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लालच : हर वक्त, वक्त बदलने की कोशिश में दौड़ता इंसान

  • संत राजिन्दर सिंह, आध्यात्मिक गुरु।

क्या आपको ऐसा लगता है कि आपके दिन ऐसे गुज़रते हैं मानो आप एक ट्रैडमिल (व्यायाम की मशीन) पर दौड़ रहे हों और कहीं भी न पहुंच रहे हों? क्या आप दिन के अंत में बहुत अधिक थक जाते हैं, और फिर भी ऐसा महसूस करते हैं कि कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं कर पाये हैं? दिन भर की व्यस्तताओं के दौरान शांति पाने का, रुककर सुकून पाने का, और जीवन की असली महत्त्वपूर्ण चीज़ पर ध्यान देने का, एक तरीका है। सारे जवाब हमारे भीतर ही मौजूद हैं।

लियो टॉलस्टॉय की लेखनी में से एक शिक्षाप्रद कहानी इस प्रकार है। रूस में एक गरीब किसान था, जिसके पास ज़मीन का बहुत ही छोटा सा टुकड़ा था। वो शांति और संतुष्टि से जीवन बिता रहा था, कि अचानक एक दिन उसके दिल में अपने बहनोई के लिए जलन की भावना पैदा हो गई, जोकि एक अमीर ज़मींदार था। वो देख रहा था कि कैसे उसका बहनोई धीरे-धीरे और अधिक ज़मीनें ख़रीदता जा रहा था और उन्हें किराए पर चढ़ाता जा रहा था। जितना ज़्यादा वो अमीर होता जा रहा था, उतना ही ज़्यादा उस गरीब किसान के दिल में भी अमीर होने की इच्छा बढ़ती चली जा रही थी। उसने थोड़ी ज़मीन ख़रीदने के लिए पैसे जोड़ने शुरू कर दिए।

जब उस गरीब किसान के पास पर्याप्त धन इकट्ठा हो गया, तो उसने ऐसी ज़मीन ढूंढनी शुरू की जिसे वो ख़रीद सके। उसे पता चला कि पड़ोस के इलाके में थोड़ी सस्ती ज़मीन बिकाऊ है। जब वो ज़मीन देखने गया, तो उसे पता चला कि वहां रहने वाले लोग खानाबदोश कबीले के हैं, जो एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं।

वो किसान उस कबीले के सरदार के लिए कुछ उपहार ले गया था। सरदार ने ख़ुश होकर उपहारों के लिए किसान को धन्यवाद दिया, और बोला कि सूर्यास्त होने तक जितनी ज़मीन पर किसान चल लेगा, वो सारी उसकी हो जाएगी। तय किया गया कि किसान सुबह सूरज निकलने पर चलना शुरू करेगा और सूरज डूबने तक वो जितनी ज़मीन पर चलकर वापस आ जाएगा, वो सारी की सारी उसकी हो जाएगी।

किसान इतनी सारी ज़मीन मिलने की संभावना से बहुत ही ख़ुश हो गया। सभी गांव वाले समय के खिलाफ़ होने वाली इस रेस को देखने के लिए जमा हो गए। किसान ने सुबह बहुत तेज़ी से चलना शुरू कर दिया, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा दूर तक जा सके। जब सूरज आकाश के बीचो बीच पहुंच गया, तो गर्मी बेहद बढ़ गई। लेकिन किसान पानी पीने या खाना खाने में समय नष्ट नहीं करना चाहता था, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा ज़मीन पा सके। उसने सोचा कि यदि वो चलता रहेगा, तो खूब सारी ज़मीन अपने नाम कर लेगा। वो बहुत लंबे घेरे में चल रहा था, ताकि अधिक से अधिक दूरी तक जाकर शुरुआती बिंदु पर वापस पहुंच सके।

किसान का लालच इतना अधिक बढ़ चुका था कि सूरज के आग बरसाने पर भी वो पानी पीने के लिए नहीं रुका। उसके पैर बहुत ज़्यादा दुखने लगे थे, लेकिन फिर भी वो थोड़ी देर के लिए भी आराम करने नहीं रुका। आख़िरकार सूरज डूबने का वक़्त भी आ गया। गांव वाले किसान का जोश बढ़ाने के लिए तालियां बजाने लगे। जैसे ही किसान शुरुआती बिंदु पर वापस पहुंचा, उसकी थकान और प्यास इतनी अधिक बढ़ चुकी थी कि वो ज़मीन पर गिर पड़ा। इससे पहले कि लोग कुछ समझ पाते, किसान थकान और प्यास से मर चुका था।

