प्रतीकात्मक चित्र।
- संत राजिन्दर सिंह, आध्यात्मिक गुरु।
जीवन में ऐसा समय भी आता है जब अपनी ओर से बेहतरीन प्रयास करने पर भी हम परिणाम से संतुष्ट नहीं होते, या जब हमारे प्रयास उन लोगों के द्वारा ही सराहे नहीं जाते जिनकी हम सहायता करने की कोशिश कर रहे होते हैं। जब ऐसा होता है, तो हम अपने प्रयासों में सतर्क हो जाते हैं, और परिस्थितियों या लोगों के अनुसार अपने प्रयासों में बढ़ोतरी या कमी लाते रहते हैं।
जीवन में सही नज़रिया रखने का अर्थ है कि हम हमेशा अपनी ओर से बेहतर से बेहतर करें, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, क्योंकि हम जानते हैं, सभी को हमसे बेहतरीन प्रयास पाने का हक है। इस संबंध में संगीतकारों के एक समूह की कहानी है, जो एक शहर से दूसरे शहर जाकर अपनी जीविका कमाते थे।
महंगाई का ज़माना था और वो लोग ज़्यादा पैसा नहीं कमा पा रहे थे। उन्हें सुनने के लिए आने वाले लोग ज़्यादा धनी नहीं थे, और अब वो टिकट का छोटा सा शुल्क भी नहीं दे पा रहे थे। उपस्थिति कम होती चली जा रही थी और अब उनके कार्यक्रमों में बहुत कम लोग ही आ पाते थे।
एक दिन समूह के सदस्यों ने मिलकर सोचा कि इस बारे में क्या किया जाए। एक ने कहा, ‘आज रात के कार्यक्रम में इतने कम लोग आ रहे हैं कि कार्यक्रम करने का कोई फ़ायदा ही नहीं है।’ एक अन्य व्यक्ति ने देखा कि बर्फ़ गिरने लगी है और बोला, ‘देखो! अब इतनी बर्फ़बारी में कौन हमारा कार्यक्रम देखने के लिए आएगा?’
एक तीसरे ने कहा, ‘हां, कल रात भी बहुत ही कम लोग आए थे। अगर आज रात इसी तरह बर्फ़ गिरती रही, तो और भी कम लोग आएंगे। हमें उन लोगों का छोटा सा टिकट शुल्क वापस कर देना चाहिए और कार्यक्रम रद्द कर देना चाहिए।’ पहले व्यक्ति ने सहमति जताते हुए कहा, ‘तुम सही कह रहे हो। इतने कम श्रोता होते हुए कोई भी हमसे कार्यक्रम करने की अपेक्षा नहीं रख सकता।’ दूसरा बोला, ‘हां’ कोई क्यों थोड़े से लोगों के लिए अपना बेहतरीन प्रदर्शन करेगा?’
चौथा संगीतकार चुपचाप बैठा सबकी बातें सुन रहा था। दूसरों ने उसकी ओर मुड़कर पूछा, ‘तुम्हारा क्या विचार है?’ वो बोला, ‘मैं जानता हूं कि तुम लोग निराश हो चुके हो। मैं भी निराश हो चुका हूं। लेकिन जो लोग आज आने वाले हैं, उनके प्रति भी हमारी कुछ ज़िम्मेदारी है। हम कार्यक्रम ज़रूर करेंगे, और अपनी ओर से बेहतरीन प्रदर्शन करेंगे। जो लोग आने वाले हैं, उनकी तो कोई गलती नहीं है कि दूसरे लोग नहीं आ रहे। उन्हें सज़ा क्यों मिलनी चाहिए? उन्हें हमारी ओर से कम प्रयास क्यों मिलना चाहिए?’
