जिंदगी में कामयाब इंसान बनना है तो लक्ष्य हासिल करने के लिए बेहतर मैनेजमेंट का होना बेहद जरूरी है। इसके लिए मूल्य, रणनीति, विश्वास, प्रोत्साहन, श्रेय, उपलब्धता और पारदर्शिता होना जरूरी हैं और भगवान श्रीराम में यह सभी गुण मौजूद थे।
भगवान श्रीराम अपना हर काम लगभग मैनेजमेंट के जरिए ही करते थे और उनका मैनेजमेंट काफी कारगर सिद्ध होता था। राम ने रावण से युद्ध की तैयारियां दो साल तक कीं। वह चाहते तो एक नजर समुद्र को देखते और पुल बन जाता।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में उल्लेख मिलता है कि बीस दिन तक युद्ध चला और रावण मारा गया। वह चाहते तो लंका बिना जाए बिना ही रावण का अंत कर सकते थे। ठीक इसी तरह श्रीराम ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा और न ही प्रवचन दिए। खुद को ईश्वर का अवतार बताकर समाज से बुराइयां मिटाने का अभियान भी नहीं चलाया। उन्होंने अपना जीवन ही ऐसा बनाया कि लोग उनसे सीखें।
वनवास जाते समय जब भरत अपनी सेना के साथ उन्हें वन से वापस लेने आ रहे थे तो लक्ष्मण को लगा कि वह युद्ध करने आ रहे हैं, श्री राम निश्चिंत थे। राम मोटीवेटर भी थे। मोटीवेशन न होता तो भालू और वानरों को कई साल पुल बनाने में ही लग जाते।
हनुमानजी को उनकी शक्तियां याद दिलाने के लिए राम उन्हें प्रोत्साहित करते थे। लंका विजय का श्रेय भी राम ने नहीं लिया। वह जनता के लिए उपलब्ध रहते थे और उनके कार्यों में पारदर्शिता थी।
दरअसल, श्रीराम का लक्ष्य था सत्य और न्याय का शासन स्थापित करना। इसके लिए उन्होंने जो मूल्य चुने उनमें पिता की आज्ञा का हृदय से पालन, शबरी और केवट के साथ सामाजिक समानता थी।
अरण्यकांड के अनुसार भगवान श्रीराम ने चित्रकूट में काफी वक्त गुजारा था। जब उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि वन के सभी लोग उन्हें पहचानने लगे हैं। तब वे वन से अगले पड़ाव की ओर चल पड़े थे। वे शांतभाव के थे और अपने बारे में किसी को अधिक बताना भी नहीं चाहते थे।
विज्ञापन के इस युग में राम के चरित्र से एक सीख लेनी चाहिए कि बिना प्रचार के शांतिपूर्वक हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें, क्योंकि आने वाली पीढ़ी नींव को याद रखेगी न कि प्रचार को।
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