करगिल युद्ध। – फोटो : अमर उजाला
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आज के ही दिन 4 जुलाई 1999 को भारतीय सेना के शूरवीरों ने रणनीतिक रूप से अहम टाइगर हिल को पाकिस्तानियों के चुंगल से मुक्त कराया था। यही वह चोटी थी जिस पर फतह के बाद करगिल जंग की पूरी कहानी बदल गई थी। द्रास सेक्टर में 18 ग्रेनेडियर्स , 8 सिख और 2 नागा को टाइगर हिल को जीतने का टास्क दिया गया। ये तीन यूनिट ही टाइगर हिल पर अंतिम हमले में शामिल थीं। 3-4 जुलाई की रात भारतीय सेना ने 16,500 फीट ऊंची टाइगर हिल पर हमला बोल दिया था। 4 जुलाई 1999 की सुबह भारतीय सेना के दो रेजिमेंट (सिख, ग्रेनेडियर्स) ने टाइगर हिल पर पाकिस्तान के नॉर्दन लाइट इंफ्रैंट्री को धूल चटा दी, 92 पाकिस्तानी सैनिक इस हमले में मारा गए। 12 घंटे चली लड़ाई के बाद टाइगर हिल पर वापस कब्जा किया गया।
तोलोलिंग की जंग में हुआ बड़ा नुकसान
जिनके नेतृत्व में ये लड़ाई जीती गई, उस 18 ग्रेनेडियर्स के कमाडिंग ऑफिसर रहे रिटायर्ड ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर के जहन में एक-एक लम्हा आज भी जिंदा है। अमर उजाला से कास बातचीत में ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर बताते हैं कि जब तोलोलिंग पर जीत की लड़ाई चल रही थी और तब तक 21 जवानों की शहादत हो चुकी थी। मेजर राजेश अधिकारी समेत लेफ्टिनेंट कर्नल आरवी विश्वनाथन भी इस तोलोलिंग की लड़ाई में शहीद हो चुके थे। इस लड़ाई में सेना को काफी नुकसान हुआ था। आसमान से सफेद आफत के रूप में बर्फबारी हो रही थी और जमीन पर सीना चीर देने वालीं गोलियों की बौछारें हो रही थीं। ऐसे में उन्हें टाइगर हिल जीतने का टास्क दिया गया।
जीत के लिए हवन
ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर आगे बताते हैं कि ये 02 जुलाई की बात थी। उस दिन मौसम बेहद खराब था। हमने सुबह-सुबह जीत के लिए हवन किया और घातक टीम की जीत और सकुशल वापसी की भगवान से प्रार्थना की। सेना में शामिल होने के महज चार महीने बाद ही 25 साल के युवा लेफ्टिनेंट बलवान सिंह (बाद में कर्नल) ने करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों के हमले में भारतीय सेना की घातक प्लाटून का नेतृत्व किया। उनके साथ कैप्टन सचिन निंबालकर और 19 साल के ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव भी थे। वे बताते हैं कि तोलोलिंग पर हमले से पहले हमें सिर्फ इतना पता था कि ऊपर चोटियों पर 5-6 मुजाहिद्दीन हैं। लेकिन जब तोलोलिंग को जीतने का प्रयास हुआ, तो पता चला कि वहां तो पूरी की पूरी पाकिस्तानी फौज आर्टिलरी सपोर्ट के साथ बैठी है। तोलोलिंग की लड़ाई से हमें काफी कुछ सीखने को मिला। हमने दुश्मन को चकमा देने की ठानी।
चोटी पर बैठे दुश्मन को दिया सरप्राइज
वह आगे बताते हैं कि ‘‘टाइगर हिल की टोह लेने के लिए मेरे पास पर्याप्त समय था। मेरे पास 120 तोपें, मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर (MBRL), इंजीनियर्स का सपोर्ट और ऊंचाई पर लड़ने के लिए आवश्यक युद्ध उपकरण थे। तमाम नुकसान के बावजूद 18 ग्रेनेडियर्स के हमारे जवानों का मनोबल ऊंचा था। वह बताते हैं कि इस बार हमने हमले की रणनीति बदली। हमने सामने की बजाय चोटी के पीछे से हमला करने की ठानी। दुश्मन को अंदाजा था कि हम सामने से आएंगे। चढ़ाई मुश्किल थी, मौसम प्रतिकूल था, फिर भी रस्सी के सहारे घातक प्लाटून ऊपर