कई लोगों की ये शिकायत रहती है कि उनका मन किसी काम में कभी-कभी नहीं लगता, ऐसे में वो अपने आस-पास रहने वाले लोगों से दूरियां बनाने लगते हैं। ऐसा क्यों होता है? यदि यह प्रश्न दुःखी मन से घिरा हुआ व्यक्ति खुद से पूछे तो वह उस समस्या से बाहर निकल सकता है, जिसके कारण उसका मन उसे दुःखी और अकेलापन महसूस कराता है।
मनोवैज्ञानिक तौर पर देखा जाए तो इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। हो सकता है उसे बेहतर इलाज की जरूरत हो और यह भी हो सकता है कि उसे किसी तरह के इलाज की जरूरत न हो, यानी वह खुद अपनी समस्या का डॉक्टर बन इलाज कर सकता है।
इस तरह की स्थिति में दुःखी मन से घिरा व्यक्ति वर्तमान में रहने की वजह बहुत पीछे या बहुत आगे के भ्रम में उलझ कर रह जाता है। यदि वह वापिस वर्तमान में लौट आए तो आधी से ज्यादा समस्याओं को वो खुद दूर कर सकता है। यह बेहद आसान है।
इसे एक बेहद जीवंत उदाहरण से समझा जा सकता है। इसे हम सभी ने जिंदगी में कभी न कभी तो देखा ही होगा। उदाहरण कुछ यूं है कि फर्श पर एक मरा हुआ कॉकरोच पड़ा है। एक चीटी आती है, उसे देखती है, लेकिन वह अकेली नहीं ले जा सकती तब वह उसी जगह थक हार कर रुकती नहीं बल्कि आगे जाती है और वहां कोई चीटी न मिले तो पीछे की ओर जाती है। इस तरह उस चीटी को चीटियों का एक समूह मिल जाता है। सभी चीटियां आती हैं और उस मरे हुए कॉकरोच को ले जाती हैं।
कहने का मतलब यह है कि समस्याएं कॉकरोच हैं और आप उस चीटी की भूमिका में हैं। आप समस्या को देखकर उसी जगह हार मान लेते हैं, जिसके कारण मन दुःखी हो जाता है। लेकिन, चीटी की तरह बुद्धि का उपयोग करते हुए अपने अतीत और भविष्य की कल्पना करें। वहां कोई न कोई हल जरूर मिलेगा। यकीन कीजिए ऐसा ही होता है।
फीचर फंडा: यदि आप सचमुच में जिंदा है तो वो सब कुछ कर सकते हैं, जो आप करना चाहते हैं। वह इसलिए कि प्रकृति ने आपको मस्तिष्क दिया है, जिससे आप सोच सकते हैं। बेहतर कल के लिए जोकि आज किए गए प्रयासों पर निर्भर करता है। इसलिए मस्तिष्क में रहने वाले मन को दुःख के समुंदर में डुबकी न लगाने दें। बाहर निकलें और बेहतर करें और आप आसानी से कर सकते हैं।
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