लोगों ने अफ़सोस जताते हुए उसके क्रियाकर्म का प्रबंध किया। उन्होंने उसे वहीं गाड़ दिया जहां वो गिरा था। इस तरह, उसे केवल छः गुणा चार फुट ज़मीन ही मिली जिसमें उसके शरीर को गाड़ दिया गया।

लालच की यह दुख भरी दास्तान अनेक लोगों के जीवन की हालत बयान करती है। अधिकतर लोग सारी ज़िंदगी इसी दौड़-भाग में लगे रहते हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा धन कमा सकें, ज़्यादा से ज़्यादा ज़मीन और सामान इकट्ठा कर सकें, ज़्यादा से ज़्यादा प्रसिद्धि और नाम कमा सकें, या ज़्यादा से ज़्यादा ताकत इकट्ठी कर सकें, लेकिन मृत्यु के समय उनकी यह रेस ख़त्म हो ही जाती है और वो खाली हाथ ही यहां से चले जाते हैं।

जब ज़्यादातर लोग केवल सांसारिक चीज़ें इकट्ठा करने के लिए जीते हैं, तो उन्हें संतुष्टि और शांति कहां से मिलेगी! लोग हमेशा यही सोचते रहते हैं कि बस, थोड़ा सा और धन जमा कर लें, फिर आराम से बैठकर जीवन का आनंद लेंगे। लेकिन वो समय कभी भी नहीं आता और वो उससे पहले ही संसार छोड़कर चले जाते हैं।

यह संसार एक लगातार चलने वाली रेस या दौड़ की तरह है। कुछ लोग इसे रैट रेस या चूहा दौड़ भी कहते हैं। हम सभी एक ट्रैडमिल पर दौड़ते चले जा रहे हैं और कहीं भी पहुँच नहीं रहे। इससे पहले कि हमें पता चले, सीटी बज जाती है और रेस का समय समाप्त हो जाता है।

वो किसान उस समय तक सुखी जीवन जी रहा था जब उसके दिल में किसी और के लिए जलन पैदा नहीं हो गई थी। तब वो एक ऐसी रेस में दौड़ने लगा जिसका अंत उसकी मृत्यु से हुआ।

कम ही लोग यह जानते हैं कि हम जब चाहे शांति और संतुष्टि पा सकते हैं। ये पहले से ही हमारे भीतर हैं। अगर हम स्थिर होकर अपने अंतर में ध्यान टिका सकें, तो हमें ऐसे अनमोल ख़ज़ाने प्राप्त होंगे जो हमें बाहरी दुनिया में कभी भी नहीं मिल सकते। उन्हें पाने के लिए हमें कोई दौड़ लगाने की आवश्यकता नहीं है।

हम अपने दैनिक जीवन के कार्य करते हुए, ईमानदारी से रोज़ी-रोटी कमाते हुए, अपने परिवार की ज़िम्मेदारियां उठाते हुए, और अपनी कमाई में से दूसरों की मदद करते हुए भी अपने अंतर की शांति और संतुष्टि का आनंद उठा सकते हैं। हमें अपनी आंतरिक शांति को बाहरी चीज़ों के पीछे भागने में कुर्बान करने की कोई ज़रूरत नहीं है, जो पता नहीं हमें मिलेंगी भी या नहीं, या जो हमें वो ख़ुशियाँ दे भी पायेंगी या नहीं जिनकी हमें उम्मीद है।

वो किसान आराम करने और पानी पीने के लिए एक पल भी नहीं रुका। इसी तरह, क्या हम भी अपने जीवन में आध्यात्मिक रूप से तरोताज़ा होने के लिए और आंतरिक प्रकाश के सोते से घूंट भरने के लिए थोड़ा सा भी समय निकालते हैं? हमारे अंदर आनंद, प्रेम, और प्रकाश का एक सोता बह रहा है। क्या हम कभी कुछ क्षण रुककर उसमें से पीने के लिए समय निकालते हैं?

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