यदि आपके पास पूंजी है और आप कोई ऐसा बिजनेस करना चाह रहे हैं, जिसमें मुनाफा ज्यादा हो, तो केसर का बिजनेस कीजिए। वैसे तो यह बिजनेस काफी पुराना है, लेकिन इसमें कुछ नया करते हुए इसे बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
दुनिया को केसर देने का श्रेय सिकंदर को जाता है। करीब दो हजार साल पहले ग्रीस में सिकंदर की सेना ने ही इसकी खेती शुरू की थी, जिसके बाद जहां-जहां सिकंदर की सेना विश्व विजय अभियान में पहुंची, वहां केसर भी पहुंच गया, लेकिन भारत में केसर पारसी समुदाय के लोग लाए थे। कहते हैं मसालों के साथ-साथ उस समय केसर भी भारत लाया गया था, लेकिन इसे उगाया कैसे जाए यही पारसियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई थी। दरअसल, केसर के पौधे के लिए समुद्र तल से कम से कम 20 फीट की ऊंचाई की जरूरत होती है, जो पहाड़ी क्षेत्र में ही संभव है।
ऐसे होती है केसर की खेती
जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में रहने वाले बिलाल कश्मीरी केसर की खेती करते हैं वह बताते हैं, ‘जून के महीने में केसर के बीज खेत में रोपित कर दिए जाते हैं, इसके बाद 4 से 5 माह के भीतर यानी अक्टूबर में केसर तैयार हो जाता है। फूल से लाल केसर (कश्मीरी केसर) निकालने में काफी वक्त लगता है। कश्मीरी केसर की डिमांड महाराष्ट्र के मुंबई और तेलंगाना के हैदराबाद में काफी है।’
असली केसर की ऐसे करें पहचान
बिलाल बताते हैं, ‘इन दिनों मार्केट में नकली केसर भी असली के नाम पर बेचा जा रहा है। केसर असली है या नकली इसे पहचाने के लिए केसर को पानी में घोलें यदि पानी का रंग गोल्डन होता है तो केसर असली है। यदि केसर को पानी में मिलाने पर पानी का रंग लाल हो जाता है तो यह नकली है। इसके अलावा असली केसर थोड़ा तीखा होता है, जबकि नकली केसर मीठा होता है।’ बिलाल बताते हैं कि मौसम की वजह से केसर की खेती पर असर साफ देखा जा सकता है। जिस खेत में पिछले साल 10-15 किलो केसर निकली वहां आज 2 किलो केसर ही पैदा हो रही है।
भारत में केसर मार्केट की स्थिति
मीडिया रिपोर्ट्स को मानें तो जम्मू-कश्मीर में केसर का उत्पादन घटने से देशभर के बाजारों में ईरानी केसर का दबदबा बढ़ गया है। ईरानी-कश्मीरी केसर के भावों के बीच जमीन-आसमान का अंतर है।
कश्मीर की अधिकांश केसर निर्यात में जा रही है। कुछ जानकार और अधिक रुपया खर्च करने वाले ही कश्मीर के केसर की खरीदी करते हैं। ईरान की बेचवाली और भारतीय बाजारों में मांग कम होने से भावों में गिरावट आई है। भारतीय केसर में क्रोसिन प्रिकोक्रोसिन और सैफरनल जैसे तत्व होते हैं। इन तत्वों की वजह से विदेशों में मांग हमेशा बनी रहती है।
इसके अलावा केसर की ग्रेडिंग, पैकेजिंग, ई-नीलामी और सर्टिफिकेशन जैसी सुविधा के लिए पुलवामा जिले में केसर पार्क बनाने का निर्णय किया गया है। यदि पिछले साल हुई केसर की फसल पर नजर डालें तो, साल 2014-15 में बाढ़ की वजह से केसर की फसल 8.51 टन हुई थी। जून 2018 के दौरान सूखे की वजह से उत्पादन 68.15 प्रतिशत घटकर 9.12 टन होने का अनुमान है।
केसर का उपयोग ज्यादतर यूरोप और एशिया के भागों में किया जाता है। प्रेगनेंट वूमेन के लिए केसर वाला दूध अधिक फायदेमंद होता है। केसर स्पेन, इटली, ग्रीस, तुर्किस्तान, ईरान, चीन और भारत में होता है। भारत में केसर ज्यादातर जम्मू (किस्तवार) और कश्मीर (पामपुर), श्रीनगर के सीमित क्षेत्रों में पैदा होता है।
ऐसे बढ़ाएं बिजनेस
केसर की पैदावार भले ही कम हो रही है, लेकिन ऐसा हर साल संभव नहीं। केसर की जरूरत हमेशा लोगों को बनी रहेगी। सोशल प्लेटफार्म, ई शॉपिंग और मल्टीस्टोर फ्रेंचाइजी ओपन कर केसर के बिजनेस को बढ़ाया जा सकता है। जहां आप असली और नकली केसर के बारे में कस्टमर को बताते हुए अपने प्रोडक्ट को किफायती दाम पर बेच सकते हैं।
Be First to Comment