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संकट : क्या भारतीय अर्थव्यवस्था सचमुच में ‘ऑल इज वेल’ है?

प्रतीकात्मक चित्र।

भारत सरकार भले ही यह दावा करती हो की भारतीय अर्थव्यस्था ‘ऑल इज वेल’ चल रही है। लेकिन इससे इतर चीजें कुछ ओर ही दशा दर्शाती हैं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा क्या होगी, यह काफी चुनौतीपूर्ण और चिंता का विषय हो सकता है।

बीते दिनों भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक कार्यक्रम में बताया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से बेहतर चल रही है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कि सरकार के मंत्री आखिर कब तक आम जनता को गुमराह करते रहेंगे?

हालही में नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने अर्थव्यस्था के संकट को लेकर चेतावनी दी है। वो कहते हैं कि भारत में लोग ‘बेहद दर्द’ में हैं और अर्थव्यवस्था अभी भी 2019 के स्तर से नीचे है, लोगों की ‘छोटी आकांक्षाएं’ और भी छोटी होती जा रही हैं।

भारत सरकार कई बार और हर बार अपने बयान में कहती आ रही है कि भारत विश्व में पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनेगा? लेकिन यह लक्ष्य मौजूदा आर्थिक स्तर की गतिविधियों से नहीं लगता कि संभव हो पाएगा। भारत यह लक्ष्य 2029-30 तक हासिल करना चाहता है।

इस बारे में पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था को दो साल का नुकसान हुआ है ऐसे में पांच ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य को 2029-30 तक हासिल कर पाना असंभव दिख रहा है। इस लक्ष्य को पूरा करने में केवल चार साल का समय बचा है और इसके लिए जीडीपी की वृद्धि दर 18 प्रतिशत की ज़रूरत होगी और यह असामान्य बात लग रही है।

अगर आप लक्ष्य को हासिल करने का समय बढ़ाकर 2026-27 कर दें तो भी जीडीपी को 11 प्रतिशत की दर से बढ़ना होगा। अगर इस रफ्तार से जीडीपी नहीं बढ़ी और इस वक़्त ऐसा होना मुश्किल दिख रहा है तो लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल होगा।

अगर बेहतर मूलभूत नीतियों को लागू किया जाए और तेज़ी की स्थिति लौटे तो इस लक्ष्य को 2029-30 तक हासिल किया जा सकता है। सरकार ने जिस तरह से निजीकरण की घोषणाएं की है, कोयला सेक्टर के मानचित्र और खदानों के निजीकरण की प्रक्रिया को अंत तक लागू किया जाए और सरकार इसे प्रभावी ढंग से लागू करे तो 2023-24 तक एक बार फिर से सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था भारत की होगी।

तो वहीं, वहीं जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर अरूण कुमार का कहना है कि जब इस लक्ष्य को सार्वजनिक किया गया था उस वक्त ही इसका पूरा होना संभव नहीं था। कोविड के बिना भी अर्थव्यवस्था में बीते दो साल से कोई तेजी नहीं थी। कोरोना संक्रमण के चलते गिरावट भी काफी ज्यादा देखने को मिली, इसलिए इस साल ग्रोथ तो ज्यादा दिखेगी लेकिन कोरोना संक्रमण से पहले वाली स्थिति तक नहीं पहुंचेगे।

अरुण कुमार आगे कहते है, ‘मेरा मानना है कि ख्याल से वित्तीय साल 21 की तीसरी तिमाही में भी हमारा ग्रोथ नहीं हो रहा है। सरकारी आंकड़ों में असंगठित क्षेत्र के आंकड़े शामिल नहीं होते हैं जबकि कोविड संकट की सबसे ज़्यादा मार असंगठित क्षेत्र पर ही पड़ा है। सरकार के आंकड़े सही नहीं हैं।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) आंकड़े संग्रह करने वाली कोई स्वतंत्र एजेंसी नहीं है। वह सरकार के आंकड़ों पर भरोसा करती है। भारत सरकार किसी तरह से घबराहट की स्थिति को भी नहीं पैदा करना चाहती हैं, लिहाजा केंद्र सरकार गुलाबी तस्वीर ही पेश करती है, लेकिन उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। 2024-25 तक पाच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था तक पहुंचने का अनुमान किसी हाल में पूरा नहीं हो सकता।

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