चोटी पर चढ़ी। सैनिकों ने पूरी रात रस्सी का इस्तेमाल करके खुद को ऊपर चढ़ने के लिए संघर्ष किया था। उनकी बंदूकें उनकी पीठ पर बंधी हुई थीं। छह सैनिकों वाला अग्रणी दस्ता जिसमें योगेंद्र यादव भी शामिल थे, वह एक चट्टान के एक तरफ लंबे वक्त से लटका हुआ था। उसी समय उनका दुश्मन से आमना-सामना हुआ और गोलीबारी शुरू हो गई। छह सैनिकों में से केवल एक योगेंद्र यादव गोली लगने से बच गए। उन्होंने अपने टूटे हुए हाथ को अपनी बेल्ट से बांधा और गोलीबारी जारी रखी।
टाइगर टॉप “हमारा” हो गया
ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर कहते हैं, 23 वर्षीय सचिन निंबालकर (बाद में कर्नल) ने हमले का नेतृत्व किया। उनके सैनिक चुपचाप चोटी पर पहुंच चुके थे और उन्होंने इतनी खामोशी के साथ हमला किया कि दुश्मन भी सरप्राइज रह गया। कुछ ही मिनटों में, उन्होंने टाइगर हिल पर स्थित सात से आठ बंकरों में से पहले पर कब्जा कर लिया। इसके बाद बाकी बंकरों पर धावा बोला। वे बताते हैं कि हम दुश्मन के बहुत करीब थे और हाथ से हाथ की लड़ाई के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। दुश्मन को अब ऊंचाई का लाभ नहीं था। लेफ्टिनेंट बलवान सिंह की घातक पलटन ने टाइगर हिल पर मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों को पूरी तरह से आश्चर्यचकित कर दिया था। उनकी टुकड़ी के जवाबी हमले की वजह से टाइगर हिल पर मौजूद कई पाकिस्तानी सेना के जवानों को वहां से भागना पड़ा। टाइगर हिल पर कब्जा करने के लिए 12 घंटों से अधिक कड़ी मशक्कत की। पाक सैनिकों की इस भारी गोलीबारी में 44 जवान वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। यहां तक की बलवान सिंह भी गंभीर रूप से घायल हो चुके थे। लेकिन अपनी जान की परवाह न करते हुए घायल होने के बावजूद 4 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था। घंटों की भीषण लड़ाई के बाद टाइगर टॉप “हमारा” हो गया। हालांकि टाइगर हिल के कुछ हिस्से अभी भी दुश्मन के कब्जे में थे। जवानों ने नीचे से जयकारे की गूंज सुनी। रेडियो ऑपरेटर ने जीत की खबर दी थी।
18 ग्रेनेडियर को मिले सबसे ज्यादा 52 वीरता पुरस्कार
ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर बताते हैं कि टाइगर हिल पर जीत इतनी आसान नहीं थी। टाइगर हिल की जंग में 9 जवान शहीद हुए थे। जबकि इस पूरी कारगिल की जंग में 18 ग्रेनेडियर्स के 34 जवान शहीद हुए थे। यह जीत इस युद्ध में महत्वपूर्ण विजय थी। इसने हमारे सशस्त्र बलों तथा देशवासियों का मनोबल ऊंचा किया और पाकिस्तानी सैनिकों का मनोबल गिराया। एक-एक करके हमारी सेना मुश्कोह और बटालिक सेक्टर की चोटियों पर कब्जा करती चली गई। वह बताते हैं कि ‘18 ग्रेनेडियर्स’ की स्थापना 1976 में हुई थी। उन्हें जिस 18 ग्रेनेडियर का नेतृत्व करने का उन्हें मौका मिला, उस यूनिट में 900 जवान थे। इस युद्ध में सबसे ज्यादा 52 वीरता पुरस्कार भी इनकी कमान में 18 ग्रेनेडियर्स को ही मिले थे। इसमें मानद कैप्टन योगेंद्र यादव को एक परमवीर चक्र, कर्नल बलवान सिंह समेत 2 को महावीर चक्र, कर्नल सचिन निंबालकर समेत 6 को वीरचक्र और 18 सेना मेडल के अलावा थिएटर बैटल ऑफ कारगिल, बैटल ऑनर ऑफ कारगिल, तोलोलिंग बैटल ऑनर के साथ चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ से यूनिट प्रशस्ति पत्र भी मिला था।
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