यूक्रेन के एक इलाके में सैनिक और विद्यार्थी। चित्र सौजन्य : यूनिसेफ़/एशले
पिछले 5 साल की बात करें तो यूक्रेन भले ही गृहयुद्ध से ग्रस्त रहा हो लेकिन वहां मौजूद अंशाति किसी भी तरह डॉक्टर बनने का सपना पाले भारतीय युवाओं को नहीं रोक पा रहा है। यहां बड़ी संख्या में शिक्षा के लिए भारतीय बच्चे जाते हैं। वजह है यहां डॉक्टरी की पढ़ाई, भारत की अपेक्षा कम खर्च में हो जाती है।
लेकिन अब वहां हालात, पहले की तरह नहीं रहे। युक्रेन युद्ध के मुहाने पर खड़ा है। वो सभी भारतीय अभिभावक परेशान हैं, जिनके बच्चे इस समय यूक्रेन में रहकर डॉक्टरी या अन्य विषयों की पढ़ाई कर रहे हैं। भारत सरकार द्वारा इन सभी बच्चों को सुरक्षित भारत लाने की कार्रवाई जारी है।
हालही में, यूक्रेन के कीव स्थित भारतीय दूतावास ने एक बयान में कहा कि यूक्रेन में मौजूदा स्थिति की अनिश्चितताओं को देखते हुए भारतीय नागरिक, विशेष रूप से छात्रों जिनका वहां रहना आवश्यक नहीं है, वे अस्थाई तौर पर निकलने पर विचार कर सकते हैं. भारतीय नागरिकों को यूक्रेन के भीतर अनावश्यक यात्राओं से बचने की भी सलाह दी जाती है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र में भारतीय दूत ने यूक्रेन में भारतीय छात्रों की संख्या 20,000 बताई, जो कीव में भारतीय दूतावास द्वारा 2020 में अनुमानित 18,000 की संख्या से अधिक है। यूक्रेन पर रूस के संभावित हमले की आशंकाओं के बीच यूक्रेन में इंदौर के कम से कम 25 विद्यार्थी फंस गए हैं और उनके चिंतित परिजनों ने भारत सरकार से उनकी जल्द से जल्द स्वदेश वापसी में मदद की गुहार की है।
एक तरफ भारतीय बच्चों को स्वदेश लाने की कवायद जारी है तो दूसरी ओर यूक्रेन में वहां के बच्चों की शिक्षा सदियों से प्रभावित हो रही है।संयुक्त राष्ट्र बाल कोष/यूनीसेफ़ ने कहा है कि यूक्रेन के पूर्वी इलाक़े में पिछले आठ साल के दौरान शिशु केन्द्रों और स्कूलों पर हमले होना एक दुखद वास्तविकता है। मौजूदा संघर्ष शुरू होने के बाद से, अभी तक 750 से ज़्यादा स्कूल क्षतिग्रस्त हुए हैं।
यूक्रेन सरकार और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, गुरूवार को पूर्वी इलाके में, दागे गए गोलों ने लूहान्स्क क्षेत्र में एक शिशु केन्द्र को निशाना बनाया। इस हमले में किसी के हताहत होने की खबर नहीं है।
यूएन बाल एजेंसी ने एक वक्तव्य में कहा है कि यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में जब से, वर्ष 2014 में सरकार और रूस समर्थक अलगाववादियों के बीच लड़ाई शुरू हुई, तब से सम्पर्क रेखा के दोनों तरफ, हज़ारों बच्चों की शिक्षा बाधित हुई है। इस संघर्ष ने, बच्चों की एक पूरी पीढ़ी पर गम्भीर मनोवैज्ञानिक असर डाला है।
ताजा आंकड़ों के अनुसार, संघर्ष ग्रस्त वाले इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए, शिक्षा प्राप्ति और भी ज्यादा खतरनाक हो गई है। साल 2020 में, स्कूलों पर 535 हमले हुए, जोकि साल 2019 की तुलना में 17 प्रतिशत ज्यादा थे। कोविड के कारण भी बच्चों की शिक्षा पर काफी असर देखा गया।
यूएन बाल एजेंसी ने सभी पक्षों से, ‘सुरक्षित स्कूल घोषणा-पत्र’ का सम्मान करने का आग्रह भी किया है। सुरक्षित स्कूल घोषणा-पत्र, देशों के दस्तखत किए जाने के लिए, नॉर्वे में मई 2015 में शुरू हुआ था।
इसमें युद्ध के दौरान भी शिक्षा जारी रखने और, स्कूलों का सैनिक प्रयोग रोकने के लिए ठोस उपाय करने का भी आहवान किया गया है। अभी तक, 111 देश इस घोषणा-पत्र पर दस्तखत कर चुके हैं। यूक्रेन ने भी नवम्बर 2019 में, इस पर हस्ताक्षर किए थे।
यूनीसेफ़ ने एक वक्तव्य में कहा है, ‘शैक्षिक स्थल, एक ऐसा सुरक्षित स्थान रहने चाहिए जहां बच्चे किसी भी तरह के खतरों और संकटों से महफूज रहें और जहां वो सुरक्षित माहौल में शिक्षा प्राप्त कर सकें, खेलकूद सकें, और अपनी पूरी क्षमता का विकास कर सकें।’
यूनीसेफ़ ने कहा है कि ये संघर्ष शुरू होने के समय से ही ये एजेंसी, यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में जमीन पर मौजूद रही है और लगभग एक लाख 80 हजार बच्चों, युवाओं और देखभाल करने वालों को, मनोवैज्ञानिक सहायता मुहैया कराती रही है।
Be First to Comment