दूसरे संगीतकारों को भी उसके शब्दों से प्रेरणा मिली और उन सबने रात को कार्यक्रम प्रस्तुत करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने जीवन के बेहतरीन प्रदर्शनों में से एक दिया। जब कार्यक्रम समाप्त हो गया और सब चले गए, तो चौथे संगीतकार ने पूरे समूह को इकट्ठा करके एक चिट्ठी दिखाई। उसने कहा, ‘एक श्रोता ने जाने से पहले हम लोगों के लिए यह चिट्ठी दी है।’ उसने चिट्ठी खोलकर पढ़ी, ‘आज के ख़ूबसूरत कार्यक्रम के लिए धन्यवाद।’ चिट्ठी के नीचे हस्ताक्षर थे, ‘आपका राजा’।
राजा ने क्या दी सीख
इस कहानी से एक महत्त्वपूर्ण सीख मिलती है कि जिस रात संगीतकारों ने अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने का निर्णय लिया, उसी रात संयोग से उनका राजा भी वो कार्यक्रम देखने के लिए आया था। लेकिन संगीतकारों को तो यह पता नहीं था, वो तो सभी श्रोताओं के लिए अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे। हमें भी हमेशा इसी रवैये के साथ काम करना चाहिए।
यह रवैया रखने से हम यह स्वीकार करते हैं कि सबके अंदर एक राजा मौजूद है। हम में से प्रत्येक व्यक्ति महत्त्वपूर्ण है। हम सभी के अंदर आत्मा है और हम सभी परमात्मा का अंश हैं। जब हम इस रवैये के साथ काम करते हैं कि सभी को हमसे बेहतरीन प्रयास पाने का हक है, तो हम सभी के अंदर मौजूद प्रभु का ही सम्मान करते हैं।
कुछ लोग केवल कुछ ख़ास लोगों को ख़ुश करने के लिए ही मेहनत करते हैं। वो केवल अपने बॉस के लिए, या किसी अमीर इंसान के लिए, या किसी बड़ी पहुंच वाले व्यक्ति के लिए अपना बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं। लेकिन वो लोग वास्तव में महान् होते हैं जो गरीबों के लिए अपना बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं, या उन लोगों के लिए जो उन्हें बदले में कुछ दे नहीं सकते। वो लोग महान् होते हैं जो सभी के साथ समानता का व्यवहार करते हैं।
इस कहानी से जो दूसरी सीख हम ले सकते हैं, वो यह है कि अगर हमें लगे कि थोड़े से ही लोग हमारे कार्य की सराहना कर रहे हैं या उससे लाभ प्राप्त कर रहे हैं, तो भी हमें निराश नहीं होना चाहिए। कहा जाता है कि यदि हम किसी एक व्यक्ति के जीवन को भी परिवर्तित कर सकें, तो हमारा अपना जीवन सफल हो जाता है।
जब हम प्रयास करते हैं और फिर भी अपेक्षित भीड़ नहीं जुटती है, तब भी हम उन लोगों को तो लाभ पहुंचा ही रहे हैं न जो वहां आए हैं, चाहे वो गिनती में एक या दो ही क्यों न हों। हम उनके जीवन में तो फ़र्क ला ही रहे हैं न! हमें निराश होकर हार नहीं मान लेनी चाहिए। उन संगीतकारों ने केवल कुछ ही लोगों के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत किया, लेकिन उनमें से एक वहां का राजा निकला।
हम जो कुछ भी करते हैं, प्रभु सब देखते हैं। हमें हमेशा अपनी ओर से बेहतर से बेहतर करना चाहिए। असली ईनाम सेवा में ही है, सेवा के फल में नहीं। अगर हम इस ढंग से जिएंगे, तो हम हर रात चैन के साथ सोने जायेंगे, यह जानते हुए कि हमने अपनी ओर से बेहतरीन प्रयास किया है। हम उस आंतरिक ख़ुशी व आनंद से भरपूर हो जायेंगे जो हमें तब मिलता है जब हम हर मिलने वाले को अपनी ओर से बेहतरीन ही देते हैं।
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