुए इसके चारों तरफ शहर का निर्माण होने लगा जो आज का ल्हासा शहर है। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि पहले जोखांग बना फिर ल्हासा बना।
जोखांग मठ ल्हासा के पोताला महल के बेहद नजदीक ही स्थित है। पोताला महल से पैदल जाने पर लगभग 10 मिनट लगते हैं। जोखांग मठ के सामने विशाल चौक पर पहुंचते ही दूर से मठ के दरवाज़े पर लगे बौद्ध सूत्र झंडियां दिखाई देती हैं। मठ के प्रांगण में घुसते विभिन्न भवनों से उठ रही धुआँ, मठ का चमकीला गुंबद और घी की खुशबू से पूरा भरा वातावरण सुगंधित लगता है। जोखांग मठ में आना वाला हर यात्री या बौद्ध श्रद्धालु अपने आपको धन्य समझता है।
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