विस्तार एक जमाना था जब केंद्र सरकार में उत्तर प्रदेश के अफसरों का दबदबा था। एक दर्जन से अधिक मंत्रालयों की कमान यूपी के अफसरों के हाथ हुआ करती थी। अफसरशाही की सबसे बड़ी कुर्सी कैबिनेट सेक्रेटरी पर अक्सर यूपी का कोई अधिकारी होता था।
यूपी कैडर के 1974 बैच के अफसर अजीत कुमार सेठ, उनके बाद 1977 बैच के पीके सिन्हा लगातार इस पद पर रहे। यूपी के ही नृपेंद्र मिश्रा सेवानिवृत्ति के अरसे बाद प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव बने। पर अब समय बदल गया। केंद्र में यूपी के अफसर घटते जा रहे हैं।
यूपीए शासन के अंतिम दिनों में यूपी के 76 अधिकारी केंद्र में थे। अब संख्या 36 पर सिमट गई। इनमें अंतरराज्यीय प्रतिनियुक्ति व मंत्रियों के बतौर निजी सचिव तैनात 10 अफसर भी शामिल हैं। यानी कुल तादाद महज 26 है। राज्यों के कैडर में सीनियर ड्यूटी पोस्ट के 40 फीसदी पद केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए आरक्षित है।
यूपी कैडर में 652 आईएएस का कोटा मंजूर है। इनमें 353 सीनियर ड्यूटी पोस्ट हैं। फॉर्मूले के अनुसार, 141 अधिकारी केंद्र के लिए उपलब्ध होने चाहिए। मगर वास्तविक नियुक्ति इससे बेहद कम है।
15% तक होनी चाहिए भागीदारी
केंद्र में तैनात एक आला अधिकारी बताते हैं, देश में आईएएस संवर्ग करीब पांच हजार का है। केंद्र में तैनात सचिव व अन्य सभी स्तर के अफसरों में यूपी की भागीदारी 13 से 15 फीसदी होनी ही चाहिए। केंद्र में वरिष्ठ आईएएस जब संयुक्त सचिव या ऊपर के पद पर होते हैं, तो उनके पास अहम फैसले लेने या उनमें भूमिका निभाने के बेहतर अवसर होते हैं। वे अपने कैडर राज्य के विषयों में अहम भूमिका निभाते भी हैं।
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